हैदराबाद: मंगलवार को यौम-ए-आशूरा के मौके पर ऐतिहासिक बीबी का आलम जुलूस निकाला गया। मुहर्रम के महीने की 10वीं तारीख को कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। इस्लाम की रक्षा के लिए उन्होंने खुद को कुर्बान कर दिया था। आपको बता दें कि कर्बला इराक का एक शहर है।
मुहर्रम के इस जुलूस में हजारों शिया मातम मनाने वालों ने हिस्सा लिया। दोपहर 1.30 बजे मुहर्रम का जुलूस चारमीनार से तीन किलोमीटर दूर डबीरपुरा स्थित बीबी का अलवा से और सालार जंग संग्रहालय से एक किलोमीटर की दूरी पर शुरू हुआ। कुतुब शाही काल का आलम हाथी माधुरी पर लिया गया था। मुहर्रम के जुलूस के लिए हाथी को महाराष्ट्र के सोलापुर से जुलूस के लिए लाया गया।

जुलूस जुलूस शेख फैज कमान, याकूतपुरा रोड, एतेबार चौक, अलीजा कोटला, मालवाला पैलेस, चारमीनार, गुलजार हौज, पंजेशा, मीर आलम मंडी, दारुलशिफा मैदान, आजा खाना जोहरा, काली खबर से होते हुए चदरघाट पर समाप्त हुआ। दो साल पहले केवल कोरोना महामारी के कारण मुहर्रम जुलूस पर प्रतिबंध था। जुलूस के साथ-साथ हजारों शिया शोक मनाने वालों ने ब्लेड, खंजर और तलवार जैसी नुकीली चीजों से खुद को झंडी दिखाकर मार्च किया। जुलूस की एक झलक पाने और बीबी के आलम को मिट्टी चढ़ाने के लिए लोगों की कतार लगी रही।
हैदराबाद शहर के पुलिस आयुक्त सीवी आनंद, गृहमंत्री मोहम्मद महमूद अली और सरकारी विभागों के अधिकारियों ने भी मीर आलम मंडी और चारमीनार में बीबी के आलम के लिए पारंपरिक धट्टी की पेशकश की। शहर के कई हिस्सों में भोजन शिविर आयोजित किये गये और लोगों को खाना परोसा गया। पेयजल शिविर और शीतल पेय शिविर स्थापित कर लोगों को वितरित किये गये। पुराने शहर के शिया मुस्लिम समुदाय के सदस्य हैदराबाद में मुहर्रम के दौरान यह कार्यक्रम करते हैं।
गौरतलब है कि मुहर्रम में बीबी का आलम और उसका जुलूस कुतुब शाही काल (1518-1687) से मिलता है। जब हयात बख्शी बेगम, मुहम्मद कुतुब शाह (5वें शासक 1611-26) की पत्नी ने बीबी फातिमा की याद में एक आलम स्थापित किया था। बाद में निज़ाम शासनकाल (1724-1948) के दौरान आलम को विशेष रूप से इस उद्देश्य के लिए बनाए गए डबीरपुरा में बीबी का अलवा में स्थानांतरित कर दिया गया था। आलम में लकड़ी के तख्ते का एक टुकड़ा होता है जिस पर बीबी फातिमा को दफनाने से पहले उनका अंतिम स्नान कराया गया था। इतिहासकारों के अनुसार, गोलकुंडा के राजा अब्दुल्ला कुतुब शाह के शासनकाल के दौरान यह अवशेष इराक के कर्बला से गोलकोंडा तक पहुंचा है।
जुलूस को लेकर पुलिस ने सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए हुए है। इसके तहत कुछ सड़कों पर ट्रैफिक को डायवर्ट किया गया। तेलंगाना के विभिन्न हिस्सों में भी मोहर्रम पारंपरिक तरीके से मनाया गया। कस्बों और गांवों में जुलूस में हिंदू समुदाय के लोग भी शामिल हुए। (एजेंसियां)