हैदराबाद : केरल के वायनाड जिले में मंगलवार को मेप्पाडी के पास विभिन्न पहाड़ी इलाकों में आए भूस्खलन ने भारी तबाही मचा दी थी। इस प्राकृतिक आपदा के कारण अब तक लगभग 200 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 300 अधिक लोग लापता हैं। यह आंकड़ा अभी और भी अधिक बढ़ सकता है। वहीं भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में सेना का राहत व बचाव कार्य जारी है। संसद ने वायनाड घटना पर दुख व्यक्त किया है। विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी ने भूस्कलन इलाकों का दौरान और सरकार से आवश्यक मदद करने की अपील की है। इसी क्रम में तेलंगाना सरकार ने गुरुवार को विधानसभा वायनाड़ भूस्कलन की घटना पर दुख व्यक्त किया औ पीड़ितों के लिए आवश्यक मदद करने का फैसला लिया।
इसी बीच भूस्कलन में फंसे परिवार की एक डरावनी और चमत्कार की घटना सामाने आई है। हुआ यूं कि सुजाता अनिनांचिरा और उनके परिवार का मंगलवार की सुबह भूस्खलन की चपेट में आने के बाद भी जिंदा बचना किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा रहा। भूस्खलन में जान बचाकर भागे और जंगल पहुंच गए। तेज बारिश, दलदल के बीच घने जंगल में कहां जाएं समझ नहीं आया। उन्हें एक नर और दो मादा हाथी समेत तीन हाथियों ने घेर लिया। विशालकाय हाथी चिंघाड़ रहे थे। सुजाता के परिवार को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वे कहां जाएं। वे जिंदा रहने का आस छोड़ चुके थे। हाथ जोड़कर ईश्वर को याद किया और वहीं बैठ गए। हाथ जोड़कर हाथियों से शरण मांगी। हैरान थे कि हाथियों ने उन लोगों को कुछ नहीं कहा, बल्कि हाथियों ने रात भर सुजाता और उनके परिवार की सुरक्षा की। सुबह उनके निकलने पर हाथियों की आंखों में आंसू छलक पड़े।
सुजाता ने बताया कि भूस्खलन में वह, उनके पति, बेटी और दो पोते-पोतियों का जिंदा बचना वह चमत्कार ही मान रही हैं। उन्होंने कहा कि चूरलमाला में उनके घर पर भूस्खलन हुआ। परिवार मलबे में तब्दील हो गया। वे सभी इस मलबे में दब गए। सुजाता ने बताया, “सोमवार की रात भारी बारिश हो रही थी। मैंने रात के करीब 1.30 बजे एक बहुत बड़ी आवाज सुनी, उसके बाद पानी का तेज बहाव हमारे घर में घुस आया। कुछ समझ पाते, उससे पहले ही भूस्खलन से गिरे हुए लट्ठे घर की दीवारों से टकराने लगे। हम लोग बहुत डर गए। पास के नष्ट हो चुके घरों का मलबा भी हमारे घर में घुस रहा था।”
यह भी पढ़ें-
परिवार ने बताया, ‘घर की छत गिर गई, जिससे मेरी बेटी घायल हो गई। मैंने दीवार से ईंटें हटाईं और बाहर निकला। परिवार के दूसरे लोग भी मलबे में दब रहे थे। हम लोगों ने एक दूसरे की मदद की और वहां से तुरंत बाहर निकले। हम किसी तरह बाहर निकले और बहते पानी में उतरना पड़ा। पानी बढ़ता जा रहा था। लग रहा था कि मानो डूब ही न जाएं।’
सुजाता ने बताया कि ईश्वर की यहां कृपा ही थी कि वे सभी मलबे में दबे लेकिन जिंदा रहे। खुद ही किसी तरह निकले और वहां से जान बचाकर भागे। उन्होंने बताया, ‘हम अपने घर के पीछे पहाड़ी पर चढ़े और एक कॉफी बागान में शरण ली। यह जंगली इलाका था। आसपास सन्नाटा था। तेज बारिश हो रही थी। आंखों के सामने सब तबाह हो गया था। दिमाग काम नहीं कर रहा था लेकिन तभी आधे मीटर की दूरी पर तीन हाथियों का एक झुंड नजर आया। घना अंधेरा था, पास में खड़े हाथी को पहचानना मुश्किल था। परिवार समझ गया कि ये हाथी थे। उन्होंने मान लिया कि शायद ही वे अब जिंदा बच सकेंगे।
सुजाता ने कहा कि उन लोगों ने हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना की लेकिन पाया कि हाथियों ने उन लोगों को कुछ नहीं कहा। हालांकि वह जानवर भी डरा हुआ लग रहा था। मेप्पाडी के एक राहत शिविर में रह रहीं सुजाता ने कहा, “मैंने हाथी से प्रार्थना की, कहा कि हम आपदा से बचकर आए हैं। रात यहां बिताने के अलावा हमारे पास कोई और चारा नहीं है। हम बचाव दल के आने का इंतजार कर रहे हैं, फिर चले जाएंगे।”
सुजाता ने बताया, “हम हाथी के पैरों के बहुत करीब थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि वह हमारी परेशानी को समझ रहा था। हम सुबह 6 बजे तक वहीं रहे और तीनों हाथी भी तब तक हमारे साथ खड़े रहे जब तक हमें बचा नहीं लिया गया। मैंने देखा कि भोर होते ही जब हम वहां से निकलने लगे तो हाथियों की आंखें भर आईं।”