हैदराबाद/नई दिल्ली (डॉ राजीव कुमार रावत की रिपोर्ट): केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से ‘समसामयिक संदर्भ और महाकवि निराला कृत राम की शक्ति पूजा’ विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई। आयोजित कार्यक्रम की भूमिका में प्रो राजेश कुमार ने निराला जी की रचना ‘राम की शक्ति पूजा’ की ऐतिहासिकता और प्रासंगिकता की चर्चा करते हुए गाँधी जी एवं लाल बहादुर शास्त्री का स्मरण किया और सबकी ओर से श्रद्धाजंलि अर्पित की। आपने अपने अहमदाबाद (गुजरात) के मित्र श्री प्रेम कुमार की एक विलक्षण उपलब्धि साझा की कि उन्होंने पूरे विश्व की पदयात्रा की है और वे कहते हैं कि कुछ लोग किताब लिखते हैं और कुछ पर किताब लिखी जाती हैं। गाँधी विश्व में ऐसे ही एक नाम हैं जिन पर विश्व में कहीं न कहीं कुछ न कुछ लिखा पढ़ा जाता है।
डॉ धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने इस साहित्यिक कार्यक्रम का संचालन किया। आपने कहा कि रामनवमी एवं विजयदशमी के अवसर पर निराला की कविता ‘राम की शक्ति पूजा’ में भारत माता की छवि और तात्कालिक राजनीति का भी दर्शन होता है। साहित्य विमर्श का प्रारम्भ दिल्ली वि वि की प्रोफेसर कुमुद शर्मा ने किया। आपने कहा कि इस कविता का मूल्यांकन आकाश बहुत व्यापक है और 1936 में रचित यह कविता स्वाधीनता संग्राम का भी चित्रण करती है और हताश, निराश ‘राम की शक्ति पूजा’ भारतीय मानस को ही नहीं पूरी मानव जाति को ऊर्जामय संदेश देती है।
प्रो नारायण कुमार ने निराला की ‘राम की शक्ति पूजा’ को प्रबंध काव्य अथवा खण्ड काव्य की परिधि से बाहर शास्त्रीय कसौटी पर महाकाव्य के रुप में स्वीकार किया। आपने कहा कि इस रचना की एक – एक पंक्ति में काव्य संभावनाओं के रुप में सर्ग लिखा जा सकता है जैसे कि रवि हुआ अस्त पंक्ति है जिस पर राम और रावण के अपराजेय समर के साथ अनेक विचारों और चित्रों को उकेरा जा सकता है। मानव जीवन की समस्त कमजोरियों के साथ राम को लोक जीवन का ही अंग मानते हुए यह रचना एक विरल प्रेरणा है और राम का चरित्र स्वयं ही काव्य है। इस रचना की प्रासंगिकता कालजयी है। निराला की रचना में त्रिलोचन शास्त्री की टीका का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि दसों दिशाएं मौन पवन चार का अर्थ पवन संचार से है।
अंधकारमय रात्रि से मुक्त होकर शक्ति पूजा से ही संसार विजय की जा सकती है जैसा कि राम ने शक्ति के रूप में माँ सीता का स्मरण किया और अन्याय की ओर से शक्ति के योग को भी तोड़ने का साहस उसी शक्ति की आराधना करते हुए किया और अपनी एक आँख को कमल रूप में पूजा में अर्पित करने को उद्यत हो जाते हैं। राम और गांधी बनने के लिए बलिदानी होना होता है। उन्होंने कहा कि मैंने जानकी बल्लभ शास्त्री और शिव मंगल सिंह सुमन के श्री मुख से ‘राम की शक्ति पूजा’ का पाठ सुना है। आपने कहा कि ‘राम की शक्ति पूजा’ हमें संकल्प और विकल्प के अवसाद में अन्याय से लड़ने का साहस देती है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व प्रशासक एवं चितंक साहित्यकार मनोज श्रीवास्तव ने सभी को विजयदशमी एवं नौ दिनों की आराधना उत्सव श्रृंखला की शुभकामनाएं दी। आपने कहा कि ‘राम की शक्ति पूजा’ नौ दिन चली थी और विजयदशमी के दिन उन्हें विजय प्राप्त हुई थी। आपने एक अल्पचर्चित तथ्य की ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि राम का जन्म भी नवरात्रि की आखिरी रात को हुआ था। इसलिए राम ने नौ दिन उपासना करते हुए अपने आपको फिर से शक्ति साधना में लीन किया और पुनः नवीन ऊर्जा को प्राप्त किया। इसलिए माँ ने पूजन के उपरांत वर देते हुए निराला के शब्दों में कहा है-
“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।
आपने अजेरबानी के शब्दों का संदर्भ देते हुए कहा कि शक्ति पूजा से आपको अपनी ही शक्तियाँ पुनः प्राप्त होती हैं और आपका एक नया जन्म होता है और अपने ही मूल की पुनः प्राप्ति करते हैं। (You were born a child of light’s wonderful secret – you return to the beauty you have always been. – Aberjhani)। आपने राम की सेना में जामवान को चैतन्य, नवोन्मेष, प्रबोधन के प्रतीक रूप में स्थापित किया जैसे कि निराला ने निरूपित किया है।
उन्होने निराश राम को उसी शक्ति की पूजा करने का मंत्र दिया जो रावण को गोद में लेकर लड़ रही हैं और उन्होंने राम को शक्ति की मौलिक कल्पना और आराधना का परामर्श दिया। आपने आधुनिक रक्त बीज, भ्रूण हत्या की संकल्पनाओं से पौराणिक कथा को नए अर्थ दिए और कहा कि भारत सौभाग्यशाली है कि इसके पास दुर्गा सप्तशती है। आपने निराला की कविता को देवीभागवत् के तीसरे स्कंध के तीसरे अध्याय की आख्याओं से जोड़ते हुए कमललोचन राम और कमल नयन राम में अद्भुत साम्य स्थापना की। बाल्मीकि के आदित्य ह्दय स्रोत को युद्ध मध्य में स्थापित करने की विशेषता की परंपरा में निराला की ‘राम की शक्ति पूजा’ को रखते हुए कहा कि निराला ने भी चलते हुए युद्ध में शक्ति पूजा का प्रसंग रचा है और दोनों ही महाकवियों ने राम की थकान, चिंता और निराशा को केन्द्र बिंदु में रखते हुए उससे मुक्ति का मार्ग दिखाया है।
मनोज ने पाश्चात्य एवं भारतीय पुराणों की समकालिकता के कई उदाहरण देते हुए भारतीय भू भाग में मातृशक्ति की आदिकालीन महनीयता को भी अपने संबोधन में चित्रित किया। आपने निराला की कविता ‘राम की शक्ति पूजा’ को एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध करते हुए उनकी एक अन्य कविता ‘खोलो दृग के द्वार’ का उल्लेख किया और कहा कि भारत की स्वतंत्रता के संदर्भ में निराला फिर भारत की आँखें खोलने का काम इस कविता के माध्यम से करने में सफल हुए हैं।
केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने नारायण कुमार, प्रो कुमुद एवं मनोज श्रीवास्तव के वक्तव्यों की सराहना करते हुए कहा कि मुझे यह कविता अपने समय को बहुत प्रभावित करती हुए नजर आती है और समसामयिक परिवेश को दर्शाती है। छायावादी लेखन की प्रमुखता के दौर में प्रेमचंद की रचनाओं में स्थापित प्रगतिशीलता के मुलम्मे से बाहर निकलकर राम की शक्ति की पूजा, जय सिंह को पत्र, जागो फिर एक बार, बीती विभावरी जाग री आदि के रचनाकार निराला ने एक नई राह खोली है। जयशंकर प्रसाद ने अपने नाटकों में अनेक पात्रों के माध्यम से अपने इतिहास को जीवंत किया और उस दौर के कवियों यथा- माखन लाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त आदि ने स्वतंत्रता संग्राम को नई आँच दी और इसलिए इन रचनाकारों की रचनाओं के आलोक में उस काल खण्ड को सांस्कृतिक पुनर्जागरण का काल कहा जा सकता है। यद्यपि बीसवीं शताब्दी के सबसे प्रमुख लेखकों में कौन नाम महत्वपूर्ण है। यह निर्धारित करने के लिए छायावाद, साम्यवाद के आलोचकों में बहस छिड़ जाती है, तथापि यह स्थापित सत्य है कि निराला, महादेवी, मुक्तिबोध आदि की धाराओं में हिंदी कविता रचने वाला निराला जैसा व्यक्तित्व पूरे हिंदी साहित्य जगत में कोई दूसरा नहीं दिखता है।
हिंदी कविता के प्रति अनात्म उत्कर्ष भाव की ऊँचाई और जीवन में अभावों के बाद भी वैसी दीवानगी बस कहीं शैलेश मटियानी में ही नजर आती है। बीसवीं सदी में हिंदी लेखन का केंद्रीय व्यक्तित्व निराला हैं और ‘राम की शक्ति पूजा’ इसका प्रमाण है। विचार और लेखन का विस्तृत आयाम निराला की रचनाओं में है कि वे ‘राम की शक्ति पूजा’ से लेकर वह तोड़ती पत्थर जैसी रचनाएं अपने काल को सौंपते हैं। आपने फिजी के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि सरस्वती और लक्ष्मी के पूजक भारतीयों के वंशजों में शक्ति की पूजा का अभाव रहा है। हमने अपने धर्म की व्याख्या और सत्य की गत्यात्मकता युधिष्ठर की तरह तो की है किंतु कृष्ण के रुप में वीरोचित भाव से नहीं की है- ‘राम की शक्ति पूजा’ कविता ने पूरे राष्ट्र के मनोभाव और आत्मसम्मान में परिवर्तन किया है। आपने भारत के अपराधबोध भाव को उल्लखित किया कि हमारे मनों में हीनभाव बचपन से ही रोपा गया है और ऐसे दीन हीन विचारों से कोई देश महाशक्ति नहीं बन सकता। आज भारत गुट निरपेक्षता, तीसरे दुनिया के देश के नामकरण आदि से बाहर निकलकर एक ऐसे देश के रूप में खड़ा हो रहा है जहाँ वह शक्ति की पूजा में विश्वास व्यक्त करते हुए अपना नया स्वरूप ग्रहण कर रहा है।
श्री विजय कुमार मल्होत्रा ने अपनी टिप्पणी में जीवन द्वंदों में शक्ति साधना की महिमा को रेखांकित किया और ‘राम की शक्ति पूजा’ इसका ज्वलंत उदाहरण है। डॉ बरुण कुमार ने रचना की भाषा और शैली की प्रशंसा करते हुए कहा कि क्रिया, समास, लाघव आदि का प्रयोग अद्भुत है और साथ ही मानव द्वंद भी बखूबी उकेरा गया है कि शक्ति अन्याय की ओर है और निराला राम के बलिदानी, योगी व्यक्तित्व का उदात्त चित्र रचते हैं। अतिमानवीय स्तर और देव स्वरूप राम की चरित्र स्थापना में निराला अत्यंत सफल हुए हैं जहां उन्हें सीता का भी स्मरण होता है। यह रचना छायावाद ही नहीं संपूर्ण भारतीय काव्य संपदा की विलक्षण धरोहर है जिसे महाकाव्य कहा जा सकता है।
डॉ मणि अंबा ने कहा कि इस रचना में उल्लखित रवि ऐसे ही अस्त नहीं हुआ है बल्कि एक पत्रकारी भूमिका में उस महायुद्ध में अपनी उपस्थिति निभाता है और राम के अनेक विम्बों को प्रकाशित करता है। डॉ किरण खन्ना ने सोई हुई भारतीय मानसिकता को जगाने वाली कविता कहा जिसके द्वारा निराला ने भारतीय गरिमा का पुनःस्मरण करने का अवसर प्रदान किया। श्री राहुल देव ने जानना चाहा कि इस रचना की किन आधारों पर आलोचना हुई है, उन पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती है, आलोचना से कविता छोटी नहीं हो जाती है, इस कविता ने पाठकों का भरपूर स्नेह पाया है और इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि बिना शक्ति के सत्यं, शिवं और सुंदरं को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अल्का जी ने अन्याय जिधर है शक्ति उधर है- की विवेचना आधुनिक समाज के संदर्भों में अपनी टिप्पणी में रखी और गांधी जी का कमजोर वर्गो के साथ खड़े होने का रूपक प्रस्तुत किया और कहा कि उस समय भी प्रभुत्व वर्ग अंग्रेज शासकों एवं उनके अत्याचारों के साथ ही खड़ा था। यह कविता युगीन संदर्भों से हमें अनेक संदेश देती है। निराला सीता के रुप में माँ भारती का उद्धारक और राम के रूप में ऐसा कोई महानायक खोजना चाहते थे।
कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार, आलोचक, भाषा प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ प्रो सूर्य प्रकाश दीक्षित जी ने अपने संबोधन का प्रारम्भ अपने सभी पूर्व वक्ताओं एवं संचालकों का आभार व्यक्त करते हुए किया। आपने कहा कि आज का महत्वपूर्ण विमर्श दुर्गा पूजा के समय में शक्ति की आराधना-अर्चना के समय में हो रहा है और इससे निश्चित ही सुखद संकल्प निकलेंगे। ‘राम की शक्ति पूजा’ के संदर्भ में हुई अनेक आलोचनाओं का संदर्भ देते हुए प्रो दीक्षित जी ने कहा कि शुक्ल जी ने सीता की याद में रो पड़ने को लेकर निराली की आलोचना की थी कि इससे राम का दौर्बल्य प्रकट होता है। रचना की भाषा शैली पर भी कटाक्ष किए गए थे। राम विलास शर्मा ने इसे ओज और औदात्य से परिपूर्ण रचना कहा था और इसमें विरूपित शब्दावलियों (धिक जीवन, धिक साधन, विरोध, शोध आदि) को निराला के व्यक्तिगत जीवन से भी जोड़ने का प्रयास किया था कि इन शब्दों में निराला अपना ही जीवन वृत्त कह रहे हैं। रचना के आखिर में महाशक्ति के आविर्भाव को भी रामविलास शर्मा जी शायद अपनी मार्क्सवादी वैचारिकता के कारण स्वीकार नहीं कर पाए थे।
आपने कहा कि बच्चन सिंह, नंद दुलारे बाजपेयी आदि समकालीन समीक्षकों ने इस रचना पर व्यापक प्रतिक्रियाएं दी थीं। शक्ति की मौलिक कल्पना को आजादी की लड़ाई कहा गया, पुरुषोत्तम नवीन को जुझारू भारतीय माना गया और मौलिक शक्ति को हनुमान जी के एकादश स्वरूप से भी जोड़ा गया और युद्ध को भी चौरी चौरा तथा जालियाँवाला बाग की घटनाओं के साथ साम्य रूप में देखने का प्रयास किया जबकि रचना के प्रकाशन काल और उन घटनाओं में काफी समय अंतराल रहा है।
आपने कहा कि निराला जी की यह एक महनीय रचना है जिसमें उन्होंने एक नई विषय वस्तु, नई शिल्प शैली का विकास किया और प्रत्येक व्यक्ति में सुप्त रुप से व्याप्त शक्ति के आह्वान का नया प्रयोग किया।
आपने कहा कि इसमें सापेक्षतावाद के सिद्धांत का भी प्रतिपादन किया गया है क्योंकि रावण के पक्ष में भी एक महाशक्ति कार्य कर रही है जिसको पराजित करने के लिए राम को भी प्रतिस्पर्धा के लिए एक मौलिक ओज शक्ति का आह्वान करने की प्रेरणा मिली है। रावण की शक्ति उसे शिव की आराधना और दस सिरों की आहुति से प्राप्त है किंतु वह श्यामा विभावरी अंधकार ग्रस्त है और राम के पक्ष में यह शक्ति एकादश रुद्ररूपा है और राम-पूजन-प्रताप तेजः प्रसार की शक्ति है। एक और शक्ति राम अर्जित करते हैं सीता की- जिनके स्मरण मात्र से ही राम के शरीर में सिरहन पैदा हो जाती है, भुजाएं फड़कने लगती हैं और वे सीता स्वयंवर में शिव धनुष भंजन के प्रसंग को याद करते हैं और धनुष तोड़ कर फैंकने के बाद माँ शक्ति का दर्शन करते हैं। राम को आश्चर्य होता है कि वही माँ शक्ति आज अन्याय का साथ दे रही है।
प्रो दीक्षित ने इस कविता को समझने के लिए निराला जी के कुछ निबंध जैसे कि शून्य और शक्ति, अर्थ तथा विवेकानंद एवं परमहंस जी के अद्वैत वेदांत तथा दरिद्र नारायण की परिकल्पना को समझने का विचार दिया। आपने कहा कि यह एक लंबी कविता है और इसमें पौराणिक आख्यान हैं, महनीयता है जिसमें शैव और वैष्णवों के वैचारिक द्वंदों को भी खोजा जा सकता है। उस काल खण्ड में शक्ति के संबंध में अनेक रचनाएं मिलती हैं और उस दौर में अनेक खण्ड काव्य आदि लिखे गए हैं और अनेक रचनाकारों के विभिन्न रूप मिलते हैं। निराला जी स्वयं को पहले दार्शिनिक मानते थे और वे योगी तथा कवि के रुप में अपने को साधते थे। इसलिए जामवान ने राम को प्रेरित किया है कि साधना करने से ही वह शक्ति प्राप्त की जा सकती है जो रावण की शक्ति से अधिक होगी।
छोटी लकीर से बड़ी लकीर खींचने का यह सबसे पहला एक सफल प्रेरक प्रयोग है और शक्ति पूजा में अपना सर्वस्व, यहां तक कि अपना नेत्र अर्पित करने की भी उदात्त उत्सर्ग चेतना है। राम की शक्ति प्राप्ति में अनेक शक्तियों का संयोजन एवं मेल है और जीवन साफल्य के लिए अनेक प्रकार की शक्तियों की आवश्यकता होती है। कवि ने अपनी आस्थाओं को भी अकंपित रखने का आह्वान किया है कि राम के शिविर में मात्र एक मशाल जल रही है। आपने कहा कि इस रचना में अष्टांग योग विधि में कुण्डलिनी जागरण की युक्तियों का भी आलंबन सिद्ध किया गया है और समस्त युक्तियों पर अपना विश्वास दृढ़ रखने का भाव प्रबल रखने की प्रेरणा है। भगवान राम के आँसू अपनी जंघा पर गिरने पर हनुमान के क्रोध की पराकाष्ठा अपने नायक के प्रति घोर आस्था का प्रमाण है।
आपने कहा कि कविता के विषय में कहा जाता है कि उसमें एक भी शब्द निरर्थक हो जाता है तो कवि पाप का भागीदार होता है। ऐसी कसौटियों पर भी यह कविता एक कालजयी रचना है और निराला जी ने शास्त्रोक्त नियमों का घोर पालन किया है और कार्य संकलन, स्थान संकलन, काल संकलन की त्रिवेणी का विलक्षण संगम प्रयोग है जिसमें राम घोर तपश्चर्या करते हुए सिद्धि प्राप्त करते हैं- इस प्रकार यह एक विशिष्ट रचना है। कार्यक्रम में अध्यक्ष, वक्ताओं एवं श्रोताओं एवं सभी सहयोगी संस्थाओं का हार्दिक आभार जय वर्मा ने किया और कहा कि आज इस विमर्श से उन्हें बहुत अच्छा लगा है और इस कार्यक्रम में 25 से अधिक देशों से श्रोताओं ने सहभागिता की है और यह अपने आपमें एक उपलब्धि है और मैं सभी का आभार व्यक्त करती हूँ।