हैदराबाद: कादंबिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार को 362वीं गोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ साहित्यकार विनीता शर्मा की अध्यक्षता में गूगल मीट पर किया गया। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र क्लब अध्यक्ष एवं मीना मुथा कार्यकारी संयोजिका ने बताया कि सर्वप्रथम शुभ्रा महंतो द्वारा सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से सत्र का आरंभ हुआ। डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने शब्द कुसम से सभी उपस्थित साहित्यकारों का स्वागत करते हुए कहा कि क्लब 29वें वर्ष की अपनी साहित्यिक यात्रा कर रहा है। जो भी नवांकुर इस में जुड़ना चाहे उसका स्वागत है। सभी के सहयोग से ही संस्था निरंतर अपनी गतिविधि बनाए रखने में सफल हो रही है।
देवनागरी कहीं लुप्त होती जा रही है
प्रथम सत्र में संगोष्ठी सत्र संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा ने हिंदी दिवस पर पटल पर उपस्थित गणमान्य को अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया। निशी कुमारी ने कहा कि हिंदी को राजभाषा तो बनाया पर व्यवहारिक रूप में अभी तक नहीं अपनाया गया है। इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया का योगदान विशेष रहा है हिंदी के प्रचार प्रसार में। हिंदी को भी व्हाट्सएप पर अंग्रेज़ी लिपि में लिख रहे हैं। देवनागरी कहीं लुप्त होती जा रही है।
हिंदी दिवस केवल एक दिन ही क्यों?
डॉ अहिल्या मिश्र ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हिंदी दिवस केवल एक दिन ही क्यों? क्या हम सच्चे मन से हिंदी के लिए सद्भावना रखते हैं? इसका उत्तर ढूंढना होगा। हिंदी को माध्यम बनाओ अपनी सोच का। हिंदी हर भाषा को एक माला में पिरोने का काम करती है। हिंदी को मस्तिष्क-विचार-देश की अस्मिता के रूप में अपनाएं। डॉ आशा मिश्र ने कहा कि अहिंदी भाषी क्षेत्रों में किसी भी रूप में हिंदी बोलने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए, परफ़ेक्शन नहीं देखना चाहिए।
केंद्र में राजभाषा का प्रयोग
अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि सन 1949 में भारत सरकार ने निर्णय लिया कि हिंदी को राजभाषा राष्ट्रभाषा बनाया जाये। इस निर्णय पर 1953 में कार्यवाहन शुरू हुआ। केंद्र में राजभाषा का प्रयोग होता है और राज्य सरकार के कामकाज उनके क्षेत्रीय भाषा में होते रहे हैं। बहरहाल कोशिश होनी चाहिए कि संपूर्ण भारतवर्ष में प्रत्येक नागरिक हिंदी बोलने का प्रयास अवश्य करें। तत्पश्चात दिनकर जी पर बात करते हुए संगोष्ठी सत्र संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा ने विषय प्रवेश में कहा कि 23 सितंबर 1908 में बेगूसराय में उनका जन्म हुआ। अंग्रेज प्रशासन ने 4 वर्ष में 22 बार उनका स्थानांतरण किया। करीब 61 पुस्तकें आपकी प्रकाशित हुई है। केवल 30 वर्ष की आयु में हुंकार की रचना की। 1961 में उर्वशी की रचना हुई जो 5 अंकों का काव्य नाटक है। पुरुरवा और उर्वशी के अलौकिक प्रेम पर आधारित यह कृति है जिसकी रचना में लगभग 8 वर्ष लग गए थे। साहित्य के पुरौधा दिनकर जी ने उम्र के विभिन्न अवस्थाओं के तेवर चित्रित किए हैं। अप्रैल 1974 को इस रचनाकार ने संसार से विदाई ली।
दिनकर ने ओजपूर्ण कविताएँ लिखीं
श्री प्रवीण प्रणव ने इस श्रृंखला में अपनी बात रखते हुए कहा कि दिनकर ने ओजपूर्ण कविताएँ लिखीं। उनकी जीवन यात्रा में जो भी अवधारणा रही है उसमें द्वन्द दिखता है। यह उनके बचपन से ही द्वन्द चला आया। दिनकर के पिता साधारण किसान थे। स्कूल की दूरी ज्यादा थी नदी पार करके जाना पड़ता था। शादी हुई वहां भी द्वन्द्व की स्थिति सामने नजर आई। दिन के पिता जब दिनकर बहुत छोटे थे तभी गुजर गए। गांधी जी की मृत्यु के बाद उनपर कई कविताएं लिखीं। नेहरू के साथ प्रगाढ़ रिश्ते रहे। बच्चन उनके प्रिय रहे। दिनकर ओजपूर्ण कवि रहे। अंत में वे आध्यात्म की ओर मुड़ गए। अंतिम 6 वर्ष तकलीफ में गुजरे तिरुपति बालाजी धर्म स्थान पर उन्होंने रश्मिरथी का पाठ किया और प्रभु से प्रार्थना की कि अब अपनी शरण में ले लो और वहीं पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी कालजई रचनाओं को हम भूल नहीं पाएंगे।
दिनकर जी के व्यक्तित्व कृतित्व
अध्यक्षीय बात रखते हुए विनीता शर्मा ने कहा कि सभी वक्ताओं ने हिंदी दिवस और रामधारी सिंह दिनकर पर संक्षिप्त समय में अपनी बात रखी। दिनकर जी के व्यक्तित्व कृतित्व के सभी पहलुओं से हमें परिचय कराया। उनके जन्म जयंती पर यह संगोष्ठी का प्रयास निश्चित ही सराहनीय रहा। सभी को साधुवाद देते हुए उन्होंने अपनी बात को विराम दिया। प्रथम सत्र का संचालन अवधेश कुमार सिन्हा ने किया।
कवि गोष्ठी
तत्पश्चात कवि गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ अहिल्या मिश्र ने की और विशेष अतिथि आशीष नैथानी रहे। भावना पुरोहित, किरण सिंह, शिल्पी भटनागर, विनोद गिरि अनोखा, संतोष कुमार रजा, अजय कुमार पांडे, निशी कुमारी, तृप्ति मिश्रा, ज्योति नारायण, डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ दर्शन सिंह, आशीष नैथानी, मीना मुथा वे चंद्र प्रकाश दायमा ने काव्य पाठ किया। डॉक्टर मिश्र ने अपनी टिप्पणी में कहा कि सभी ने हिंदी दिवस के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त की। गीत ग़ज़ल दोहे हाइकु सुनकर अच्छा लगा। सभी रचनाएं सराहनीय रहीं हैं। इसी प्रकार लेखन में जुड़े रहे। डॉ अहिल्या मिश्र ने नवगीत की प्रस्तुति दी। सत्र का संचालन मीना मुथा ने किया। तकनीक की व्यवस्था में डॉक्टर आशा मिश्रा मुक्ता का अमूल्य सहयोग रहा। अवसर पर सभी उपस्थित जनों ने डॉ अहिल्या मिश्र को उनके जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं दी और साहित्य की प्रेरणा आप हमारे लिए हैं यह सद्भावना भी दर्शाई। मीना मुथा के धन्यवाद के साथ गोष्टी का समापन हुआ।