हैदराबाद (डॉ अहिल्या मिश्र और मीना मुथा की रिपोर्ट) : कादंबिनी क्लब हैदराबाद की 357वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से संपन्न हुआ। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने आगे बताया कि संगोष्ठी सत्र का आरंभ प्रवीण प्रणव द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुति से हुआ।
साहित्यकारों का शब्द कुसुमों से स्वागत
डॉ अहिल्या मिश्र ने पटल पर उपस्थित साहित्यकारों का शब्द कुसुमों से स्वागत करते हुए कहा कि संस्था जून माह में अपने 29वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। क्लब की निरंतरता सभी की उपस्थिति के कारण संभव हुई है। विगत् कुछ माह से विभिन्न भाषाओं के रचनाकारों का हिंदी साहित्य को क्या योगदान रहा है, इस पर हमने चर्चा की। आज ज्ञानपीठ पुरस्कार ग्रहीता नरेश मेहता के व्यक्तित्व कृतित्व पर चर्चा होगी।
नरेश मेहता का परिचय
तत्पश्चात संगोष्ठी सत्र संयोजक एवं वक्ता अवधेश कुमार सिन्हा ने नरेश मेहता का परिचय देते हुए कहा कि नरेश जी का जन्म 15 फरवरी 1922 को हुआ। बचपन से ही लिखने पढ़ने का शौक रहा उन्हें। पारिवारिक त्रासदियों को झेलते हुए कुछ अंतर्मुख से हो गए। स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य करते रहे।
“मैं मानव से मानव का सत्य चाहता हूं।”
लगभग 50 कृतियाँ प्रकाशित हुई है। उपन्यास, एकल काव्य संग्रह, खंडकाव्य, निबंध संग्रह आदि प्रकाशित हुए हैं। बांग्ला साहित्यकार शरद चंद्र जी से प्रेरणा मिली। वे कई अर्थों में समकालीन कवियों से भिन्न रहे। वह कहते हैं “मैं मानव से मानव का सत्य चाहता हूं।” काव्य मे करुण रस की प्रधानता रही है। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए। गद्य लेखन में कवियों की कसौटी होती है। नई कविता को उन्होंने सुंदरता प्रदान की।
वामपंथी विचारधारा
वह कविता को साधारण जन की रामायण बनाना चाहते थे। वामपंथी विचारधारा ने भी नरेश जी को प्रभावित किया। यह उनका जन्म शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। धर्मपत्नी महिमा मेहता से विवाह के बाद युवा बेटे को खोने का दुख निश्चित ही नरेश जी को तोड़ गया। लेकिन पुनः लेखन यात्रा ने उन्हें मग्न कर दिया।
डॉ अनीता शुक्ला ने कहा…
प्रमुख वक्ता डॉ अनीता शुक्ला (बडोदरा) ने अपने वक्तव्य में कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी सेवा का कार्य अच्छा चल रहा है। नरेश मेहता का खंडकाव्य ‘संशय की एक’ रात मुझे विशेष लगता है। यह खंडकाव्य युद्ध के माध्यम से शांति की बात करता है। रामचरित्र शास्त्रोक्त और लोकोक्त दोनों पहलुओं से देखा जा सकता है। शास्त्र रूप सकल है और लोक गतिशील रहता है। नरेश मेहता के राम लोग के करीब दिखते हैं। युद्ध कब और क्यों जरूरी होता है? युद्ध मंत्रणा नहीं, दर्शन है। एक तरफ संशय है तो दूसरी तरफ निश्चय है। शांति की स्थापना के लिए युद्ध अनिवार्य है। नरेश मनुष्यता को ऊपर रखना चाहते हैं ।
प्रवीण प्रणव ने अपनी बात रखी
प्रवीण प्रणव ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कई कारणों को नरेश मेहता ने सहा, वे उदास रहते थे। उदासी के साथ आप करते क्या हैं? दुष्यंत ने कहा “अरे कभी रोकर देखो, रोने में बड़ा मज़ा है।” चाचा जी ने नरेश को पढ़ाई में योगदान दिया। उनके अनुशासन को भी सहा। साहित्य सृजन का रहस्य मनुष्य की छठी इंद्रिय है। नरेश मेहता कहते हैं “लेखक बनना मेरी विवशता रही।” गद्य-पद्य बहुत लिखा है। गद्य में संवेदनशील नजर आते हैं। कहानियाँ कम लिखीं। कई कहानियाँ अस्वीकृत हुईं। समाजवादी विचारधारा, रचनाओं मे मिथकीय प्रयोग नजर आता है। गद्य सृजन की पीड़ा काव्य की मानसिकता में दृष्टिगत होता है।
डॉ अहिल्या मिश्र का शानदार वक्तव्य
डॉ अहिल्या मिश्र ने वक्तव्य में कहा कि ए जी आई के साहित्यिक समारोह में नरेश मेहता जी से भेंट का सौभाग्य मुझे मिला। उनके घर जाने का अवसर मिला। दुबले पतले काया की यह मूर्ति निश्चित ही साहित्यिक क्षेत्र में अपना अद्वितीय योगदान रखती है। ‘अरण्य’ संग्रह जब मैंने देखा तब उसे पढ़ने की इच्छा हुई और जाना कि विषय से हटकर लेखन क्या है? उनका काव्य मार्गदर्शन और प्रेरणा देता है। धर्म, दर्शन पर कई किताबें लिखी हैं। कालजयी रचना कवि को अमर कर देती है। पत्नी महिमा से भेंट हुई। घर की सुरुचिपूर्ण सजावट से आभास हुआ किकिसी कलमकार का यह कक्ष है। निश्चित ही नरेश मेहता के व्यक्तित्व कृतित्व से आज हम सभी विस्तार के साथ परिचित हो पाए हैं और यह इस सत्र की सफलता है। सत्र का संचालन अवधेश कुमार सिन्हा ने किया।
कवि गोष्ठी का संचालन
कवि गोष्ठी का संचालन प्रवीण प्रणव ने किया। उपस्थित रचनाकार शुभ्रा महंतो, तृप्ति मिश्रा, विनोद गिरी अनोखा, संपत देवी मुरारका, आशीष नैथानी, डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’, सुनीता लूल्ला, अवधेश कुमार सिन्हा, मीना मुथा, निवेदिता चक्रवर्ती, प्रवीण प्रणव ने विभन्न रचनाएं प्रस्तुत कीं। दोहे, नवगीत, कविताएं, भजन, यात्रा संस्मरण, गीत, गजल, हायकू, का समावेश रहा।
कार्यक्रम का समापन
अध्यक्षीय टिप्पणी व काव्यपाठ करते हुए डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि सभी की रचनाएं सुनकर आनंद आया। निश्चित ही प्रत्येक रचनाकरों का बेहतरीन प्रयास कर रहा है। डॉ रमा द्विवेदी कि स्वास्थ्य का भी कुशल क्षेम पूछा गया। मीना मुथा के धन्यवाद के साथ साहित्यिक कार्यक्रम का समापन हुआ। यह घोषणा की गई कि जून माह में फिजिकल गोष्ठी का आयोजन होगा। नरेंद्र परिहार (नागपुर), डॉ सुरेश कुमार मिश्रा उतृप्त, डॉ रमा द्विवेदी व सुषमा देवी की भी उपस्थिति रही है।