हैदराबाद (मीना मुथा की रिपोर्ट): कादंबिनी क्लब की 348वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट पर रविवार को अवधेश कुमार सिन्हा (नई दिल्ली) की अध्यक्षता में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्ष) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने आगे बताया कि इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता डॉ वीणा विज (कवयित्री, साहित्यकार, कलाकार, जालंधर) उपस्थित थीं।
कादम्बिनी क्लब 28वें वर्ष में पदार्पण
डॉ अहिल्या मिश्र ने शब्द कुसुम से उपस्थित सदस्यों का स्वागत करते हुए कहा कि कादम्बिनी क्लब ने अपनी निरंतरता बरकरार रखते हुए 28वें वर्ष में पदार्पण कर लिया है। अपने साहित्यिक यात्रा में सभी का साथ पाकर ही संस्था इस मुकाम पर पहुंच पाई है। क्लब ने दक्षिण में हिंदी का ध्वज लहरा रखा है। हिंदी के इस कारवां में आज डॉक्टर वीणा विज भी जुड़ गई हैं जो स्वदेश में रहकर साहित्य सेवा में जुटी हुई हैं। विदेशों में भी प्रवासी बनकर निरीक्षण परीक्षण करते हुए आप वहां भी कई संस्थाओं से जुड़कर साहित्य सेवा कर रही हैं। आज हम आपका इस साहित्यिक परिवार में स्वागत करते हैं।
मौन रहकर ही हम विचार कर पाते हैं
प्रथम सत्र में काव्य की संरचना और सौंदर्य स्वरूप विषय पर डॉ वीणा विज ने अपने संबोधन में कहा कि काव्य की संरचना में कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। काव्य संरचना के लिए अंतर मुख होने के साथ ही बाहर भी देखना होता है। हमारे भीतर जो भावना प्रस्फुटित होते हैं उन्हें कभी-कभी अखबार या कागज का टुकड़ा यदि मिल जाए तो उस पर ही शब्दों या भावों को अंकित कर देते हैं। चिंतन की प्रक्रिया कवि के अचेतन अवस्था में चलती रहती है। मौन रहकर ही हम विचार कर पाते हैं। कविता को भोगना और बिछाना पड़ता है तभी वह साथ-साथ चलती है। आवेग को महसूस करना काफी नहीं है। उसे सोचना समझना भी जरूरी है। काव्य में लक्षणा व्यंजना शक्ति भी महत्वपूर्ण है। सोनेट का हमारे यहां ज्यादा चलन नहीं है।
काव्य का सौंदर्य, प्रतीकों, अलंकारों के साथ मानवीय संवेदना को जागृत करते हैं
कविता में भाव की अधिक प्रधानता होती है। इसे समझना कठिन नहीं है। आप बस पढ़ते रहिए फिर यह अपने आप समझ में आ जाएगी। काव्य रचना एक साधना की स्थिति है जिसमें कलम मेडिटेशन का रोल निभाती है। बिंब क्या होता है? दिल सुलग रहे है मानो जंगल जल रहे हैं, श्यामल बदली मुख चूमे मेघराज आदि उदाहरणों के साथ उन्होंने रीतिकाल, छायावाद के कविताओं की भी संक्षिप्त चर्चा की। काव्य का सौंदर्य, प्रतीकों, अलंकारों के साथ मानवीय संवेदना को जागृत करते हैं। निराला, जयशंकर प्रसाद के काव्य में राष्ट्रीयता, अतीत का गौरव, वैचारिक सौंदर्य स्पष्ट नजर आता है। छंद, लय, नाद, अलंकार, अनुप्रास, उपमा, मानवीकरण अलंकार आदि की संक्षिप्त में बात करते हुए डॉ वीणा ने अपने सारगर्भित विचार रखे। खंडकाव्य, श्रव्य काव्य, दृश्य काव्य के भी उदाहरण डॉ वीणा विज ने प्रस्तुत किए।
रस छंद अलंकार पर विस्तारित और सारगर्भित चर्चा
डॉ अहिल्या मिश्र ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आज रस छंद अलंकार पर विस्तारित और सारगर्भित चर्चा हुई है। लिखने के साथ-साथ लेखन में कविता अपने मानदंडों पर कहां खड़ी उतर पा रही है इसे देखना आवश्यक़ है। मन में आया तो लिख देते हैं, परंतु इन बातों का गठबंधन होना चाहिए। आज चर्चा किए गए सिद्धांतों को प्रत्येक कवि अपनी रचना में उतारे। कविता का मतलब मात्र तरंगों और लहरों पर नाचना नहीं है। काव्य सौंदर्य में सुंदरता के साथ वीभत्स रस भी आता है और शब्द संरचना उस रस को भी पठनीय और श्रवणीय बना देती है।
सवाल, जवाब और समीक्षा
सरिता सुराणा ने कहा कि वीणा विज जी ने कविता के भाव, विचार बिम्ब नाद के साथ अलंकारों के बारे में भी संक्षिप्त में बताया है। सारगर्भित चर्चा रही है। अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि कविता क्लासिकल शास्त्रीय स्वरूप है। उन्होंने पूछा कि राजनेताओं या राजनीति पर हो रही कविताओं में सौंदर्य नहीं है क्या? इस पर डॉक्टर विज ने जवाब दिया कि वे प्रगतिवादी कवि हैं। उनका अपना सौंदर्य है। सीमा जैन ने कहा कि यथार्थ को जो चित्रित करता है चाहे वह विभत्स यथार्थ ही क्यों ना हो सही और सटीक शब्दावली निश्चित ही सौंदर्य बोध कराती है। जैसे कि ‘वह सुबह कभी तो आएगी’ गीत को ही लीजिए। डॉक्टर सुरेश कुमार मिश्र ने प्रश्न किया कि आजकल अकविता का प्रचलन है यह कैसे तय करें कि यह कविता है या नहीं? इसपर डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि यह तय करना समीक्षकों का कार्य है। अवधेश कुमार सिन्हा ने इस अवसर पर आचार्य नंदकिशोर और मुक्तिबोध की दीर्घ रचना का भी जिक्र किया। प्रथम सत्र का आरंभ ज्योति नारायण द्वारा निराला रचित सरस्वती वंदना से हुआ। प्रवीण प्रणव ने सत्र का संचालन करते हुए डॉ वीणा विज के प्रति आभार व्यक्त किया।
समसामयिक विषय कवि गोष्ठी
दूसरे सत्र में समसामयिक विषयों पर केंद्रित कवि गोष्ठी हुई जिसमें कविता, गीत, गजल, लघु कथा, हायकु आदि विधाओं को समाविष्ट करते हुए रसपूर्ण काव्य पाठ का उपस्थित सदस्यों ने आनंद लिया। इसमें भावना पुरोहित, सीमा जैन, विनीता शर्मा, डॉ रमा द्विवेदी, संगीता शर्मा, डॉक्टर आशा मिश्रा ‘मुक्ता’, दीपक दीक्षित, शीला भनोत, ज्योति नारायण, डॉक्टर सुरेश कुमार मिश्रा, डॉ वीणा विज, डॉक्टर पंखुड़ी सिन्हा (मुजफ्फरपुर बिहार) दीपा कृष्णदीप, मंजू शर्मा, श्रुति मिश्रा, दर्शन सिंह, सरिता सुराणा जैन, जी परमेश्वर, संपत देवी मुरारका, विनोद गिरी अनोखा, सुनीता लुल्ला, किरण सिंह, मीना मुथा, डॉ अहिल्या मिश्र, रमाकांत श्रीनिवास, मीनू कौशिक, प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा, प्रवीण प्रणव, जी परमेश्वर आदि सदस्यों ने भाग लिया।
नए सदस्य भी कादंबिनी क्लब परिवार से जुड़े
अवधेश कुमार सिन्हा ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि प्रसन्नता की बात है कि आज कई नए सदस्य भी कादंबिनी क्लब परिवार से जुड़े हैं। प्रथम सत्र बहुत ही सफल रहा। डॉक्टर वीणा विज ने प्वाइंट-टू-प्वाइंट बात रखी और कविता के मूल तत्वों का विवेचन करते हुए काव्य सौंदर्य तत्व की बात की। चर्चा के बाद प्रश्नोत्तर भी लाभदायक रहे। काव्य गोष्ठी का सत्र भी सुंदर रहा। कविता, गीत, गजल, अनुवाद (राजस्थानी में), बाल कविता की नाट्य प्रस्तुति, लघु कथा आदि विभिन्न विधाओं की प्रस्तुति आज हुई है। तेवरी के संदर्भ में आचार्य ऋषभ देव शर्मा का भी जिक्र अवधेश कुमार ने किया। अंत में फिनिक्स रचना के साथ उन्होंने अपनी बात को विराम दिया।
संचालन और समापन
मीना मूथा ने उपस्थित अतिथि गण, क्लब अध्यक्षा डॉ अहिल्या मिश्र व कार्यक्रम संचालन कर्ता प्रवीण प्रणव के प्रति आभार व्यक्त किया तथा इसी प्रकार साहित्य के प्रति जुड़े रहने का आग्रह किया। गोष्ठी में सुख मोहन अग्रवाल, संजय चौहान, लीला बजाज, एन आर श्याम, प्रतिभा विदारकर, संतोष रजा गाजीपुरी की भी उपस्थिति समय-समय पर बनी रही। डॉ वीणा ने क्लब की गतिविधि को जानकर प्रसन्नता व्यक्त की। जी परमेश्वर ने कहा कि कादंबिनी क्लब के 27 वर्ष यानी एक परिक्रमा पूरी कर ली है। अतः सभी को साधुवाद।