भारत और सिनेमा ये दोनों एक दूसरे के परिपूरक हैं। भारत और हिंदी सिनेमा तो बस बने ही एक दूजे के लिए है, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। सिनेमा तो हरेक भाषा में बनती है, लेकिन बॉलिवुड को पहचानना हॉलीवुड के बाद असम्भव नहीं है। आज उस बॉलीवुड को बॉयकट का सामना करना पड़ रहा है।
आम जनता अपने हीरो और हीरोइन को गुंडा, वैश्या, जेहादी और भी न जाने क्या – क्या कह रहे हैं तो हीरो – हीरोइन भी अपने अन्नदाता जनता से पंगा ले रहे हैं, उन्हें बॉकट चैलेन्ज दे रहे हैं। इससे न फायदा जनता का है न नुकसान अभिनेताओं को होगा वे अकूत सम्पत्ति के मालिक हैं। पर, अगर यह बॉयकट ट्रेंड यूँ ही चलता रहा तो फिर छोटे-छोटे लाइटमैन, कैमरामैन, हेयरड्रेसरस आदि को निकट भविष्य में आर्थिक तंगी का सामना अवश्य करना पड़ सकता है।
सवाल यह भी है कि अगर सिनेमा जगत को नुकसान होता रहेगा तो क्या इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पड़ नहीं पड़ेगा? यह भी एक उद्योग ही है। तो क्या, बॉयकट ट्रेंड को बंद कर देना चाहिए? नहीं, कदापि नहीं। ये तो हमें मानना पड़ेगा कि बॉलीवुड पिछले कई दशकों से नशाखोड़ी, जिस्मफरोशी, बाल उत्पीड़न, महिला तथा पुरुष उत्पीड़न, असभ्य प्रसारण आदि का केंद्र बन गया है और इसका दोष जनता को भी जाता है जिन्होंने अभिनेताओं को देश के सैनिकों, शिक्षकों, डॉक्टरों आदि से सम्मान से भी अधिक जाकर ईश्वर का स्थान प्रदान कर दिया।
हमारे देश में हीरो शब्द का अर्थ अभिनेता है। जबकि अभिनेता का अनुवाद तो अंग्रेजी में ACTOR है। ACTOR को HERO हमने बनाया। HERO अपनी सीमा भूलकर तानाशाह बन गया। दक्षिण में नई फ़िल्म रिलीज होने पर बाकायदा ACTOR के फोटो का दुग्धाभिषेक किया जाता है। भारत आज स्वाधीनता का 75वा साल मना रहा है। फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर पिट रही है, करोड़ों का नुकसान हो रहा है फ़िल्म इंडस्ट्री को। ताने, गलियों से भरे मैसेज, वीडियोज़ वायरल हो रहे हैं इंटरनेट में।
याद आता है 1997 भारत अपनी स्वाधीनता की 50 वी सालगिरह मना रहा था और फ़िल्म आई थी ‘परदेस’। एक गाना था I LOVE MY INDIA। इस गाने के बोल हरेक भारतवासी को हमेशा याद रखना चाहिए न जनता बड़ी, न कोई अभिनेता बड़ा। सबसे बड़ा देश, उसकी संस्कृति, उसकी सभ्यता। हर उस व्यक्ति, दृष्य, भाषा, बोली का बॉयकट जारी रहना चाहिए जो देश को अपमानित या लज्जित करे लेकिन अच्छी सिनेमा, प्रेरणादायक सिनेमा को सराहना न भूले।
बॉयकट ओछी रजनीति प्रेरित, धार्मिक कट्टरता प्रेरित नहीं होनी चाहिए। हमें सत्यजित रे, NTR, राज कपूर, सलील चौधरी, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, जैसे अनगिनत अभिनेताओं, निर्देशकों, गायकों आदि के योगदान को व्यर्थ नहीं जाने देना है। हमारा उद्देश्य भारतीय सिनेमा जगत को (चाहे वह किसी भी भाषा की हो ) देश के साथ फिर से जोड़ना है। जनता को भी सचेत होना है। OTT की लत से भी भावी पीढ़ी को बचाना है।
– लेखिका डॉ सुपर्णा मुखर्जी (96032 24007)