दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास’ विषय पर इन वक्ताओं ने डाली रोशनी

हैदराबाद : केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा), हैदराबाद केंद्र द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास’ (दक्षिण भारत के साहित्य के विशेष संदर्भ में) के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी द्वारा की गई।

मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व सम-कुलपति, हैदराबाद विश्वविद्यालय तथा केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा के शासी परिषद सदस्य प्रो. आर. एस. सर्राजु, बीज वक्ता के रूप में हिंदी परामर्शी, दूरस्थ शिक्षा, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के प्रो. ऋषभदेव शर्मा तथा संगोष्ठी के संयोजक केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे तथा सह-संयोजक एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. फत्ताराम नायक मंच पर उपस्थित रहे। संगोष्ठी का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन और माँ सरस्वती की वंदना के साथ हुआ। मंचस्थ अतिथियों का स्वागत मल्यार्पण, पुष्पगुच्छ, शॉल एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर किया गया।

उद्घाटन सत्र में अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी ने कहा कि आज हमें साहित्य को नई दृष्टि से देखने की आवश्यकता है। हम कौशल विकास की दृष्टि से साहित्य को स्थापित कर यह संदेश देना चाहते है कि साहित्य में विभिन्न कौशल हैं, हमें उनकी ओर आगे बढ़ना होगा। आपने कहा कि हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा में ऋषि-मुनियों की प्रर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। हमें उस साहित्य को जीवन में क्रियान्वयन की आवश्यकता है। आज समय आ गया है साहित्य को हमें कीर्तन भजन प्रवर्तन से निकाल कर उस पर नई दृष्टि से विचार करना होगा।

मुख्य अतिथि प्रो. आर. एस. सर्राजु ने अपने वक्तव्य में बताया कि कृत्रिम बुद्धिमता के दौर में हमें जीवन कौशल को सीखने की आवश्यकता है। कौशल विकास की बात तब आती है जब हम लोग अपनी परंपराओं से दूर हो जाते हैं। आज हमें लोक संस्कृति और जीवन को जानने की आवश्यकता है जो हमें तमिल, तेलुगु, कन्नड़ व मलयालम साहित्य में देखने को मिलती है।

बीज वक्ता के रूप प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि मूलभूत कौशल भाषाओं की प्रवीणता है इन कौशलों में वैज्ञानिक प्रवाह, मानव और संवैधानिक मूल्यों का ज्ञान है। साहित्य में कौशल की बात करें तो जीवन जीने के पैमाने हमें साहित्य के माध्यम से मिलते हैं आज दैहिक सुंदरता से अधिक भाषिक सुंदरता को अपनाने की आवश्यकता है। उसके लिए हमें भाषा कौशल को अपनाना होगा।

संगोष्ठी संयोजक एवं क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे जी ने कहा कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य हम साहित्य को पढ़कर किस प्रकार कौशल विकास को बढ़ा सकते हैं इस पर मंथन किया जाएगा। आज जीवन में मूलभूत कौशल अपनाने की आवश्यकता है। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र का सफल संचालन डॉ. सुषमा देवी ने किया व आभार डॉ. फत्ताराम नायक ने किया।

प्रथम दिन तीन तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। प्रथम सत्र (तेलुगु साहित्य में मूलभूत कौशल) की अध्यक्षता प्रो. पी. माणिक्यांबा ‘मणि’ ने कहा कि साहित्य जीवन को सही ढंग से सीखाता है और उससे मूलभूत कौशल का विकास होता है। मुख्य वक्ता डॉ. सुमनलता ने परिवार में कौशल विकास की भूमिका की आवश्यकता पर बल दिया। इस सत्र में वक्ता के रूप में डॉ. जे. आत्माराम, डॉ. दत्ता शिवराम साकोळे, रूपाचारी तथा संचालन डॉ. रजनीधारी ने किया।

सामानांतर सत्र के अध्यक्ष प्रो. वी. कृष्णा ने संगोष्ठी के इस विषय को स्पष्ट करते कहा कि यह एक आंदोलन है जिसे कुलकर्णी जी को दक्षिण भारत में ही नहीं पूरे भारतीय भाषाओं में फैलाना चाहिए। मुख्य वक्ता डॉ. नीरजा गुर्रमकोंडा ने भाषा और साहित्य के संदर्भ में अपनी बात रखते हुए कहा कि साहित्य मनुष्य के विकास का संपूर्ण शक्तिशाली उपकरण हैं। वक्ता के रूप में डॉ. अनीता गांगुली, डॉ. सुषमा देवी एवं आरती तथा संचालन डॉ. पंकज सिंह यादव ने किया।

द्वितीय सत्र ‘तमिल साहित्य में मूलभूत कौशल’ की अध्यक्षता डॉ. ए. भवानी ने किया। आपने तमिल साहित्य की प्राचीनता पर बात करते हुए उसमें निहित मूलभूत कौशल पर प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. वी. पद्मावती ने आभासी मंच के माध्यम से इंद्रियों पर नियत्रंण, मधुर वचन व मानव विकास पर साहित्य के माध्यम से अपनी बात रखी। इस सत्र के वक्ता के रूप डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, एस. प्रसन्ना देवी, डेनियल राजेश, के. रामनाथन आभासी मंच के माध्यम से जुड़े तथा संचालन डॉ. रचना चतुर्वेदी ने किया। संजय गुरव ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

सायं को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें कोल्हापुर जिले के हिंदी अध्यापक प्रतिभागी अरूंधती ठाकरे ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया। अक्षता अमर शेंडे, सुरेखा शिवाजी नंदनवाडे, धनश्री वसंतराव कोंडेकर, सुप्रभा मारुतीराव जाधव एवं रावराणे रेखा अजित ने सामूहिक मराठी लोक नृत्य के साथ-साथ पंडित बापू कांबळे, ए. ए. पन्हालकर, नागोजी जिवबा बाचूळकर श्वेता लांडे, अक्षता शेंडे ने लोकगीत प्रस्तुत किया। बालकृष्ण माष्णू गणाचारी ने एकल नाट्य प्रस्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन राजाराम कोठवाले व डॉ. दत्ता शिवराम साकोळे ने मंच का संचालन किया। अंत में ‘वंदे मातरम्’ गीत के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।

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