विशेष लेख : प्राचीन वैदिक विवाह संस्कार और आधुनिक सह-जीवन संबंध का समाज पर दुष्प्रभाव व सुझाव

[नोट- इस समय समाज में विवाह, पति-पत्नी, सह-जीवन, प्रेम विवाह और अवैध संबंध (?) पर अनेक प्रकार के खबरें मीडिया की सुर्खियों पर हैं। इस विषय पर अच्छे और बुरे परिणाम पर चर्चा भी हो रही है। यदि विवाह, पति-पत्नी, सह-जीवन, प्रेम विवाह और अवैध संबंध (?) ठीक से चल रहे हैं तो किसी को चिंता करने और परेशान होने की जरूरत नहीं है। चिंता और परेशान तब होनी चाहिए जब इन संबंधों के लेकर खून खराबा होता है और लोगों की रात की नींद उड़ जाती है। इन रिश्तों में गलत होते देखकर एक जिम्मेदार नागरिक खामोश नहीं बैठता है और बैठना भी नहीं चाहिए। वह इस पर सोचता हैं और समाज के लिए एक उपाय के तौर पर कुछ सुझाव देना चाहता हैं और देना भी चाहिए। इसी विषय पर पंडित गंगाराम स्मारक मंच के चेयरमैन भक्त राम ने एक दिन अपने मित्र अनिल कौशिक के साथ इस विषय पर गंभीर चर्चा की और समाज की खुशहाली जीवन के लिए यह लेख भेजा है। विश्वास है कि सुधी पाठक भी इस पर अपने विचार भेजेंगे। हां, लेखक के विचार से तेलंगाना समाचार का समहत होना आवश्यक नहीं है। क्योंकि यह विचार लेखक के अपने हैं।]

भारतीय संस्कृति जो अति प्राचीन संस्कृति है और इस संस्कृति को अपनाने के कारण ही भारत विश्वगुरु कहलाता और बड़े सम्मान और आदर के साथ विश्व में जाना जाता था। हमारी संस्कृति में विवाह की आयु पुरुष और स्त्री के लिए निर्धारित थी। पुरुष और स्त्री गुरुकुल में विद्या प्राप्ति के बाद ही ग्रहस्थाश्रम में प्रवेश करते थे। ऐसा कहा जाता है कि भारतवर्ष में सन् 1685 में 72 लाख गुरुकुल चलते थे, जहां पर वैदिक संस्कृति सिखाई, पढ़ाई और लिखाई जाती थी। सभी आश्रमों में सर्वश्रेष्ठ आश्रम ग्रहस्थाश्रम ही कहा जाता था। इस आश्रम में प्रवेश के पहले ब्रह्मचर्य तपस्या गुरुकुल से मिलती थी।

गृहस्थाश्रम में आनंद है, तपस्या है, सुख है, साथ में बड़ा दायित्व भी। वानप्रस्थ और संन्यास आश्रमों की देख रेख, सेवा, दान, पुण्य आदि इसी आश्रम पर निर्भर रहते हैं। साथ में विवाह के बाद संतानों का पालन पोषण भी। इसी पवित्र आश्रम में पति और पत्नी अगले सात जन्मों तक साथ रहने की प्रार्थना करते हैं और एक दूसरे के लिए जीवन अर्पित करते हैं और उन्नति के राह पर मोक्ष प्राप्ति की राह पर चलते हैं।

पति अपने व्यवसाय आदि में व्यस्त रहता है तो पत्नी घर के सभी कार्य करना और अपने वृद्ध माता-पिता आदि परिवार की सेवा करना और संतानों के भविष्य के लिए अच्छे-अच्छे संस्कार देना, यह दिनचर्या हुआ करती है। अपनी सन्तान को गुरुकुल में प्रवेश के बाद और भी कई कलाओं और वेदों को पढ़कर विद्वान बने और सुगुण संपन्न हो, यह कामना रहती थी। यह था एक वैदिक सनातनी दंपति की कार्यशैली- एक उद्देश्य, एक लक्ष्य।

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अब हम देख रहे हैं कि पश्चिमी देशों में “सह – जीवन संबंध” (लाइव इन रिलेशनशिप) बहुत ही तेजी से इसकी बढ़ोतरी हुई है। अब समाज में उसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। वहां के लोग इस ग्रसित जीवन से बाहर आना चाहते हैं। हमारी संस्कृति को ग्रहण करना चाहते हैं। और हम है‌ कि इस दूषित संस्कृति को भारत में प्रवेश दे दिए है। हमें आश्चर्य होता है कि ऋषि मुनियों और वेदों से मिली/प्राप्त हुई इतनी आनंदित करने वाली संस्कृति को अंगूठा बताकर इसमें तेजी से बढ़ोतरी हो रही है जो हमारे सभ्य समाज को नरक दिशा में ले जा रही है।

इस पवित्र वैवाहिक जीवन जो वैदिक संस्कृति से मिलता है, उसे नहीं अपनाकर पश्चिम में प्रचलित संस्कृति से सभ्यता को नष्ट कर रहे हैं और पूरे समाज को बिल्कुल ही गलत राह में ले जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार अगर कोई सही-सही कदम ना उठाया नहीं गया तो अगले 20 वर्षों में भारत की आबादी का 80 से 85 फीसदी हिस्सा सह-जीवन संबंध पर रहेगा। यह बहुत ही चिंता का विषय है। हमारे पूर्वजों द्वारा दिया गया इतना अच्छा, मधुर एवं पवित्र संस्कारों वाला यह समाज हमसे दूर होकर अंधकारमय जीवन की ओर अग्रसर हो रहा है। समाज को तुरंत ही इस दिशा में कदम उठाना चाहिए और समाज में आने वाले पाप संबंधों को दूर हटाने और सनातनी संबंधों को जागृत करने, अपने पुराने प्रचलित पवित्र पति-पत्नी के रिश्तों में और संसार का उपकार करने वाले स्वस्थ परंपरा को जागृत करने की आवश्यकता है।

पश्चिम के देशों में समस्या बढ़ती जा रही है। जैसे-जैसे व्यक्ति एक उम्र पार कर जाता है। वहां का समाज हमारे पवित्र रिश्तों से बहुत कुछ सीखना चाहता है और अपनाना चाहता है। हमारे पास वहां की संस्कृति को अपनाया जा रहा है। यह हमें भविष्य के लिए अंधकारमय दिख रहा है। हमें अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को इससे बचाना चाहिए। भारतवर्ष सोने की चिड़िया, विश्व गुरु तभी कहलायेगा जब हम इस पवित्र वैदिक सनातन वैवाहिक संबंध में बन्धे रहेंगे।

भक्त राम
चेयरमैन
पंडित गंगाराम स्मारक मंच
98490 95150

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