वसंत ऋतु के आगमन पर वासंती कविता का भव्य आयोजन, इन कवियों ने लिया भाग

[वसंत को ऋतुराज कहा जाता है। जब वसंत आता है तब स्नेह प्रेम और प्राकृतिक आनंद लाता है। हवा हूँ हवा हूँ वसंती हवा हूं- स्वतः ही वासंती हवा अपनी कहानी अपनी ही जुबानी कहती है। जीवन, यौवन, ऊर्जा और उल्लास से भर जाता है। वसंत सभी को प्यारा होता है और जादू सा असर करता है]

हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट) : केंद्रीय हिन्दी संस्थान,विश्व हिन्दी सचिवालय,अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और वातायन के तत्वावधान में वैश्विक हिन्दी परिवार के संयुक्त तत्वावधान में सुप्रसिद्ध कवि डॉ बुद्धिनाथ मिश्र की अध्यक्षता में वासंती स्वर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान वासंती स्वर फूट पड़े। उन्होने पीली चादर ओढ़े वसंत की गहन अनुभूति कराई तथा सुमधुर कंठ से वासंती वर्णन में गाया कि फागुन के दिन आने लगे, फागुन के कार्यक्रम का तीस से अधिक देशों के सुधी श्रोताओं ने भरपूर आनन्द उठाया।

आरंभ में रेलवे बोर्ड में राजभाषा के निदेशक डॉ बरुण कुमार ने वसंत ऋतु की सारगर्भित पृष्ठभूमि प्रस्तुत की और वाग्देवी को याद करते हुए प्राचीन लेखन से आधुनिकता तक वसंत का बोध कराया। सिंगापुर से साहित्यकार आराधना झा श्रीवास्तव ने नपे तुले सधे और संतुलित शब्दों में बखूबी कवितामय संचालन संभाला और आत्मीयता से सबको प्रस्तुति हेतु आमंत्रित किया।

ब्रिटेन में तकनीकीविद एवं कवयित्री आस्था देव ने अपनी वासंती प्राकृतिक कविता में जन्म भूमि के प्रति ललक यानी नास्टेल्जिया को लेकर भारत और ब्रिटेन के तुलनात्मक वसंत की प्रस्तुति दी और आदमी की बेचारगी पर वसंत के फूलों के झड़ने का एहसास कराया। आस्ट्रेलिया की रचनाकार रेखा राजवंशी द्वारा प्रकृति प्रेम सुनाया गया। ब्रिटेन की साहित्यकार दिव्या माथुर की बाल कविता ‘सिया का पहला वसंत’ की प्रस्तुति दी गई जिसमें वासंती जीवन दर्शन की बालपन अनुभूति थी। दिल्ली की कवयित्री अलका सिन्हा द्वारा शहर को छबीला दूल्हा बनाते हुए अपनी कविता में गांव और शहर के बीच वसंत से प्राकृतिक गठबंधन कराया गया। दिल्ली के ही दोहाकार कवि नरेश शांडिल्य ने वसंत में प्रेम के उत्सव मधुमास का अहसास कराया और ‘हृदय मिलन की आस राधिके आया है मधुमास’ सुनाया।

वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष एवं साहित्यकार अनिल जोशी ने सभी का आदर करते हुए कालेज के समय की कविता सुनाई और ‘शब्द एक रास्ता है’ के माध्यम से साहित्य और जीवन दर्शन तथा साधना की अनुभूति कराई।उन्होने शब्दों को प्रार्थनाओं में पिरोकर समर्पण से अभिषेक भी कराया। एक विशेष कविता ‘अस्तित्व बोध’ के माध्यम से जीवन की दूरदर्शी दृष्टि दी और बताया कि स्वयं उनके सुपुत्र ने इससे चुपचाप प्रेरणा ली। मुख्य अतिथि के रुप में डॉ लक्ष्मी शंकर वाजपेयी द्वारा वासंती शायरी सुनाई गई और आसमान से सुबह की लाली सी दृष्टि दी गई। उन्होने सड़क पर पड़े हुए घायल को उठाने वाले को भी वासंती मनुष्य के रूपक में ढाला।

जापान से जुड़े पद्मश्री प्रो तोमियो मिजोकामि ने प्रसन्न मुद्रा में कहा कि जापान में अभी वसंत नहीं आया है। वे भारत में इस माह वसंत में आ रहे हैं जिससे बहुत हर्षित है। अनिल जोशी ने उनका अभिनंदन करते हुए कहा कि हम सब प्रतीक्षारत हैं। वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ नारायण कुमार ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए निराला की कविता ‘मैं हूं वसंत का अग्रदूत’ और सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ‘वीरों का कैसा हो वसंत’ की तर्ज पर बूढ़ों का कैसा हो वसंत की आहट सुनाई। उन्होने आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के वसंत वर्णन की ओर भी ध्यान खींचकर सार्थक जीवन जीने की सलाह दी।

कार्यक्रम में अमेरिका से नीलम जैन, यूके से डॉ पदमेश गुप्त, साहित्यकार अरुणा अजितसरिया, शैल अग्रवाल, रूस से प्रो अल्पना दास, सिंगापुर से संध्या सिंह, कनाडा से शैलेजा सक्सेना, खाड़ी देश से आरती लोकेश, थाइलैंड से प्रो प्रिया, श्रीलंका से प्रो अतिला कोतलावल तथा भारत से नारायण कुमार, मुकुल जैन, प्रेम विरग, प्रसून लतान्त, शशिकला त्रिपाठी, योगेश प्रताप, मालिक मोहम्मद ,रश्मि वार्ष्णेय, पी के शर्मा, विजय नगरकर, संध्या सिलावट, विवेकानन्द, विश्वजीत मजूमदार, सुकन्या शर्मा, आयुष प्रजापति, अंशिका वर्मा, वीर बहादुर, शशिकांत पाटील, अशोक कुमार सिंह, शुभम राय त्रिपाठी, संजय कुमार, अपेक्षा पाण्डेय, अनिल साहू, सरिता, स्वयंवदा, ऋषि कुमार, कृष्ण कुमार एवं जितेंद्र चौधरी आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। इस अवसर पर शीतांशु जी के अनेक शिष्य भी उपस्थित होकर धन्यता का अनुभव किए। तकनीकी सहयोग का दायित्व श्री कृष्ण कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया। मौके पर अनेक शोधार्थी मौजूद थे। समूचा कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के अनूठे समन्वय में सम्पन्न हुआ।

अंत में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो राजेश गौतम द्वारा आत्मीय भाव से माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, सम्माननीय कवि-कवयित्रियों, संयोजकों, समन्वयकों, संचालकों, सहयोगियों, शोधार्थियों एवं सुधी श्रोताओं आदि को नामोल्लेख सहित धन्यवाद ज्ञापित किया गया। समूचा कार्यक्रम वासंती बयार और गुणग्राह्यता सहित काव्यमयी रसधारा में सानंद सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

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