हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट) : विश्व हिन्दी सचिवालय, केंद्रीय हिन्दी संस्थान और अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के सहयोग से 19 नवम्बर को विश्व कप फाइनल क्रिकेट मैच के माहौल में वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर से ‘हिन्दी शिक्षण की चुनौतियाँ’ विषय पर वैश्विक विद्वानों ने अपने सारगर्भित अनुभव प्रकट किए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अमेरिका की पेंसिल्वेनियाँ यूनिवर्सिटी के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो सुरेन्द्र गंभीर जी ने की। इस अवसर पर विश्व हिन्दी सचिवालय मॉरीशस की महासचिव डॉ माधुरी रामधारी द्वारा सान्निध्य प्रदान किया गया जिसमें सभी महाद्वीपों के विद्वानों द्वारा उत्साहवर्धक ढंग से भाग लिया गया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो गंभीर ने भाषा और साहित्य की महत्ता, शिक्षण प्रविधि, भाषा द्वैत, संवाद, निष्पादन और शिक्षण विषय वस्तु आदि पर शोधपरक सार प्रस्तुति देकर चुनौतियों का निराकरण किया और बेहतरीन शिक्षण के लिए प्रोत्साहित किया। विश्व हिन्दी सचिवालय की महासचिव डॉ माधुरी रामधारी ने वैश्विक हिन्दी शिक्षण की सोचनीय स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए ऑनलाइन मानक पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने तथा हिन्दी के मौखिक और लिखित स्वरूप को सम्मान सहित अधिकाधिक प्रयोग हेतु ध्यान खींचा।
स्पेन के मैड्रिड से हिन्दी गुरुकुल की संस्थापक प्राध्यापिका पूजा अनिल ने प्रथम भाषा के व्याघात का निराकरण करते हुए खेल-खेल में हिन्दी सिखाने का सुझाव दिया। स्वीटजरलैंड से संडे हिन्दी स्कूल एसोसिएशन की संस्थापक प्राध्यापिका शिवानी भारद्वाज का कहना था हम बाल और वयस्क मनोविज्ञान का सहारा लेते हुए भाषा कौशल बढ़ाते हैं और मॉडल के साथ वर्चुअल शिक्षण को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।
अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी की प्रो कुसुम नैपसिक ने कार्यक्रम का बखूबी संचालन किया और अपने अनुभव में व्याकरण संबंधी समस्याओं के समाधान सुझाते हुए विविध भाषाई क्षेत्र में भ्रमण से बदलाव का मार्ग सुझाया।
कार्यक्रम की शुरुआत स्वागत व्यक्तव्य से दिल्ली के साहित्यकार डॉ राजेश कुमार द्वारा की गई। भोपाल के साहित्यकार डॉ जवाहर कर्नावट द्वारा विषय प्रवर्तन किया गया। सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी की प्रो संध्या सिंह द्वारा समूचे कार्यक्रम का बखूबी संयोजन हुआ।
कार्यक्रम विशेष सहयोग जापान से पद्मश्री प्रो तोमियो मिजोकामी, कनाडा से डॉ शैलेजा सक्सेना यू के की साहित्यकार दिव्या माथुर एवं डॉ पदमेश गुप्त, प्रो अरुणा अजितसरिया, तथा भारत से डॉ नारायण कुमार, प्रो संतोष चौबे, प्रो वी जगन्नाथन, डॉ विजय द्वय, डॉ गंगाधर वानोडे, विनय शील चतुर्वेदी, जितेंद्र चौधरी आदि द्वारा किया गया।
तकनीकी सहयोग का दायित्व डॉ मोहन बहुगुणा, डॉ सुरेश मिश्र उरतृप्त तथा कृष्ण कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया। शोधार्थियों का समन्वय दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो विवेक शर्मा ने किया।
समूचा कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के कुशल एवं सुयोग्य समन्वयन में संचालित हुआ। अंत में कर्नाटक के बेलगाम से डॉ जयशंकर यादव द्वारा वसुधेव कुटुंबकम को समाहित करते हुए आत्मीय भाव से माननीय अध्यक्ष, सानिध्य प्रदाता, विशिष्ट वक्ताओं, संचालकों, संयोजकों, प्राध्यापकों, सहयोगियों, शोधार्थियों एवं देश विदेश से जुड़े सुधी श्रोताओं तथा कार्यक्रम टीम सदस्यों आदि के नामोल्लेख सहित कृतज्ञता प्रकट की गई।
समूचा कार्यक्रम व्यापक दृष्टिकोण के साथ सुखद आत्मीय अनुभूति और वैश्विक हिन्दी शिक्षण हेतु पुनः प्रतिबद्ध और संकल्पित होने सहित सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है।