हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट): वैश्विक हिन्दी परिवार के तत्वावधान में भारतीय भाषाओं में समन्वय और सौहार्द की दृष्टि से भारत सरकार के निर्णय के अनुसार वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ‘भारतीय भाषा दिवस’ का कवितामय आयोजन किया गया। ज्ञातव्य है कि राष्ट्रकवि सुब्रमण्य भारती की जयंती 11 दिसम्बर को यह उत्सव चिन्हित किया गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कन्नड और हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ टी आर भट्ट ने सभी को इस उत्सव की बधाई देते हुए भारतीय भाषाओं को समृद्ध करने और भाषाई सौहार्द बनाए रखने की अपील की। उन्होने भाषा सहोदरी के रूप में सभी भारतीय भाषाओं को एक ही परिवार से उद्भूत बताया और राष्ट्रीय एकता तथा भावात्मक संबंधो के साथ जागृत होकर आगे बढ़ने हेतु अभिप्रेरित किया।
मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सह संयोजक ए विनोद ने सामासिक संस्कृति की अक्षुण्यता के लिए एक से अधिक भारतीय भाषाएँ सीखने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम में सानिध्यप्रदाता अनिल जोशी ने अपनी रचना ‘मोर्चे’ पर सुनाकर भाषाई मोर्चे को मजबूत बनाने हेतु सबके अंतस को आंदोलित किया।
महाकवि चिन्नस्वामी सुब्रमण्य भारती के व्यक्तित्व और कृतित्व पर सचित्र प्रस्तुति देते हुए पांडिचेरी विश्वविद्यालय से प्रो सी जय शंकर बाबु ने उनके जन्म से लेकर आखिरी क्षणों तक की मात्र 39 वर्षीय जीवन यात्रा (1882-1921) को प्रेरणापुंज की संज्ञा दी। तमिल, हिन्दी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेज़ी के विद्वान राष्ट्रकवि भारती ने राष्ट्रीय चेतना को अपने साहित्य से जागृत किया और स्वतन्त्रता आंदोलन में जन मन को झकझोरते हुए अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध आंदोलित किया। उन्होने अपनी हजारों रचनाओं के अलावा विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेखों, कविताओं और कार्टूनों के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना बलवती की और समाज सुधार के बृहद कार्य किए। उनकी यश: एवं बेरक्त काया अमर रहेगी।
इस अवसर पर लंदन से जुड़ीं तेलुगू कवयित्री एवं रंगकर्मी डॉ रागसुधा विंजमूरी ने ‘सुधा’ कविता से कुछ भी नहीं असंभव, कुछ भी नहीं असाध्य, सुनाकर भावविभोर किया। नीदरलैंड से मराठी कवयित्री डॉ मानसी सगदेव ने कृष्ण एवं यशोदा के चित्र से संबन्धित कविता ‘यशोदा तेरे कान्हा ने छीने हैं चैन हमारो’ सुनाकर आनंद बिखेरा। दुबई से मलयालम में लता रजित द्वारा अपनी कविता में ‘माँ के सत्य’ को उजागर किया गया।
कनाडा के टोरंटो से पंजाबी में कवयित्री सुरजीत कौर ने अपनी मिट्टी को छूकर ब्रह्मांड की परिक्रमा कराई। अमेरिका से वैज्ञानिक और उर्दू कवि डॉ अब्दुल्लाह ने मिठास घोलते हुए माँ की महिमा का बखान किया। सऊदी अरब से गुजराती में आरती विमल परीख द्वारा साँच को सँजोकर रखने और होठों पर समुचित मौन रखने हेतु कविता सुनाई। सभी के द्वारा हिन्दी अनुवाद भी साथ-साथ प्रस्तुत किया गया।
कनाडा से साहित्यकार डॉ शैलेजा सक्सेना द्वारा विषय प्रवर्तन और सारगर्भित शुरुआत के साथ आत्मीय स्वागत व्यक्तव्य दिया गया। सिंगापुर से साहित्यकार एवं पत्रकार श्रीमती आराधना झा श्रीवास्तव द्वारा यथोचित भूमिका के साथ शालीन ढंग से बखूबी संचालन किया गया एवं बारी बारी कवियों और वक्ताओं को सहज भाव से सादर आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम में जापान से पद्मश्री प्रो तोमियो मिजोकामी, अमेरिका से अनूप भार्गव, आचार्य सुरेन्द्र गंभीर, नीलू गुप्ता, यू के की साहित्यकार दिव्या माथुर एवं शैल अग्रवाल, प्रो अरुणा अजितसरिया, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, खाड़ी देश से आरती लोकेश, थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी तथा भारत से डॉ नारायण कुमार, प्रो राजेश कुमार डॉ विजय द्वय, डॉ गंगाधर वानोडे, विनय शील चतुर्वेदी, जितेंद्र चौधरी, वेंकटेश्वर राव, बरुन कुमार आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही। तकनीकी सहयोग का दायित्व डॉ मोहन बहुगुणा तथा कृष्ण कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया।
समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और केंद्रीय हिन्दी संस्थान के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी के सान्निध्य एवं सुयोग्य समन्वयन में संचालित हुआ। अंत में कर्नाटक से डॉ जयशंकर यादव द्वारा वसुधेव कुटुंबकम को समाहित करते हुए आत्मीय भाव से माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, विशिष्ट वक्ताओं, कवि – कवयित्रियों संचालकों, संयोजकों, प्राध्यापकों, सहयोगियों, शोधार्थियों एवं देश विदेश से जुड़े सुधी श्रोताओं तथा कार्यक्रम टीम सदस्यों आदि के नामोल्लेख सहित कृतज्ञता प्रकट की गई। समूचा कार्यक्रम व्यापक दृष्टिकोण के साथ भाषाई सौहार्द की सुखद आत्मीय अनुभूति और आनंद सहित सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है।