हैदराबाद : राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन (वाजा) आंध्रप्रदेश शाखा के तत्वावधान में पद्मश्री, शतसहस्रावधानी, गरिकपाटि नरसिंहा राव द्वारा विरचित ‘सागर घोष’ का हिन्दी अनुवाद ‘सागर सोर’ पर चर्चा परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया। गरिकपाटि जी के इस महान ग्रंथ में कुल 1116 पद्य हैं।
इसका हिन्दी अनुसृजन डॉ टी सी वसंता (हैदराबाद) और डॉ सुमन लता (हैदराबाद) ने किया। इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ सुरभि दत्त ने कहा है कि इसका प्रत्येक पद्य मानव समाज के लिए बहुमूल्य है। इसमें ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक सभी अंशों का अद्भुत संगम है।
इस पुस्तक का परिचय साहित्यकार देवा प्रसाद मयला ने किया। प्रसिद्ध अनुवाद वेंकटेश देवनापल्ली ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि इन दोनों कवयित्रियों का तालमेल और समझ बूझ बेमिसाल है। इसमें डॉ. वसंता जी और डॉ. सुमनलता जी ने मूल काव्य का कौन-सा भाग कहां तक अनुवादित किया इसका कोई पता ही नहीं चलता।
वाजा आंध्र प्रदेश के अध्यक्ष डॉ कृष्णबाबु ने स्वागत भाषण में विश्व का महान काव्य हिन्दी में अनुवाद करने पर दोनों साहित्यकारों को बधाई दी। वाजा की महिला अध्यक्ष आचार्या पी के जयलक्ष्मी ने मंच से श्रीमान गरिकपाटि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचय कराया।
अनुवादक द्वय ने इस अपने अनुभवों का साझा किया। इस विश्व काव्य का अनुवाद कर शपद्मश्री के मानवता संदेश को समूचे विश्व के हिन्दी पाठकों तक पहुंचाने का महान अनुष्ठान पर डॉ निर्मला देवी चिट्टिल्ल ने दोनों साहित्यकारों के बधाई दी और समस्त हिन्दी पाठकों की तरफ से धन्यवाद किया।
इस कार्यक्रम के अद्भुत संचालन के लिए आंध्रप्रदेश शाखा की महा सचिव डॉ निर्मला देवी चिट्टिल्ल को बधाई दी। इस कार्यक्रम में डॉ शांति, डॉ टी हैमावती, श्रीमती रमादेवी राव आदि साहित्यकार उपस्थिति थे।