संयुक्त राष्ट्र महासभा में हाल ही में पेश की गई एक रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि लैंगिक कारणों से महिलाओं व लड़कियों को जान से मार दिए जाने की ख़तरनाक प्रवृत्ति विश्व भर में फैल रही है। और दुर्भाग्य यह कि सदस्य देश लैंगिक हिंसा के पीड़ितों की रक्षा करने के दायित्व में विफल साबित हो रहे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्त्री-हत्या (फ़ेमिसाइड) एक वैश्विक त्रासदी है, जो कि वैश्विक महामारी (पैंडेमिक) के स्तर पर फैल रही है।
इससे तात्पर्य, लिंग-संबंधी वजह से किसी महिला व लड़की को जानबूझकर जान से मार देना है। विशेष रैपोर्टेयर टिडबॉल-बिन्ज़ ने अपनी रिपोर्ट में सचेत किया है कि लिंग-आधारित वजहों से मारना, लिंग-आधारित हिंसा के मौजूदा रूपों का एक चरम और व्यापक स्तर पर फैला हुआ रूप है। अनेक देशों में सैकड़ों महिलाएँ, लैंगिक पूर्वाग्रह के परिणामस्वरूप हुए अभियोजन और सज़ा देने के तौर-तरीक़ों के कारण, मृत्युदंड मिलने का सामना कर रही हैं। दूसरी तरफ स्त्री-हत्या के अपराधी, समाज में इस शान से घूमते देखे जा सकते हैं, मानो उन्होंने कोई अपराध ही न किया हो! जब तक दंडमुक्ति की यह भावना बरकरार है, तब तक भला इस विश्वव्यापी की आपराधिक मनोवृत्ति को कैसे जड़ से उखाड़ा जा सकता है?
दरअसल स्त्री-हत्या एक वैश्विक समस्या है, लेकिन यह लैटिन अमेरिका और कैरिबियन जैसे कुछ क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रचलित है, जहाँ यह 15 से 44 वर्ष की महिलाओं की मृत्यु का प्रमुख कारण है। स्त्री-हत्या दुनिया के अन्य हिस्सों में भी भारी असर डालती है जिनमें अफ्रीका, एशिया और उत्तरी अमेरिका शामिल हैं। साल 2021 में, दुनिया भर में 15 से 49 वर्ष की आयु की अनुमानित 24.6 करोड़ महिलाओं और लड़कियों को अंतरंग साथी की ओर से शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव हुआ। इनमें से 45,000 को उनके अंतरंग साथी या परिवार के अन्य सदस्यों ने मार डाला। इसका मतलब यह है कि हर दिन औसतन 12 महिलाओं की उनके अंतरंग साथियों या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा हत्या कर दी जाती है।
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महिलाओं को स्त्री-हत्या सहित हिंसा से बचाना सभी देशों और समाजों का कर्तव्य है। मगर अफसोस कि ज़्यादातर समाज इस जिम्मेदारी को मानने तक को तैयार नहीं दिखाई देते। जबकि कमजोर कानून और नीतियों, अपर्याप्त संसाधनों और दुर्बल राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण इन अपराधों में लगातार बढ़ोतरी सारी मानवता के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र ने तमाम देशों का आह्वान किया है कि स्त्री-हत्या की इस विश्वमारी से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करें।
ऐसी कई चीजें हैं जो व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर स्त्री-हत्या रूपी विश्वमारी से निपटने के लिए की जा सकती हैं। व्यक्तिगत स्तर पर यह ज़रूरी है कि हम स्त्री-हत्या और इसके मूल कारणों के बारे में स्वयं को शिक्षित करें, लैंगिक रूढ़िवादिता और स्त्री-द्वेष को चुनौती दें, उन महिला अधिकारों और संगठनों का समर्थन करें जो स्त्री-हत्या को समाप्त करने के लिए काम कर रहे हैं तथा स्त्री-हत्या और महिलाओं पर हिंसा के अन्य रूपों के खिलाफ बोलने की संस्कृति का विकास करें। इसी तरह समाज और सरकारों को चाहिए कि स्त्री-हत्या के विरुद्ध मजबूत कानून और नीतियाँ बनाएँ और लागू करें। ऐसे रोकथाम कार्यक्रमों में निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है जो स्त्री-हत्या के मूल कारणों, जैसे लैंगिक असमानता, स्त्री-द्वेष और गरीबी के उन्मूलन पर केंद्रित हों। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पीड़ित और सर्वाइवर महिलाओं को न्याय और सहायता सेवाओं तक त्वरित पहुँच मिले।
सबसे बड़ी बात यह कि जब तक दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों के प्रति सम्मान की संस्कृति का विकास नहीं किया जाएगा, तब तक वे सिर्फ इसीलिए मारी जाती रहेंगी कि उन्होंने मर्दों की दुनिया में औरत के रूप में जन्म लिया!
प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा