भारत माता की जय: क्रिएटिव माइंड बेंगलुरु ने मनाया जश्न-ए-आज़ादी

बेंगलुरू (अमृता श्रीवास्तव की रिपोर्ट): क्रिएटिव माइंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ने देश की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में देश के भिन्न कोनों से जुड़े अपने रचनाकारों के साथ ऑनलाइन परिचर्चा आयोजित की। इस परिचर्चा को दो भागो में बांटा गया। प्रथम भाग में साहित्यिक पेज पर रचनाकारों से उनके विचार मांगे गये। द्वीतीय भाग में15 तारीख रविवार रात को 8.15 बजे ऑनलाइन परिचर्चा के लिए आमंत्रित किया गया।

आत्ममंथन के लिए प्रेरित

इस परिचर्चा का उद्देश्य समकालीन परिस्थिति में रचनाकारों को अपने विचारों और जरूरतों के साथ आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया जाना था। साथ ही देश के विकास के 75 सालों के गौरवशाली पलों को फिर से जीने का प्रयास किया जाना भी प्रतिभागियों को भावुक कर देने वाला था। इस परिचर्चा गोष्ठी में देश के भिन्न-भिन्न शहरो से रचनाकारों ने शिरकत की। इस परिचर्चा का संचालन डॉ यास्मीन अली के कुशल हाथों में रहा।

विषय

अनीता सुराणा, निरुपा कुमारी, रितु अग्रवाल, सारिका रस्तोगी, अंजू लता सिंह, संगीता त्रिपाठी, विधि जैन रुचिका राना, स्मिता चौहान और हिमानी शर्मा ने परिचर्चा की ऑनलाइन गोष्ठी में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। इस परिचर्चा का विषय था- व्यक्तिगत तौर पर आपके लिए आज़ादी के क्या मायने है? और 75 साल के देश के आज़ादी के सफ़र में देश में हुई कोई घटनाएं या कोई बदलाव जो आपको सबसे प्रिय या प्रभावशाली लगे हैं।

पुरुष और स्त्रियों के बीच समान अधिकारों की ज़रूरत

सभी प्रतिभागियों ने अपने विचारों को खुल कर व्यक्त किया। संगीता त्रिपाठी ने जहां पुरुष और स्त्रियों के बीच समान अधिकारों की ज़रूरत पर जोर दिया वहीँ स्वच्छ भारत अभियान से देश मे आए बदलावों को तहेदिल से सराहा। अनीता सुराणा ने व्यक्तिगत आजादी, अंधविश्वास और कुरीतियों के समापन के मुद्दे को उठाया वही नारी के उत्थान के मुद्दे से आजादी को सही मायना मिलने की बात कही। देश की उपलब्धियों में उन्होंने आर्टिकल 370 का अंत और मंगल ग्रह पर देश को प्रथम प्रयास में मिली सफ़लता को गौरवशाली पलों से जोड़ा। उन्होंने देश के चारों ओर विकास की प्रशंसा की।

लड़कियों की स्थिति सुधारने पर जोर

स्मिता चौहान ने देश में लड़कियों की स्थिति सुधारने पर जोर देने की बात कही। धारा 370 का समापन को देश का बेहतरीन निर्णय बताया जिसने लोगो के दिलो में चल रही दूरियों का भी समापन कर दिया। सारिका रस्तोगी ने व्यक्तिगत आज़ादी के परिपेक्ष्य में नारियों को “लोग क्या कहेंगे और परफेक्ट रखने की अनवरत कोशिशों से खुद को आज़ाद करने को कहा। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के सिद्धांत पर हो रहे कार्यों और स्त्रियों की बदलती सकारात्मक मनोदशा पर जिक्र करते हुए वर्तमान सरकार के प्रयासों की सराहना की।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वोपरि

डॉक्टर अंजू लता सिंह ने परिचर्चा में अपना पक्ष रखते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वोपरि माना। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस का मनाया जाना एक सुखद अनुभूति मानते हुए डॉक्टर अंजू लता सिंह ने धारा 370 के समापन और कारगिल विजय के बारे में भी चर्चा की। परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए निरुपा कुमारी ने अपना पक्ष रखते हुए लड़कियों के लिए हो रही असामनता के अंत की करने की बात कही। साथ में समाज में फैले जातिवाद, धर्मवाद का भी करारा विरोध किया। देश की 75 साल की उपलब्धियों में उन्हें लड़कियों का टोक्यो ओलिंपिक-2020 में प्रतिभा का बढ़-चढ़कर किया गया प्रदर्शन उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावी लगा। उन्होंने ग्रामीण माहौल में फ़ैल रही लड़कियों के स्वावलम्बन के प्रति जागरूकता को एक स्वागत योग्य कदम माना।

भारतीय संस्कृति

विधि जैन ने अपने संवाद के माध्यम से आजकल की युवा पीढ़ी को अपने भारतीय संस्कृति से जुड़े रहने का आग्रह किया। उन्होंने न केवल शहरी क्षेत्रो में ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रो से भी लड़कियों का सामने आना और तमाम क्षेत्रो में अपनी क़ाबलियत साबित करना एक उल्लेखनीय प्रगति चिन्ह माना।

लड़कियों के लिए कुछ बदलाव की सराहना

रुचिका राणा आज़ादी के मायने को उस लड़की की भावनाओ से जोड़ा जिसके सपने पुरे होने से पहले तोड़ दिए जाते हैं। जहां उन्होंने समाज के दृष्टिकोण में आये लड़कियों के लिए कुछ बदलाव की सराहना की वही साथ में समाज की सोच में और बदलाव की जरुरत की मांग रखी। सर्जिकल स्ट्राइक को उन्होंने एक बदलाव का चिन्ह माना जिससे भारत ने अपना शांति प्रिय देश की छवि के साथ दुनियाँ को यह भी बताया कि भारत राष्ट्र हित में बड़े कदम उठा सकता है।

जाति, धर्म, लिंग पर किसी में भेदभव नहीं

रितु अग्रवाल ने व्यक्तिगत तौर पर आजादी के मायने विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी को सर्वोपरि माना। उन्होंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि जहां संविधान ने जाति, धर्म, लिंग पर किसी में भेदभव नहीं किया पर समाज से ऐसी छूट नहीं मिली है। रितु ने समाज से भी ऐसी आज़ादी मिलने की जरुरत पर जोर दिया। तकनीकी क्षेत्र में किये गए सुधार और कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति से आये देश के आर्थिक ढांचे में आये बदलाव और आत्म निर्भरता को उन्होंने देश के लिए सबसे सकारात्मक कदम माना।

राजनीति से वंशवाद का ख़ात्मा

सुषमा पारिख ने लिंग भेद से ऊपर उठकर मिली आज़ादी को सही आज़ादी माना। राजनीति से वंशवाद का ख़ात्मा। उन्होंने लोकत्रंत के लिए एक सुखद बदलाव माना, हर क्षेत्र में हुनर को एक मान दिया जाना एक अनुकरणीय कदम माना। परिचर्चा के दौरान महिलाओं ने खुलकर विभिन्न मुद्दों पर आपस में विचार विमर्श किया। इस दौरान महिला समाज की जरूरतों को भी एक सुदृढ़ आवाज मिली है।

सोचने पर मजबूर

यास्मीन ने हमारे मिसाइल मैन स्वर्गीय डॉक्टर अब्दुल कलाम आज़ाद के बैलेस्टिक मिसाइल प्रक्षेपण की याद दिलाकर सभी श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया। डॉक्टर यास्मीन अली ने हिंदी साहित्य के जाने माने नाम श्री जयशंकर प्रसाद जी की पंक्तिया स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती, अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ हैं- बढ़े चलो बढ़े चलो को पढ़कर देश की प्रगति में कदम से कदम मिलाने के वादे के साथ इस परिचर्चा का समापन अपने अनूठे अंदाज़ में किया।

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