हैदराबाद : कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार को गूगल मीट के माध्यम से 393वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन कादम्बिनी क्लब अध्यक्षा डॉ अहिल्या मिश्र की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। प्रेस विज्ञाति में डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने बताया कि प्रथम सत्र का आरंभ सस्मिता नायक की सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुति से हुआ।
डॉ मिश्र ने पटल पर उपास्थित साहित्य सृजनकारों का शब्द कुसुमों से स्वागत करते हुए कहा कि शीघ्र ही संस्था 32वें वर्ष में प्रवेश करेगी। अपनी निरंतरता बनाए रखने में आप सभी का साथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नए सदस्यों को सक्रिय सहयोग देते हुए उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को संवारने का कार्य कादम्बिनी क्लब कर रहा है। डॉ संध्या जैन (मुख्य वक्ता, इंदौर) आज “डॉ रामकुमार वर्मा की काव्यधारा” विषय पर अपने विचार रखेंगी। उनका भी बहुत बहुत स्वागत है।

अवधेश कुमार सिन्हा (संगोष्ठी सत्र संयोजक, दिल्ली) ने मुख्य वक्ता का परिचय दिया और विषय प्रवेश देते हुए कहा कि डॉ रामकुमार वर्मा को मूलतः एकांकी का जनक माना जाता है। डॉ वर्मा का जन्म सन् 1905 में हुआ और 1990 में उन्होंने संसार से विदा ली। डॉ संध्या जैन विशेष रूप से वर्मा जी के रचना संसार पर प्रकाश डालेंगी।
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डॉ संध्या जैन ने प्रपत्र प्रस्तुती में अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि डॉ रामकुमार वर्मा से प्रत्यक्ष भेंट करने का सौभाग्य मिला। अपने अंतिम समय में भी वे प्रसन्न थे। उदार, कर्मठ, सामाजिक, आस्थापूर्ण जीवन जीने की कला उनकी खासियत रही। बचपन से ही उन्हें परिवार में साहित्यिक वातावरण मिला। विशेषतः उनकी माँ का प्रभाव उनके व्यक्तित्व में नजर आता है। कई पुरस्कार और सम्मानों से आप विभूषित हुए। आपके कई संकलन प्रकाशित हुए।
राष्ट्रभक्ति, सामाजिक चेतना व ऐतिहासिक स्वनाओं से ओतप्रोत डॉ वर्मा से पत्र व्यवहार हुआ करता था। ओ अहल्या खंडकाव्य, आलोचना, यात्रा वृत्तांत, निबंध आदि साहित्यिक योगदान के साथ असहयोग आंदोलन में कूद पड़ना, प्रभात फेरियों में येगदान उनके संघर्षपूर्ण जीवन के प्रमुख पहलू है। महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत जैसे साहित्यिक महायोद्धाओं को काल में आपका सृजनकार्य गतिशील बना रहा। कई सूक्तियाँ और गीत भी उन्होंने लिखा है।
डॉ मिश्र ने कहा कि डॉ वर्मा के नाटकों के संवादों में संवेदनाएँ बहुत थीं। क्रोध, प्रेम, छल के प्रति घृणा आदि मानवीय भावनाओं का चित्रण करते वक्त उनकी कालम तीखी हो जाती। “अंगुलीमाल” का मंचन हजारों बार हुआ है। अवधेश सिन्हा ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि डॉ वर्मा की माता का नाम राजरानीदेवी था। वे स्वयं कवयित्री थीं। वर्मा जी ने स्कूल में नाटकों में आभिनय किया, वे अभिनेता – बनना चाहते थे पर वह न हुआ, वे साहित्यकार बन गए। वे उत्तरोत्तर और पूर्वोत्तर संधी युग के कवि थे। अभिजीत पाठक, शिल्पी भटनागर और उमा सोनी ने भी चर्चा में भाग लिया और अपने प्रश्नों का समाधान पाया। अवधेश कुमार सिंहा ने सत्र का संचालन किया और समापनपर आभार व्यक्त किया।
दूसरे सत्र में डॉ संध्या जैन में कवि गोष्ठी सत्र की अध्यक्षता की। कवि गोष्ठी में रमा बहेड, रचना चतुर्वेदी, रेखा अग्रवाल, दर्शन सिंह, प्रियंका वाजपेयी पाँडे, निशीकुमारी, भावना पुरोहित, उमा सोनी, मोहिनी गुप्ता, ममता जायस्वाल, भगवती अग्रवाल, तृप्ति मिश्रा, शिल्ली भटनागर, अवधेश कुमार सिन्हा, प्रवीण प्रणव, आभिजीत पाठक, वर्षा शर्मा, मीना मुथा, डॉ अहिल्या मिश्र, भगवती अग्रवाल ने काव्य पाठ की। डॉ संध्या जैन ने अध्यक्षीय काव्यपाठ किया। अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा कि पर्यावरण, दहेज, प्रेम, लज्जा, नींद, वीडियो कॉल, अवसाद आदि अनेक विषयों को समाहित करनेवाला यह कविता सत्र रहा है, सभी रचनाकारों को साधुवाद।
सरिता सुराणा, मधु भटनागर, रवीश जैन, प्रियंका सोनी, मीरा ठाकुर की उपस्थिति रही। मीना मुथा ने संचालन किय। तृप्ति मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापित किया। शिल्पी भटनागर और प्रवीण प्रणव ने तकनीकी व्यवस्थाओं का संचालन किया।
