भगवान बालाजी के लड्डू में जानवरों की चर्बी मिलावट, भक्तों को पहुंची गहरी ठेस, क्या है यह भ्रष्टाचार या षडयंत्र!? (2)

मार्च 2021 तक टीटीडी को कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के नंदिनी ब्रांड घी की आपूर्ति की गई थी। मार्च 2021 में आयोजित निविदाओं में यह एल-3 के रूप में रह गई। हालाँकि, एल-1 और एल-2 की मंजूरी के साथ, कर्नाटक मिल्क फेडरेशन ने तिरुमला को आवश्यक घी का केवल 20 प्रतिशत ही आपूर्ति किया है। यूपी की प्रीमियर एल-1 और एल-2 अल्फा कंपनियां घी की आपूर्ति करने के लिए योग्यता हासिल की। उसने एक किलो घी 424 रुपये में टीटीडी को आपूर्ति करने के लिए एक समझौता किया है। हालाँकि, कर्नाटक मिल्क फेडरेशन ने निविदा प्रक्रिया में भाग नहीं लिया। क्योंकि वे इस कीमत से संतुष्ट नहीं थे। फेडरेशन ने फैसला किया है कि टीटीडी को इतनी कम कीमत पर गुणवत्तापूर्ण घी की आपूर्ति करना संभव नहीं है। नतीजतन, तब ही टीटीडी पर आरोप लगे हैं कि वह कम कीमत पर घटिया घी खरीद रहा है।

भगवान बालाजी के लड्डू की तैयारी में मिलावटी घी की आपूर्ति के आरोपों पर एआर डेयरी ने जवाब दिया है। उसने कहा गया कि गुणवत्ता आश्वासन परीक्षण के बाद ही टीटीडी को घी की आपूर्ति की गई थी। साथ ही स्पष्ट किया है कि उनके द्वारा आपूर्ति किए गए घी में कोई मिलावट या गुणवत्ता दोष नहीं है। एआर डेयरी ने यह भी कहा कि जून और जुलाई महीने में घी सप्लाई की है। अब वह तिरुमला तिरुपति देवस्थानम घी की आपूर्ति नहीं कर रही है।

लैब रिपोर्ट से मचा हड़कंप

एनडीडीबी (राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड प्रयोगशाला) प्रयोगशाला ने पुष्टि की कि घी में पशु वसा की मिलावटहै। यह लैब गुजरात के आनंद में स्थित है और नमूने 8 जुलाई को लैब में भेजे गए थे और एनडीडीबी CALF लैब ने 17 जुलाई को रिपोर्ट दी थी। तिरुमला में इस्तेमाल होने वाले घी के संबंध में इस लैब द्वारा भेजी गई परीक्षण रिपोर्ट से पता चला कि घी में मिलावटी है। गुणवत्ता वाले घी का S मान 95.68 से 104.32 के बीच था। घी के एक नमूने का S मान 19.72 था। एनडीडीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सोयाबीन, सूरजमुखी, जैतून, रैपसीड, लिनसीड, गेहूं के बीज, मकई के बीज, कपास के बीज, मछली के तेल, नारियल, पाम कर्नेल वसा, पाम तेल, बीफ टैलो, लॉर्ड (Lard) जैसे अवयवों के साथ घी और तेलों की मिलावट की गुंजाइश है। इस सूची में मछली के तेल, बीफ़ टैलो और लॉर्डो की उपस्थिति चिंताजनक है। जबकि बीफ़ टैलो गोमांस से बना एक पदार्थ है। लार्ड सूअरों और अन्य जानवरों की चर्बी से बना एक पदार्थ है। इसे भक्त पचा नहीं पा रहे हैं।

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भड़क उठे पुजारी

टीटीडी के पूर्व मुख्य पुजारी रमणा दीक्षितुलु ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने इस मामले को पहले भी कई बार टीटीडी अध्यक्ष और ईओ के ध्यान में लाया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कितनी ही बार शिकायत की, किसी ने इसकी परवाह नहीं की। उन्होंने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि पवित्र गाय के घी में मिलावट करना और भगवान बालाजी के प्रसाद में इसका उपयोग करना एक भयानक अपराध है। उन्होंने कहा कि यह महापाप पिछले पांच वर्षों से बिना किसी आपत्ति के किया जा रहा है। अयोध्या राम मंदिर मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने तिरुमला लड्डू मामले में आंध्र प्रदेश की गठबंधन सरकार और केंद्र सरकार के गलत काम करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि तिरुमला लड्डू बनाने में मछली का तेल और जानवरों की चर्बी मिलाने की खबरें सनातन धर्म के खिलाफ एक साजिश है। क्या ये साजिश देश के अंदर हुई? क्या कोई बाहरी ताकतें हैं? उन्होंने सरकारों से इस मुद्दे का समाधान करने की मांग की। चिलुकुर बालाजी मंदिर के मुख्य पुजारी रंगराजन ने कहा कि टीटीडी लड्डू प्रसाद में पशुओं हड्डियों से बने तेल का इस्तेमाल करके अपवित्र किया गया। इसे कभी भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने लड्डू प्रसाद को अपवित्र करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। उन्होंने सरकार से सच्चाई का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का सुझाव दिया।

लड्डू प्रसाद का इतिहास

कलियुग भगवान कहने जाने श्री वेंकटेश्वर स्वामी (भगवान बालाजी) के नैवेद्य को अति प्रिय के नाम से जाना जाता है। इसीलिए भगवान बालाजी को खूब प्रसाद चढ़ाये जाते हैं। भगवान को चाहे कितना भी प्रसाद चढ़ाया जाए, लेकिन लड्डू का महत्व अलग ही है। यह लड्डू भगवान बालाजी के लिए प्रिय प्रसाद है तो भक्तों के पसंदीदा प्रसाद के रूप में लोकप्रिय हैं। इतिहास कहता है कि 1803 से तत्कालीन मद्रास सरकार ने बालाजी के मंदिर में प्रसाद बेचना शुरू किया था। प्रसाद का स्वरूप कई मायनों में बदलता हुआ अंततः 1940 में तिरूपति लड्डू के रूप में अपनी एक पहचान बनाई है। शुरुआत में इसकी कीमत भी आठ आणे (दो रुपये) थी। इस प्रकार लड्डुओं को पहले 2, 5, 10, 15, 25 रुपये में बेचा गया। फिलहाल एक लड्डू को 50 रुपये में बेचा जा रहा है।

तिरूपति लड्डू के लिए पेटेंट

‘तिरुपति लड्डू’ को भौगोलिक कॉपीराइट (पेटेंट) अधिकार भी मिल गया है। परिणामस्वरूप, तिरुमला में बने लड्डू प्रसाद पर तिरुमला तिरुपति देवस्थानम का पूरा अधिकार हो जाता है। इससे दूसरों को ऐसे लड्डू बनाने या उसका नाम इस्तेमाल करने का मौका ही नहीं मिलता है। तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ने इस भौगोलिक अधिकार के लिए चेन्नई में भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री के कार्यालय में आवेदन किया था। कार्यालय ने भौगोलिक कॉपीराइट की पुष्टि करते हुए इसकी जांच की और भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री कार्यालय के ट्रेड मार्क्स के सहायक रजिस्ट्रार जीएल वर्मा द्वारा प्रमाण पत्र टीटीडी अधिकारियों को सौंप दिया गया।

लड्डू तैयारी केंद्र

तिरुमला मंदिर में वास्तु के अनुसार लड्डू तैयारी केंद्र में इस प्रसाद को मंदिर के दक्षिण-पूर्व में बने स्थान पर तैयार किया जाता है। तैयार किये गये इस लड्डू प्रसाद को भगवान बालाजी की मां वकुलमाता की मूर्ति के पास लेकर जाते है। वहां इस प्रदास को माता के सामने रखने के बाद भगवान बालाजी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने की प्रथा है। मंदिर के संपंगी प्राकरम के उत्तरी भाग में लड्डू, वडे आदि पनियारों को तैयार किए जाते हैं। इन्हें भी माता के सामने रखने के बाद ही भगवान को अर्पित किया जाता है।

दिट्टम (स्टोर)

भगवान बालाजी के मंदिर में लड्डू बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री की मात्रा को ‘दिट्टम’ कहा जाता है। यह पहली बार 1950 में टीटीडी गवर्निंग काउंसिल द्वारा तय किया गया था। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के अनुसार वे दिट्टम को भी बढ़ाते जा रहे हैं। वर्तमान में 2001 के संशोधन का पालन किया जा रहा है। इसे ‘पडितरम दिट्टम स्केल’ कहा जा रहा है। पडी का अर्थ है- 51 वस्तुएँ। इस पडी के चीजों को रखने के लिए दिट्टम होती है। उसके अनुसार उग्रणाम (भगवाना बालाजी का स्टोर) से सामान दिया जाता है। इस हिसाब से एक बार में केवल 5100 लड्डू बनाने के लिए आवश्यक दिट्टम का पालन किया जाता है। (शेष अगले भाग में…)

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