हैदराबाद : ‘साहित्य सेवा समिति’ की 111वीं मासिक गोष्ठी 5 मई को सम्पन्न हुई। दोपहर 12 से 3 बजे तक हैदराबाद के इस सुप्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ने आभासी पटल पर कार्यक्रम का आयोजन दो सत्रों में किया। इस समिति के अध्यक्ष नीरज कुमार, महामंत्री सुनीता लुल्ला, दायमा, तकनीकी सहायता प्रदान करती हुई डॉ सी कामेश्वरी, समिति के अन्य सदस्यों की उपस्थिति के बीच सुसम्पन्न हुई।
इस गोष्ठी का विषय था- ‘युद्धवीर परिवार का हिन्दी को योगदान’ और ‘हिन्दी मिलाप’। यह अपने-आप में एक निराला कार्यक्रम था। सभी उपस्थित सदस्यों के जीवन से हिन्दी मिलाप, युद्धवीर परिवार, युद्धवीर फाउंडेशन की मधुर स्मृतियाँ जुड़ी थीं। कार्यक्रम के आरम्भ से अन्त तक एक ज्ञानपूर्ण श्रद्धांजलि समान गोष्ठी निर्बाध रूप से चलती रही। मधुर अनुभवों, स्मृतियों, भूली-बिसरी यादों, श्रद्धा-भक्ति के मिले-जुले भाव प्रवाहित होते रहे। इस कार्यक्रम का विषय प्रवेश साहित्य जगत की जानी-मानी हस्ती प्रो ऋषभदेव शर्मा ने रखी और इसके प्रमुख प्रवक्ता एफ एम सलीम थे। श्रीमती रचना चतुर्वेदी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। सत्यप्रसन्ना ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और सत्र का संचालन स्वयं महामंत्री सुनीता लुल्ला जी ने किया।
प्रथम सत्र का शुभारंभ श्रीमती रचना चतुर्वेदी के स्वरचित सरस्वती वंदना से हुआ। अध्यक्ष नीरज कुमारने आभासी पटल पर भावुकता से युद्धवीर फाउंडेशन के साथ उनकी निकटता का परिचय देते हुए स्व. विनय वीर जी को याद करते हुए सभी का स्वागत किया।
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प्रो ऋषभदेव शर्मा ने विषय प्रवेश रखते हुए सर्वप्रथम अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की। स्वतंत्रता के बाद डेली हिंदी मिलाप ने निरंतर संघर्षरत रहते हुए हिंदीतर प्रांत में जिस तरह अपनी एक अलग पहचान बनाई, उसका परिचय सदस्यों को दिया। राष्ट्रीयता, संस्कारिता, संस्कृति की पृष्ठभूमि में हिंदी पत्रिकारता-जगत में ‘हिंदी मिलाप’ने अपना विशिष्ट स्थान कायम रखा। उन्होंने बताया कि विनय वीर जी ने पत्रकारिता विरासत में पायी है। यह उनके डी.एन.ए में था। वे एक अंतर्मुखी व्यक्तित्व रखते थे जो सृजनात्मक की पहली सीढ़ी है।
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अपने फोटोग्राफी फ्रेम में तकनीकी कुशलता से, आकर्षक, रोचक स्तंभ लेकर समय के साथ दौड़ते हुए उन्होंने अनेक परिवर्तन किए और प्रखर व्यक्ति साबित हुए। ‘हिंदी मिलाप’ पाठक वर्ग की चित्तवृत्ति, मानसिकता को दृष्टि में रखते हुए हिंदी पाठकों के गले का हार बना हुआ है कहते हुए ऋषभदेव ने बताया कि कैसे उनके अमूल्य सुझावों को विनय वीर जी ने अपने पत्र में साकार कर दिखाया। इसकी आप-बीती भी सुनाई। उन्होंने कहा कि विनय वीर जी हिंदी मिलाप का पर्याय हैं। उनका काल मिलाप के लिए ‘विनय वीर काल’ कहा जाएगा।
कार्यक्रम के प्रमुख प्रवक्ता वर्ष 1998 से ‘हिंदी मिलाप’ में कार्यरत पत्रकार एफ एम सलीम थे जो वर्तमान में वहाँ ब्यूरो चीफ हैं। उन्होंने प्रथमत: अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए विनय जी को एक सहृदय, कोमल, सदा लोगों की आवश्यकताओं को पहचानने वाले कुशल प्रबंधक और सच्चे प्रेरणास्रोत बताया। उनके व्यक्तित्व का प्रभाव उनपर अत्यंत रहा है। उन्होंने सदस्यों को ‘हिंदी मिलाप’ के सौ वर्ष के इतिहास से अवगत कराया। अपने प्रारंभिक दौर में ‘उर्दू मिलाप’ ने किस तरह समाप्त होते-होते ‘हिंदी मिलाप’ को जन्म दिया इसका परिचय दिया। विनय जी को पत्रकारिता से अधिक फोटोग्राफी में रुचि थी, उनको सभी लोग एक सफल फोटोग्राफर के रूप में जानते हैं। युद्धवीर जी के स्वर्गस्त होने के बाद विनय वीर जी ने इसे बड़ी सुलभता से अपना लिया और समय की आवश्यकताओं के अनुरूप फेरबदल करते रहे, जिससे ‘हिंदी मिलाप’, हिंदी पाठकों के दिल की धड़कन बन गई। अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए, रंगीन आवरण से अच्छादित, कंप्यूटरीकरण-युग में नए साँचे में ढलते हुए, अपने निराले व्यक्तित्व का परिचय दिया।
ब्यूरो चीफ ने आगे कहा कि एक सादगी पूर्ण जीवन निर्वाह करने में विश्वास रखने वाले विनय जी अपने कर्मचारियों से अत्यंत स्नेह से मिलते थे। वे अपने अंतिम समय में भी ‘हिंदी मिलाप’ को लेकर चिंतित रहते थे। वे चाहते थे कि मिलाप पूरी ऊर्जा के साथ चले। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी विनय जी को लोगों से घुलने-मिलने में समय लगता था, जो मिलते थे उनको गहराई से जान लेते हैं। छोटे, सुंदर, पेड़-पौधों से युक्त मिलाप कार्यालय में कार्य करना अपने-आप में एक खुशी थी। दक्षिण भारत का यह पत्र पाठक वर्ग के लिए सतत नए-नए स्तंभ लेकर सामने आता था और अपने निरालेपन से इसने जिन बुलंदियों तक पहुँचाने के लिए उसका श्रेय विनय जी को जाता है और उनके अनुपम, अतुलनीय प्रयास सतत स्मरणीय रहेंगे। इस दौरान रचना, सुनीता, के राजन्ना ने विनय वीर जी और हिंदी मिलाप के साथ जुड़ी अपनी यादें सुनाईं।
द्वितीय सत्र में उपस्थित सदस्यों ने अपनी-अपनी स्वरचित कविताएँ सुनाईं और आभासी पटल को रस से सराबोर कर दिया। कविताओं, मुक्तक, गज़ल, छंदों का ताँता लग गया और सरस श्रावंती बहती गयी। सरल, सहज, सशक्त, संस्कृत निष्ठ हिंदी और अपनी बुलंद आवाज़ में प्रो ऋषभदेव ने हृदयस्पर्शी, भावुक, श्रृंगार परक रचनाओं से पटल को रसमय कर दिया। उसके बाद रचना चतुर्वेदी, उर्मिला पुरोहित, सुषमा देवी, उमेश श्रीवास्तव, इन्दु सिंह, दर्शन सिंह, सुनीता, पूजा ने भिन्न रीति, शैलियों से रोचक कृतियाँ प्रस्तुत कीं। प्रकृति, प्राकृतिक सौंदर्य, श्रुंगार रस, भाव प्रधान रचनाएँ प्रस्तुत की गईं जो सहज, सरल होने के साथ-साथ मार्मिक थीं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो ऋषभदेव ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा, ‘युद्धवीर परिवार का हिन्दी को योगदान’ और ‘हिन्दी मिलाप’ के अमिट योगदान को भुलाया नहीं जा सकता और बताया कि विभिन्न कवि, लेखक, अनुवादकों ने इसमें जगह पाई और सफल साहित्यकार बने। अंत में सत्यप्रसन्ना ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।