MIDHANI: हिंदी कार्यशाला में ‘राजभाषा नीती’ तथा ‘राजभाषा कार्यान्वयन में कंप्यूटर की भूमिका’ विषय पर इन वक्ताओं ने दिया संदेश

हैदराबाद : राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के दिशा-निर्देश का अनुपालन करते हुए रक्षा मंत्रालय के उपक्रम मिश्र धातु निगम लिमिटेड (मिधानि) की राजभाषा कार्यान्वयन समिति के तत्वावधान में मिधानि के अधिकारियों के लिए एक दिवसीय हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के आरंभ में उद्यम के प्रबंधक (हिंदी अनुभाग एवं निगम संचार) डॉ. बी. बालाजी ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए हिंदी कार्यशाला के आयोजन के उद्देश्य को स्पष्ट किया।

डॉ बालाजी ने चार सत्रों में चली कार्यशाला का परिचय देते हुए बताया कि कार्यशाला में राजभाषा नीति, राजभाषा कार्यान्वयन में कंप्यूटर की भूमिका, राजभाषा कार्यान्वयन के लिए आवश्यक प्रशासनिक शब्दावली, जैसे विषयों सहित सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जैसे अन्य सामान्य विषय भी शामिल किए गए हैं। उन्होंने प्रथम सत्र में प्रशासनिक शब्दावली की जानकारी देते हुए प्रतिभागियों से अभ्यास कराया।

द्वितीय सत्र व तृतीय सत्र में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा) उपासना सिरसैया ने क्रमशः ‘राजभाषा नीती’ तथा ‘राजभाषा कार्यान्वयन में कंप्यूटर की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान दिए। उन्होंने राजभाषा नीति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, राजभाषा अधिनियम व नियम पर संक्षिप्त में चर्चा की। उन्होंने राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राजभाषा कार्यान्वयन संबंधी जारी वार्षिक कार्यक्रम में उल्लिखित लक्ष्यों की जानकारी देते हुए प्रतिभागियों को हिंदी में काम करने के लिए प्रेरित किया।

तृतीय सत्र में प्रतिभागियों को यूनिकोड की जानकारी दी और कंप्यूटर पर हिंदी टंकण के बेसिक टिप्स से अवगत कराते हुए का अभ्यास भी कराया। उन्होंने कहा कि राजभाषा हिंदी की लिपि देवनागरी है और यह वैज्ञानिक होने के कारण कंप्यूटर में उपयोग के लिए सहज व सटीक बनती जा रही है।

चतुर्थ सत्र में इस्कॉन हैदराबाद के गीता संदेश प्रबंधक ऋषिकेश दास ने “एक ऐसा जीवन जो अधिक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण हो” विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि स्वयं को जीवन में खुश रखने, शांति प्राप्त करने, सफल और समृद्ध होने के लिए हमें पड़ोसी के प्राप्य व भाग्य के साथ तुलना नहीं करनी चाहिए। अन्य के साथ अनावश्यक प्रतियोगिता व तुलना करने से दुखी होने के रास्ते स्वयं बन जाते हैं। सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए अपने मन के साथ एक स्वस्थ संबंध बनाने पर ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है।

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हम लोग उन्नत होने की होड़ में मानसिक रूप से शक्तिशाली होने की जरूरत की ओर ध्यान ही नहीं देते हैं। ध्यान देने से मन स्वस्थ होता जाएगा। इससे हम अच्छे और बुरे समय में सही निर्णय लेने के अभ्यस्त होते जाएँगे। ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों में शामिल होने पर अपने संगी-साथी चुनने में सतर्कता बरतने का विवेक विकसित होगा। इसके लिए सतत साधना करनी चाहिए। साधना से हम अपने अति इंद्रियों की ताकत को पहचानेंगे और जीवन की सार्थकता भी समझेंगे।

कार्यशाला में विभिन्न विभागों से राजा यदावलापति (इन्स्ट्रुमेंटेशन), स्रवंति नुन्ना (पी-3 अनुरक्षण), जी. शिवनेश (विपणन), बालगंगाधर राव सीएच (टाइटेनियम), के अरुण (फोर्ज), जी. सिंधु माधुरी (वित्त एवं लेखा), रणजीत कुमार मिश्र (पी-1 अनुरक्षण), राजेंद्र कुमार मीना (एचआरएम), अन्वेश कोथा (विपणन), आर रविकुमार (गुणता प्रबंधन), मुहसिन एमकेपी (गुणता प्रबंधन) और के सुरेश बाबु (वित्त एवं लेखा) ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। कार्यशाला के सफल आयोजन में हिंदी विभाग की श्रीमती डी रत्नाकुमारी, कनिष्ठ कार्यपालक (एनयूएस) का सक्रिय सहयोग रहा। कार्यशाला का समापन प्रतिभागियों द्वारा राजभाषा में कार्य करने हेतु शपथ से हुआ।

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