हाल ही में हैदराबाद में एक शिक्षाविद्, अनेक पुरस्कारों से सम्मानित और हिंदी सेवक का जन्म दिवस पर अभिनंदन समारोह और अनेक पुस्तकों का लोकार्पण कार्यक्रम भव्य रूप से संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में अनेक कवि, लेखक, साहित्यकारों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। उस कार्यक्रम में हम भी शामिल हुए।
इसी क्रम में अगले दिन उस कार्यक्रम में लोकार्पित एक पुस्तक की समीक्षा ‘तेलंगाना समाचार’ के मेल में आया। व्यस्तता के कारण तब मैं पूरी समीक्षा नहीं पढ़ पाया और तेलंगाना समाचार के नियम के अनुसार प्रकाशित करने के लिए मैंने समीक्षक को फोटो भेजने को कहा। इसके बाद उसने फोटो भेजा। अच्छा लगा।
हमने प्रकाशित करने के लिए पुस्तक समीक्षा पढ़ी तो हैरान रह गये। समीक्षक ने पुस्तक और उसके रचयिता की गंभीर रूप से आलोचना की। यह देख हमने समीक्षक को फोन नंबर देने या मुझसे बात करने के लिए मेल किया। उसने ना ही नंबर दिया और ना ही फोन पर बात की। बल्कि एक और मेल भेजा/किया। उसका सारांश था- सत्यापन कर लीजिए।
हमने सत्यापन में पाया कि हैदराबाद में ऐसा कोई लेखक, साहित्यकार और कवि नहीं है जिस नाम से ‘तेलंगाना समाचार’ के मेल पर समीक्षा भेजी गई। समीक्षक ने एक जगह लिखा है- ‘गीता प्रेस जो कि आध्यात्मिक पुस्तकों के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है, ने व्यक्ति विशेष पुस्तकों में हाथ डालकर अपनी गरिमा को गिराने का काम किया है।’ समीक्षक को यह पता नहीं है कि गीता प्रेस और गीता प्रकाशन अलग-अलग है। इस दौरान ऐसे अनेक उदाहरण प्रकाश में आये, जिससे पुस्तक समीक्षक तेलंगाना समाचार के संदेह के घेरे में आ गया।
‘तेलंगाना समाचार’ का दृढ़ मत है कि किसी भी रचनाकार को, किसी भी विधा में, किसी भी लेखक, कवि और साहित्यकार को अपमानित और आलोचना करने का अधिकार नहीं है। समीक्षा पुस्तक की होनी चाहिए, किसी व्यक्ति के निजी जिंदगी की नहीं। इस तरह किसी के निजी जीवनी पर कुछ भी लिखना या प्रकाशित करना उस व्यक्ति या उस पत्रिकाओं की प्रतिष्ठा पर निर्भर रहता है। ‘तेलंगाना समाचार’ इस प्रकार के लेखक और इस तरह के रचनाओं को कभी भी स्थान नहीं देता। धन्यवाद।