“मुक्ता की परख” लेखक और साहित्यकार प्रवीण प्रणव और अवधेश कुमार सिन्हा जी के द्वारा संपादित तथा लिखित पुस्तक जिसका प्रकाशन 2023 में गीता प्रकाशन के द्वारा हुआ। प्रस्तुत पुस्तक को इन दोनों विद्वानों ने स्नेहमयी डॉ. अहिल्या मिश्र जी को समर्पित किया है।
भूमिका में प्रोफ़ेसर ऋषभ देव शर्मा जी ने लिखा है, “पहले जौहरी अवधेश कुमार सिन्हा की पारखी नज़र सबसे पहले उस परिस्थिति और परिवेश को ताड़ती है, जिसके प्रभावों ने इन आबदार मोतियों को सुडौलता और दीप्ति बख्शी है। वे यह खास तौर पर लक्षित करते हैं कि अहिल्या मिश्र के रूप में बिहार की मिट्टी में उपजा प्रतिभा का पौधा विकास की संभावनाओं की उठती आयु में हैदराबाद की जलवायु में रोपित होकर कैसे वातावरण को अपनी गंध से अप्यायित कर देता है।”
दूसरे, “जौहरी प्रवीण प्रणव की निगाह में यह अधिक महत्वपूर्ण है कि जिन मुक्ताफलों की परख वे कर रहें हैं, वे परंपरा के लिहाज़ से किस कोटि के हैं। इसके लिए वे एक तरफ तो अहिल्या जी की रचनाओं को विभिन्न साहित्यिक विधाओं की ऐतिहासिक सरणी में रखकर देखते हैं तथा दूसरी तरफ इन्हें कालजयी एवं प्रतिष्ठित साहित्यकारों की प्रसिद्ध पंक्तियों के निकष पर कसकर देखते हैं।”
इन दोनों उक्तियों के द्वारा यह तथ्य स्पष्ट रूप में सामने आ जाता है कि यह केवल एक पुस्तक नहीं एक विश्लेषणात्मक पुस्तक है। 12 आलेखों से सजी हुई है प्रस्तुत पुस्तक। अवधेश कुमार सिन्हा जी के द्वारा लिखित “चरैवेति चरैवेति” आलेख पहला आलेख है। अवधेश जी ने मैट्रिक पास लड़की किस प्रकार से विवाह के बाद बिहार से हैदराबाद आकर यहां कि संस्कृति-सभ्यता में रच बस जाती है। फिर उस लड़की का परिवार का परिवार के प्रति समर्पण, समाज के प्रति समर्पण, साहित्य के प्रति समर्पण, कादम्बिनी क्लब के प्रति समर्पण उसे बेटी,बहू, पत्नी, मां, सास आदि पहचानों से अलग डॉ. अहिल्या मिश्र की पहचान प्रदान करती है और फिर उन्हें सबकी “बड़का दाई” के रूप में भी स्थापित करती है। उस मैट्रिक पास लड़की के जीवन की विभिन्न अवस्थाओं को 124 पृष्ठों की प्रस्तुत पुस्तक बाकी के 11आलेखों में भी बारिकी से सजाया और संवारा गया है।
अंतिम पृष्ठों में उनकी रचनाओं की सूची को देखने से ही पता चल जाता है कि उनकी साहित्यिक यात्रा कितनी सफल और सुगठित रही है। प्रवीण प्रणव जी वर्णनात्मक शैली में लिखते हैं, “खाली हाथ हैदराबाद आकर जहां इनके पति ने कारोबार में सफलता के झंडे गाड़े, अपनी फैकट्रियाँ लगाई तो अहिल्या मिश्र ने भी अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, कई अलग-अलग नौकरियाँ की और फिर नवजीवन महिला मंडल में शिक्षिका के तौर पर इन्होंने अपनी सेवाएं दी। इस दौरान इन्होंने सामाजिक और साहित्यिक स्तर पर अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई”। जितनी सरल यह भाषा है उतनी सरलता से डॉ. मिश्र को जीवन में कुछ भी नहीं मिला। उन्हें जीवन रूपी महासागर में बार-बार गोंते मारकर अपनी ही श्वास-प्रश्वास से लड़कर हरेक उपलब्धि को प्राप्त करना पड़ा। ठीक वैसे ही, जैसे, गोताखोर महासागर के अतल में जाकर “मोती” को सीप से प्राप्त करता है।
जिस मुक्ता के बारे में हरिऔध ने लिखा है-
“कीच कमलों को जनता है
रतन सीपी में मिलते है
बूंद से मोती बनता है।”
वाकई में बूंद-बूंद जोड़कर इन द्वि विद्वतजनों ने “मुक्ता की परख” नामक पुस्तक का सृजन किया है। पुस्तक का नाम समीचीन है ही साथ ही साथ डॉ. अहिल्या मिश्र जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत तो थी हीं उनके जीवन की बारीकियों को जानने का सुअवसर प्रस्तुत पुस्तक दे द्वारा प्राप्त हुआ है। तभी तो प्रवीण जी ने लिखा है “कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त”….। बिल्कुल डॉ. मिश्र के पास जीवन का लंबा अनुभव है और इस अनुभव के द्वारा और दूसरी कहानियों का जन्म होता रहेगा और कहानी आगे बढ़ती रहेगी।
डॉ. सुपर्णा मुखर्जी
हैदरबाद
समीक्षित पुस्तक
मुक्ता की परख
प्रवीण प्रणव
तथा
अवधेश कुमार सिन्हा
गीता प्रकाशन
हैदराबाद -500001
ISBN NUMBER -978-93-5980-356-2
प्रथम संस्करण – 2023
मूल्य ₹300