नोट- ‘पुष्पक सहित्यिकी’ त्रैमासिक पत्रिका का लोकार्पण रविवार को रामकोट स्थित कीमती सभागार में कार्यक्रम हुआ।
हैदराबाद की प्रतिष्ठित साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका ‘पुष्पक सहित्यिकी’ के वर्ष 5, अंक 20 (अक्तूबर–दिसंबर 2022) का लोकार्पण, कादम्बिनी क्लब हैदराबाद की मासिक गोष्ठी (फ़रवरी 2023) में किया गया। पत्रिका का परिचय देते हुए, पत्रिका के संपादक, प्रवीण प्रणव ने कहा कि कादम्बिनी के मंच से ‘पुष्पक साहित्यिकी के इस अंक का लोकार्पण हर्ष का विषय है। आज मंच पर पत्रिका के परामर्शदाताओं में से एक प्रो. ऋषभदेव शर्मा और पत्रिका की प्रधान संपादिका डॉ. अहिल्या मिश्र विराजमान हैं। संपादकों में डॉ. आशा मिश्र ‘मुक्ता’ और मेरी भी उपस्थिति है। पत्रिका के एक और संपादक, अवधेश कुमार सिन्हा जी की आज कमी खल रही है, जो इस समय नोएडा में हैं।
पत्रिका के अंक को दिखाते हुए प्रवीण प्रणव ने कहा कि सर्दियों में ताज़ा खिले फूलों की खुशबू लिए इसका कवर पेज और इस कवर पेज पर सुमित्रानंदन पंत की कविता की पंक्ति; इसे आकर्षक बनाती है। जगीं कुसुम कलि थर् थर्/ जगे रोम सिहर सिहर,/ शशि असि सी प्रेयसि स्मृति/ जगी हृदय ह्लादिनी!/ शरद चाँदनी! – सुमित्रानंदन पंत।
प्रवीण प्रणव ने इस पत्रिका को चॉकलेट ‘किंडर जॉय’ से जोड़ते हुए कहा कि ‘किंडर जॉय’ में दो भाग होते हैं; एक भाग में चॉकलेट होता है और दूसरे भाग में बच्चों के लिए एक खिलौना। बच्चों को मालूम होता है कि चॉकलेट कैसा होगा और उसका स्वाद कैसा होगा लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम होता कि दूसरे भाग से कौन का खिलौना निकलेगा और यही उत्सुकता उन्हें बार-बार इस चॉकलेट की तरफ ले आती है। ‘पुष्पक सहित्यिकी’ के भी दो भाग हैं। एक स्थायी स्तंभों का, जहाँ पाठक इससे परिचित हैं, और दूसरा भाग है अन्य साहित्यिक सामग्रियों का, जिसे संपादक मंडल बहुत मेहनत और सावधानी से पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए चुनते हैं।
पत्रिका की संपादिका डॉ. आशा मिश्र ‘मुक्ता’ ने इस अंक में भी सबसे पहले गाँव की सौंधी मिट्टी की खुशबू से सराबोर संपादकीय लिखा है। गाँव के बदलते चेहरे पर मुक्ता जी ने लिखा है “मिट्टी के घरों का स्थान पक्के मकानों ने ले लिया है। पगडंडी और कच्ची सड़क, जिसे तय करने के लिए मुसाफ़िर कभी पैर और बैलगाड़ी का सहारा लेते थे, अब पक्की सड़क में परिणत हो चुकी है। बिजली चौबीस घंटे रहती है और आधुनिक संसाधनों की कमी नहीं है। स्वाभाविक है आधुनिकतावाद और पाश्चात्यवाद भी शनैः – शनैः ग्रामीण सभ्यता के बीच पाँव पसारेगी ही। फलस्वरूप लोकसंस्कृति, ढ़िवादिता की संज्ञा के साथ सिमट रही है और लोकभाषा, अंग्रेजी और हिंदी के बीच मुस्कुराने की कोशिश कर रही है। आस्था और विश्वास का पर्व तब भारी पड़ने लगता है जब नई पीढ़ी इसे लॉजिक की कसौटी पर तौलती है। उनके पास समय और विश्वास दोनों की कमी है। शरीर के डिटॉक्सीफिकेशन को वे सही मानती हैं, लेकिन निर्जला उपवास को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक। मूल परंपरा के उद्देश्य को सुरक्षित रखने के लिए इसके कठोर नियमों में कुछ परिवर्तन करें तब घटती आस्था और टूटते विश्वास को बचाना सहज होगा।“
‘चिंतन के क्षण’ स्तंभ, जिसमें पत्रिका की प्रधान संपादिका डॉ. अहिल्या मिश्र, आध्यात्मिक और दार्शनिक सूक्तियां लिखती रही हैं, में डॉ. मिश्र ने ‘दौड़ और मोड़’ विषय पर अपने विचार रखे हैं। डॉ. मिश्र ने लिखा है “जीवन एक सुरंग है। इसमें हम सड़क और मंजिल दोनों के लक्ष्य को ले कर दौड़ लगाते रहते हैं। दौड़ और मोड़ की प्रणोति ही तो जीवन दर्शन है। इसे आप चाहकर अपनाएं या अनचाहे, आपको इसी चक्र में जीना है। इस बीच कुछ तो अच्छा घटने दें, ताकि शेष, अशेष बन जाए। आप संतुष्ट हो सकें।“
पत्रिका के स्थायी स्तंभ ‘शख्सियत’, जिसे प्रवीण प्रणव लिखते हैं, में हर बार किसी एक साहित्यकार के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक रोचक और ज्ञानवर्धक लेख होता है। पत्रिका के इस अंक में प्रवीण प्रणव ने ‘देश प्रेम के रंग में रंगी मर्दानी : सुभद्रा कुमारी चौहान’ शीर्षक से सुभद्रा कुमारी चौहान से पाठकों का परिचय करवाया है।
पत्रिका के स्तंभ ‘धरोहर’, जिसका संकलन प्रवीण प्रणव करते हैं, में पत्रिका के प्रकाशन के तीन महीनों में जिन साहित्यकारों की जन्मतिथि है, उनमें से हर महीने के लिए किसी एक साहित्यकार का चयन कर, उनकी संक्षिप्त जीवनी और उनकी एक कृति पाठकों से लिए प्रकाशित की जाती है। पत्रिका के धरोहर के इस अंक में अक्तूबर महीने के लिए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को लिया गया है। उनके परिचय के साथ ही उनका एक लेख ‘उर्दू राष्ट्र भाषा’ भी संकलित है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हैदराबाद में Young men’s Improvement Society की सभा में डॉ. निशिकांत चटर्जी ने कहा था कि उर्दू, भारत की राष्ट्र भाषा होने योग्य है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसी के विरोध में यह लेख लिखा था। यह लेख नागरीप्रचारिणी पत्रिका के दिसंबर, 1909 अंक में प्रकाशित हुई थी। नवंबर महीने के लिए पाकिस्तान की मशहूर शयरा, परवीन शाकिर के परिचय के साथ उनकी एक ग़ज़ल प्रकाशित है। बहुत कम लोग इस बात से परिचित हैं कि परवीन शाकिर के पिता बिहार राज्य के दरभंगा जिला में लहेरिया सराय के रहने वाले थे जो विभाजन के बाद कराची चले गए। धरोहर में साहित्यकारों के बारे में ऐसी जानकारियाँ पाठकों के लिए रोचकता बनाए रखती है। दिसंबर महीने के लिए द्वारका प्रसाद माहेश्वरी के संक्षिप्त परिचय के साथ ही उनकी प्रसिद्ध कविता ‘वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।‘ संकलित है।
पत्रिका के ‘विश्व साहित्य’ स्तंभ में, जिसका संकलन अवधेश कुमार सिन्हा करते हैं, किसी विदेशी साहित्यकार के परिचय के साथ, उनकी किसी रचना से पाठकों का परिचय करवाया जाता है। पत्रिका के इस अंक में अवधेश कुमार सिन्हा ने एनी एर्नॉक्स (फ्रांसीसी लेखिका जिन्हें वर्ष 2022 का साहित्य नोबेल पुरस्कार दिया गया) का परिचय और उनकी आत्मकथा के एक अंश का (अंग्रेजी से अवधेश कुमार सिन्हा द्वारा किया गया) हिंदी अनुवाद, पाठकों के लिए परोसा है।
‘नए प्रकाशन पर दृष्टिपात’ स्तंभ, जिसमें डॉ. अहिल्या मिश्र नई प्रकाशित कृतियों में से कुछ पुस्तकों की संक्षिप्त समीक्षात्मक परिचय लिखती है, में निम्न कृतियों कीसंक्षिप्त समीक्षा सम्मिलित है:
- अंधियारा है यहाँ (ग़ज़ल संग्रह) / लेखक : माँगन मिश्र ‘मार्तण्ड’ / प्रकाशन : नमन प्रकाशन, नई दिल्ली
- शिखरों की छाँव में (यात्रा साहित्य)/ लेखक : माँगन मिश्र ‘मार्तण्ड’ / प्रकाशन : नमन प्रकाशन, नई दिल्ली
- महमूद गवान (नाटक)/ मूल लेखक : चंद्रशेखर कंवार / अनुवादक : डॉ. उषा रानी राव (कन्नड से हिंदी अनुवाद)/ प्रकाशक : यश पब्लिकेशन, नई दिल्ली।
- वृद्धोपनिषद (कविता संग्रह)/ मूल लेखक : एन. गोपी / अनुवादक : (तेलुगु से हिंदी) शांता सुंदरी / प्रकाशक : ध्वनि प्रचुरणलु हैदराबाद।
- गुरु दक्षिणा (कहानी संग्रह) / लेखक : सनातन कुमार वाजपेयी ‘सनातन’
‘समाचार दर्शन’ स्तंभ, हैदराबाद में पत्रिका के प्रकाशन महीनों में हुई साहित्यिक घटनाओं से पाठकों का परिचय करवाने का काम करता है। डॉ. अहिल्या मिश्र द्वारा संकलित समाचारों में इस अंक में निम्नलिखित समाचारों का विवरण शामिल है:
- ग्यारहवाँ साहित्य गरिमा पुरस्कार (2019), 21 अगस्त को, डॉ. उषा रानी राव को उनके खंड काव्य ‘कविता की आंच में पिघलता अंधेरा’ के लिए प्रदत्त किया गया।
- 21 अगस्त को ही डॉ. अहिल्या मिश्र की किताब ‘मील का पत्थर’ और ‘पुष्पक सहित्यिकी से संयुक्तांक (18-19) का लोकार्पण किया गया।
- कादम्बिनी क्लब हैदराबाद की जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्तूबर और नवंबर माह की गोष्ठी का विवरण।
इसके अतिरिक्त ‘मत – अभिमत’ में पाठकों की प्रतिक्रियाएं प्रकाशित हैं और ‘पुस्तक प्राप्ति’ में पुष्पक सहित्यिकी के पते पर भेजी गई पुस्तकों का विवरण शामिल है।
बात यदि स्थायी स्तंभों से इतर साहित्यिक सामग्री की करें, तो पत्रिका के इस अंक में साहित्य की विभिन्न विधाओं से चुनकर एक ऐसा गुलदस्ता तैयार किया गया है, जिससे यह अंक पाठकों के लिए संग्रहणीय बन जाय।
पत्रिका में गद्य और पद्य दोनों की ही प्रधानता रही है और इस अंक में भी यह दृष्टिगत होता है। काव्य में निम्नलिखित साहित्यकारों की रचनाओं को स्थान मिला है।
ग़ज़ल
- राजेश जैन ‘राही’
- नवीन माथुर पंचोली
- विज्ञान व्रत
- डॉ. राम बहादुर चौधरी चंदन
- केशव चरण
- बृज राज किशोर ‘राहगीर’
कविता
- मोहित ‘ओझल’
- मोतीलाल दास
- वैभव दुबे
- मुकेश कुमार ‘ऋषि वर्मा’
हाइकु
- प्रकाश भानु महतो
- डॉ. सुरेश उजाला
गद्य में भी पत्रिका ने लघुकथा, कहानी, यात्रा-वृतांत, साक्षात्कार, व्यंग्य, समीक्षा आदि विधाओं को समाहित किया है। पत्रिका के इस अंक में निम्नलिखित प्रकाशित हैं।
लघु कथा
- ‘श्वेत – श्याम’ – सपना चंद्र
- ‘प्रतिकार’ – सीताराम गुप्ता
- ‘सपने और हक़ीकत’ – सुनीता नाराद
- ‘मुखौटा का प्यार’ – श्री हरिहरण चौधरी
- ‘बसेरा’ – भावना पुरोहित
- ‘काश’ – डॉ. दलजीत कौर
- ‘पुलिस भी इंसान है’ – इंदु सिन्हा ‘इंदु’
- ‘कन्या पूजन’ – अर्चना भटनागर
कहानी
- ‘रावण दहन’ – शांति अग्रवाल
- ‘सच कहने की सजा’ – प्रदीप गुप्ता
- ‘अवसर फिसल गया’ – रमेश मनोहरा
- ‘विमाता सुनीता’ – सनातन कुमार वाजपेयी ‘सनातन’
व्यंग्य
- ‘हे लक्ष्मी मैया, मेरे घर कब आओगी’ – गौरीशंकर वैश्य विनम्र
- ‘यक्ष इन पुस्तक मेला’ – दिलीप कुमार
आलेख
- ‘दक्षिण में हिंदी का विकास’ – प्रो. शुभदा वांजपे
- ‘आधुनिक हिंदी मिथकीय उपन्यासों में ग्रामीण चेतना’ – डॉ. एस कृष्ण बाबू
- ‘गायत्री मंत्र का पुरश्चरण व्रत’ – गिरीश ‘गोवर्धन’
नाटक /रंगमंच
- ‘एक साक्षात्कार : गिरीश कर्नाड के साथ कीर्तिनाथ कुर्तकोटी’ / हिंदी अनुवाद : डॉ. उषा रानी राव
समीक्षा
- कशकोल : सफ़ीना-ए-उर्दू के ना-खुदाओं की दास्तानें
किताब : कशकोल / लेखक : राजकुमार केसवानी/ समीक्षक : डॉ. लक्ष्मीनारायण मित्तल
- विविधता से परिपूर्ण विशेष कृति
किताब : मील का पत्थर / लेखिका : डॉ. अहिल्या मिश्र / समीक्षक : डॉ. हरीसिंह पाल
- मानव मन का उद्वेलन है ‘वेदना की वादियाँ’
किताब : वेदना की वादियाँ / लेखक : सतीश गुप्ता / समीक्षक : जयराम सिंह गौर
यात्रा वृतांत
- मेरी पहली विदेश यात्रा: मॉरीशस – डॉ. अहिल्या मिश्र : (धारावाहिक लेख का अंतिम अंश)
प्रवीण प्रणव ने उपस्थित दर्शकों से कहा कि हैदराबाद से प्रकाशित पत्रिका ‘कल्पना’ का अपना एक गौरवमयी इतिहास रहा है लेकिन इस पत्रिका के बंद होने के बाद से जो रिक्तता आई है, उसे भरने का संकल्प ले कर यह संपादक मंडल, हमारी प्रधान संपादिका डॉ. अहिल्या मिश्र ने नेतृत्व में कार्य कर रहा है। हम अभी अपनी मंज़िल से कोसों दूर हैं, लेकिन हम इससे हतोत्साहित नहीं, बल्कि इस बात से उत्साहित और प्रेरित हैं कि हमने सही दिशा में अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। प्रवीण प्रणव ने उपस्थित दर्शकों से इस पत्रिका के साथ जुड़ने और इस साहित्यिक यात्रा में सहभागिता करने का आह्वान किया। एक प्रति का मूल्य 100 और वार्षिकी 300 रुपये हैं।
पुष्पक साहित्यिकी मिलने का पता-
93-सी, राज सदन वेंगलराव नगर
हैदराबाद- 500038
प्रवीण प्रणव