कादम्बिनी क्लब: 364वीं मासिक गोष्ठी में लेखिका सरिता सुराणा के पति विमल सुराणा को दी गई श्रद्धांजलि

हैदराबाद: कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में क्लब की 364वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह गोष्ठी प्रो ऋषभदेव शर्मा की अध्यक्षता में गूगल मीट पर किया गया। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्ष) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने संयुक्त रूप से बताया कि प्रथम सत्र का आरंभ डॉ रमा द्विवेदी द्वारा सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना से हुआ।

तत्पश्चात् क्लब सदस्या सरिता सुराणा के पतिदेव विमल सुराणा के दुखद निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि क्लब की ओर से दी गई। उन्हें याद करते हुए डॉ मिश्र ने कहा कि विमल सुराणा मृदु भाषी एवं सरल स्वभाव के थे। वे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सदा क्लब के सहयोगी बने रहे। हम प्रार्थना करते हैं कि सरिता जी और परिवार जन को ईश्वर इस कठोर आघात को सहने का बल प्रदान करें।

प्रथम सत्र में देशभक्त ‘सुभद्रा कुमारी चौहान के काव्य सिद्धांत और उनका कवयित्री रूप’ विषय पर प्रमुख वक्ता डॉ उषा दुबे (पूर्व प्राचार्या व ए जी आई जबलपुर चैप्टर की संयोजिका) ने अपनी बात में कहा कि खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी कविता के रचयिता को कौन नहीं जानता। स्वदेश गौरव और स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयास में वह निरंतर आंदोलनों में सहभागी रहीं और कई बार जेल की यात्रा भी कीं। सुभद्रा जी के अनुसार कवि का स्थान एक दार्शनिक, इतिहासकार और धर्माधिकारी से भी ऊंचा है। वे कहती थीं कि कवि को समाज और राष्ट्र निर्माण में सहयोग देना चाहिए। यदि हम स्व के घेरे में जाएँगे तो समाज की प्रगति रुक जाएगी।

सुभद्रा जी में गृहणी, पतिव्रता के साथ-साथ एक विशेष आदर्श था। विनम्रता, सद्भाव, हंसमुख स्वभाव उनकी विशेषता थी। उनकी ओज से भरी कविताएं विशेष रुप से ध्यान आकर्षित करती हैं। उनकी रचनाओं में देश के प्रति समर्पण के साथ वात्सल्य भाव भी नज़र आते हैं। दलित वर्ग पर भी भाव प्रवण रचनाएं उन्होंने लिखा। संवेदना के विविध रूपों को चित्रित किया है। डॉ दुबे ने सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 7 अगस्त 1976 को भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किए जाने की बात भी की।

अवसर पर डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि डॉ उषा तनमन से साहित्य के प्रति समर्पित रही हैं और आज बहुत ही सार्थक संगोष्ठी सत्र रहा। इसी क्रम में निशी मोहन, डॉ रमा द्विवेदी एवं डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ ने भी सुभद्रा कुमारी चौहान के जीवन से जुड़ी संस्मरण साझा किए। प्रो ऋषभ देव शर्मा ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि डॉ उषा दुबे साहित्य की विशेषता हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान के स्वर में राष्ट्रीय जागरण का स्वर है। अपने वचन को जीने वाली स्वतंत्रता आंदोलनकारी और स्त्री शक्ति तथा भारतीय नारी का पारंपरिक रूप उनमें देखने को मिलता है। उनके काव्य के कुछ अंश का पाठ प्रोफेसर ऋषभदेव ने किया। संगोष्ठी सत्र के संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा व प्रवीण प्रणव ने भी अपनी बात रखी।

दूसरे सत्र में प्रो शर्मा की अध्यक्षता एवं प्रवीण प्रणव की कुशल संचालन में कवि गोष्ठी आयोजित की गई। शिल्पी भटनागर, गीत अग्रवाल, विनोद गिरि अनोखा, सीपी दायमा, भावना पुरोहित, मीनू कौशिक, डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’, दर्शन सिंह, सत्यनारायण काकड़ा, उमेश चंद्र श्रीवास्तव, ज्योति नारायण, अजय कुमार पांडे, संतोष राजा, डॉ सुषमा देवी, निशी कुमारी, विनीता शर्मा, सुनीता लुल्ला, ज्योति नारायण, दर्शन सिंह, सत्यनारायण काकड़ा, प्रवीण प्रणव, मीना मुथा, डॉ अहिल्या मिश्र बेल्लम हरिकृष्णा, एवं डॉ सुषमा सिंह ने भाग लिया। गीत, गजल, नज़्म, दोहे, मुक्तक, तेवरी, नवगीत आदि विधाएं शामिल थीं।

प्रो शर्मा ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि सभी ने सुंदर काव्य पाठ किया है और निश्चित ही आज की गोष्ठी बहुत सार्थक रही है। अध्यक्षीय काव्य पाठ और मीना मुथा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी का समापन हुआ।

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