लेख: पितृपक्ष का अंतिम अमावस्या और आजादी का अमृत महोत्सव, यह है खास

[नोट- लेख में उल्लेखित विचार लेखक है। संपादक विभाग का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है]

25 सितंबर को पितृ पक्ष का अंतिम दिवस। आज के दिन जाने अंजाने भूले भटके पितरों के सभी ज्ञात अज्ञात पितरों और पूर्वजों को सादर नमन, प्रणाम, पुण्य स्मरण और वंदन करने का पुण्य और पवित्र दिवस है।

कितना सार्थक और महत्वपूर्ण हो जाएगा यह पितृ पर्व जब स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में हम उन मां भारती के अमर सपूतों, शहीदों को भी भावांजलि, श्रद्धांजलि और श्रद्धा सुमन अर्पित करने के साथ साथ एक जलता हुआ दीप अर्पित करेंगे। उन्हे उचित मान सम्मान देकर अनुभूत करायेंगे की हम उनके त्याग, समर्पण और बलिदानों को आज भी भूले नहीं हैं। आज भी हम उनके कृतज्ञ हैं।

विश्व की अकेली संस्कृति है- ‘सनातन संस्कृति’। जहां नश्वर शरीर का परित्याग कर चुके पितृ पक्ष और मातृ पक्ष की तीन पीढ़ियों को स्मरण करने, पूजन और वंदन करने की अनवरत परंपरा चल रही है। आज तीन पीढ़ियों की इस परम्परा को और भी विस्तार देंगे। परिवारवाद से ऊपर उठाकर भारतीय परिवार की सीमा तक इसका विस्तार करेंगे।

अन्य संस्कृतियों में तो मां-बाप को जीवित ही वृद्धाश्रम पहुंचा दिया जाता है। धन्य है सनातन संस्कृति। धन्य हैं इसे प्रारंभ करने वाले ऋषि और मनीषीगण। उन्हें सादर नमन। एक सनातनी होने के कारण भारत वर्ष में इस परम्परा को उदारता और श्रद्धा से मनाना चाहिए।

पितरों के बाद ही मातृ पर्व ‘नवरात्र पर्व’ का शुभागमन हो जाता है। बिना पितरों को संतुष्ट किए मां कभी प्रसन्न नही होती। इसे याद रखना चाहिए। संस्कृति के कुशल संवाहक बनिए। पितृ ऋण और राष्ट्र ऋण को सतत याद रखना चाहिए। अवसर मिलते ही सौभाग्य समझकर इसे प्रसन्नता के साथ निभाना चाहिए। इस ऋण से उऋण हो जाना चाहिए। विदेशी संस्कृतियों में यह बात कहां है?

शाहजहां को उसके बेटे औरंगजेब ने सात साल तक कारागार में रखा था। वह उसे पीने के लिए नपा-तुला पानी एक फूटी हुई मटकी में भेजता था। तब शाहजहां ने अपने बेटे औरंगजेब को पत्र लिखा जिसकी अंतिम पंक्तियां थी-

“ऐ पिसर तू अजब मुसलमानी,

ब पिदरे जिंदा आब तरसानी,

आफरीन बाद हिंदवान सद बार,

मैं देहदं पिदरे मुर्दारावा दायम आब”

अर्थात् हे पुत्र! तू भी विचित्र मुसलमान है जो अपने जीवित पिता को पानी के लिए भी तरसा रहा है। शत-शत बार प्रशंसनीय हैं वे ‘हिन्दू’ जो अपने मृत पूर्वजो को भी पानी देते हैं। पूजते हैं और वंदन करते हैं। ऐसे महान भारतीय संस्कृति और उसकी उच्चतर महत्तर परंपराओं को मैं नमन करता हूं।

लेखक डॉ जयप्रकाश तिवारी लखनऊ
(
9450802240, 9453391020)

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