तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी (BJP) मजबूत होती जा रही है। इसका मुख्य कारण उसकी रणनीति है। यदि बीजेपी की यह रणनीति सफल रही तो कर्नाटक के बाद तेलंगाना दूसरा राज्य होगा जहां बीजेपी को सत्ता में आएगी और इसे कोई नहीं रोक पाएगा। फिर भी यह सब कांग्रेस के प्रदर्शन पर निर्भर है। साथ ही समीकरण के हिसाब से बदल भी सकता है।
मुख्य मुकाबला
विश्लेषकों का मानना है कि तेलंगाना में अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले यदि कांग्रेस मजबूत नहीं होती है तो मुख्य मुकाबला तेलंगाना राष्ट्र समिति और भारतीय जनता पार्टी के बीच ही होगा। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए तेलंगाना काफी अहम है। क्योंकि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी ने कई राज्यों में जीत हासिल की है। लेकिन दक्षिण भारत में कर्नाटक तक ही सीमित होकर रह गई। इसीलिए बीजेपी के लिए इस बार तेलंगाना का चुनाव काफी अहम है। हैदराबाद निकाय चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी ने पूरा ध्यान आने वाले विधानसभा चुनाव पर केंद्रित किया है।
जाति समीकरण
इस चुनाव में जाति समीकरण भी काफी अहम भूमिका निभाने वाली है। हुजूराबाद उपचुनाव जीत के बाद बीजेपी इसके समीकरण पर फोकस किया और आगामी चुनाव की पूरी रणनीति तैयार कर रही है। बीजेपी का इस बार अधिक जोर हैदाराबाद निकाय चुनाव नतीजों के समीकरण की बजाय हुजूराबाद उपचुनाव नतीजों के समीकरण पर है। बीजेपी का जोर इस बार ध्रुवीकरण पर कम और पिछड़ी जाति के एकीकरण पर ज्यादा है। ग्रामीण तेलंगाना में सामाजिक-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा जाति और नेता से तय होती है, किसी धर्म और पार्टी से कोई लेना देना नहीं है। तेलंगाना के 12 फीसदी मुसलमानों में से अधिकांश शहरी निवासी हैं। ज्यादातर हैदराबाद में बसे हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए भाजपा की रणनीति कामयाबी के दरवाजे खोल सकती है।
रेड्डी और वेलमा जाति का प्रभाव
विश्लेषकों का यह भी मानना है कि तेलंगाना में लंबे समय से रेड्डी और वेलमा जाति का प्रभाव रहा है। बार-बार यही लोग सत्ता में आये हैं और रहे हैं। पिछली बार चुनाव में टीआरएस को पिछड़ी जातियों और दलितों का समर्थन हासिल हुआ था। 1980 के दशक की शुरुआत में रेड्डी समुदाय वाली यानी कांग्रेस की सरकार थी। इसे तेलुगु देशम पार्टी ने चकनाचूर कर दिया। क्योंकि उस समय पिछड़ी जातियों और दलितों का संपूर्ण समर्थन टीडीपी को साथ मिला था। तेलंगाना में अब भी इसी तरह की प्रक्रिया चल रही है।
वंशवाद विरोधी रणनीति
विश्लेषक कहते हैं कि हैदराबाद और वरंगल के आसपास के नये जिलों में पिछड़ी जातियां मजबूत हुई है। यह वह जातियां/समुदाय हैं जिनके पास भूमि नहीं है, यदि है तो भी वह नाम मात्र है। ये पिछड़ी जातियां में मुन्नूरु कापू और मुदिराज हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी ने बड़े पैमाने पर इसी बात को ध्यान में रखकर रणनीति तैयार की है। तेलंगाना की 52 फीसदी पिछड़ी जाति की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मुन्नूरु कापू 12 फीसदी है। बीजेपी के तेलंगाना के अध्यक्ष बंडी संजय इसी समुदाय के हैं। हैदराबाद में पीएम मोदी का भाषण और बीजेपी की वंशवाद विरोधी रणनीति यह भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बीजेपी जहां भी जाती है वहां वंशवाद के आरोप को सामंतवाद और सत्ता के केंद्रीकरण के प्रतीक के रूप में पेश कर रही है। यह आरोप केसीआर परिवार पर लागू हो रहा है। लोग इसे सही भी मान रहे है।
ओबीसी जातियों के ध्रुवीकरण
टीआरएस छोड़कर या बहिष्कृत पूर्व मंत्री ईटेला राजेंदर भाजपा में शामिल हुए। राजेंदर के हुजूराबाद से चुनाव जीत को भाजपा ने एक पिछड़ी जाति के नेता की जीत के रूप में पेश किया। भाजपा की ओर से पेश इस राजनीतिक चुनौती का सामना टीआरएस कैसे करेगी? यह उसके रणनीति पर निर्भर करता है। ओबीसी जातियों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए टीआरएस अनेक संगठनों में यादव और गौड़ जैसे समुदाय को संख्यात्मक रूप से पर्याप्त पिछड़ी जातियों को अधिक स्थान दे रही है।
कांग्रेस का खिसकता जनाधार
विश्लेषक यह भी कहते है कि तेलंगाना में कांग्रेस के खिसकते जनाधार की वजह से भाजपा को राज्य में फायदा हुआ और हो रहा है। हालांकि यह भी तर्क दिया जा सकता है कि यदि कांग्रेस अधिक कमजोर हुई तो टीआरएस को फायदा हो सकता है। रेड्डी समुदाय के साथ-साथ कांग्रेस की पकड़ दलित और मुसलमान समुदाय पर भी है। दलित वर्ग पिछड़ी जातियों के साथ आने और मुसलमान हिंदुओं के साथ एकजुट होने पर लामबंद हो सकते हैं। 2019 में केवल 5 फीसदी दलितों और 2 फीसदी मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया। कांग्रेस के और अधिक कमजोर होने पर इन दो समूहों का टीआरएस के पक्ष में ध्रुवीकरण हो सकता है। केसीआर का आक्रामक रूप दलितों को लुभा रहे हैं। हाल ही में दलित बंधु योजना को लागू किया है। इस योजना के तहत हर दलित परिवार को 10 लाख रुपये देने का वादा शामिल है। बीजेपी अब तक एकमात्र दक्षिणी राज्य में सफल हुई है और वो है कर्नाटक राज्य। कर्नाटक में भी तेलंगाना जैसी स्थिति थी। यहां लिंगायत और वोक्कालिगा का वर्चस्व है। बीजेपी ने अपना संगठन लिंगायत के इर्द-गिर्द खड़ा किया।
केसीआर की नई पार्टी
तेलंगाना में भी बीजेपी ऐसी ही रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है। टीआरएस वंशवाद आरोप घिरे होने के बावजूद राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश का मंच बना रही है। दशहरें के दिन केसीआर नई पार्टी का ऐलान भी कर सकते हैं। वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की अध्यक्ष वाईएस शर्मिला लंबी पदयात्रा पर है। इसी तरह बीएसपी के नेता प्रवीण कुमार भी एक दमदार और ईमानदार नेता के रूप में जाने जाते है। वे भी पदयात्रा के दौरान लोगों से मिल रहे है। उनकी समस्या और सुझाव पर अपनी रणनीति तैयार कर रहे है। इसी बीच क्यू न्यूज यू ट्यूब चैनल के प्रमुख तीन मल्लन्ना एक जागरूकता आंदोलन के साथ लोगों में जा रहे है। आने वाले चुनाव में तीन मल्लन्ना की टीम सभी दलों को पटकनी देने की ताकत भी रखता है। अब एआईएमआईएम की अपना एक वोट बैंक है। इसका गठबंधन टीआरएस से है।
काफी दिलचस्प होने वाला है विधानसभा चुनाव
उसी तरह तेलंगाना टीडीपी, प्रोफेसर कोदंडराम की तेलंगाना जन समिति और के ए पॉल की प्रजा शांति पार्टी है। इनका अपना थोड़ा सा वोट बैंक है। यह दो पार्टियां किसी से मिल जाती है तो उसे फायदा हो सकता है। सीपीआई और सीपीएम (वामदल) भी हैं। वामदलों ने बीजेपी को हराने के लिए टीआरएस का साथ देने का ऐलान किया। इसमें कोई शक नहीं है कि तेलंगाना में अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है। इससे पहले कभी नहीं हुआ।