हैदराबाद/नई दिल्ली: केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से भाषा विमर्श की श्रृंखला के अंतर्गत ‘पूर्वोत्तर में हिंदी : विविध आयाम’ विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार भाषा कर्मी राहुल देव ने अंग्रेजी की देखरेख में विकसित हो रही नई पीढ़ी के समक्ष हिंदी को लेकर खड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया। वहीं कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने, उपनिवेशवाद की जकड़ से बाहर निकलने तथा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच एकजुटता कायम करने के तीन सूत्री मोर्चे पर काम करने का आह्वान करते हुए हिंदी के विकास के लिए हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा की गई घोषणाओं को गेम चेंजर बताया। उन्होंने कहा कि 22000 शिक्षकों की भर्ती से पूर्वोत्तर सहित देश के सभी हिंदीतर क्षेत्रों में हिंदी की पैठ मजबूत होगी।
हिंदी आज चुनौतीपूर्ण स्थितियों से गुजर रही है
पूर्वोत्तर में हिंदी आज चुनौतीपूर्ण स्थितियों से गुजर रही है और उसे लेकर कई महत्वपूर्ण संभावनाएँ दिखाई दे रही हैं। गृहमंत्री द्वारा बडी संख्या में हिंदी शिक्षकों की नियुक्ति और बोलियों की लिपि को लेकर जो घोषणाएँ की गई हैं वे नई सोच और दिशा का संकेत देती हैं। इसे लेकर भाषाप्रेमियों की आशाएँ बलवती हो गयी हैं। देश के विद्वान इस विषय को लेकर निरंतर चिंतन कर रहे हैं और स्थितियों का नए परिप्रेक्ष्य में आकलन कर रहे हैं।
दुनिया के 25 देशों के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए जोशी ने कहा कि आजादी की लड़ाई को राष्ट्रीय स्तर पर धार देने के लिए वर्ष 1918 में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत की एकता के लिए संपर्क भाषा के रूप में फिर राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की वकालत की थी। चूंकि गांधी जी केवल कथन वीर नहीं थे, वे जो कहते थे उस पर अमल भी करते थे, इस को चरितार्थ करते हुए उन्होंने दक्षिण में हिंदी के प्रचार के लिए अपने पुत्र को भेजा। आज भी लाखों की संख्या में देश भर में जो हिंदी प्रचारक फैले हुए हैं उनके पीछे गांधी जी की प्रेरणा ही काम कर रही है। गांधी जी की यह पक्की समझ थी कि उपनिवेशवादी ताकतों ने षड्यंत्र के तहत भारतीय संस्कृति को छिन्न-भिन्न करने का पूरा पूरा इंतजाम किया है।
जोशी ने कहा कि गांधी जी के नेतृत्व में देश के तत्कालीन सभी बड़े नेताओं ने भाषाई एकता के लिए हिंदी पर बल दिया था। सन 1857 के बाद अंग्रेजों ने देश के लोगों में फूट डालने और राज करने की नीयत से भाषा का विवाद खड़ा किया जिस तरह उन्होंने धार्मिक आधार पर भारतीयों को भरसक भड़काने की कोशिश की ठीक उसी तरह भाषा के विवाद को भी खाद पानी दिया। गुलाम देश समय पाकर आजाद होते रहे हैं, लेकिन यह सच्चाई है कि आजादी मिलने के बाद भी सैकड़ों वर्षो तक उपनिवेशवादी दंश के अंश बरकरार रहते हैं। आजादी के 75 साल होने के बाद भी बेतुके आर्य सिद्धांत के जरिए उत्तर को दक्षिण से दूर रखने की कोशिश उसी उपनिवेशवादी प्रभावका नजीर है।
श्री जोशी ने बताया…
श्री जोशी ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से लाई गई नई शिक्षा नीति इसका मुकम्मल समाधान प्रस्तुत करती है। बड़े पैमाने पर हिंदी शिक्षकों की भर्ती, स्थानीय बोलियों-प्रादेशिक भाषाओं के अनुवाद विषयक गृहमंत्री की घोषणाओं से हिंदी के विस्तार को और गति मिलेगी। उन्होंने कहा कि हिंदी सेवियो को इसके लिए तीन प्रमुख मोर्चों पर काम करना होगा। पहला हमें उपनिवेशवादी सोच की जकड़न को तोड़ना होगा दूसरा हमें हिंदी को राष्ट्रीयता तथा राष्ट्रीय एकता के परिप्रेक्ष्य में रखते हुए व्यवहार की भाषा, संपर्क की भाषा और राष्ट्र की भाषा के रूप में स्वीकार करना होगा और तीसरा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच पारस्परिकता तथा एकजुटता कायम करनी होगी। समन्वय और सामंजस्य के जरिए यह संदेश देना होगा कि हिंदी की किसी भी भारतीय भाषा के साथ कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है बल्कि सभी एक दूसरे के लिए पूरक हैं। इससे हिंदी थोपे जाने की आशंका भी दूर होगी।
राहुल देव ने कहा…
इससे पहले अध्यक्षीय भाषण करते हुए राहुल देव ने कहा कि पुरानी पीढ़ी के लोगों के मन में हिंदी को लेकर जो भाव थे, नई पीढ़ी की चिंता और चुनौतियां उससे भिन्न है। संसदीय राजभाषा सम्मेलन के दौरान गृह मंत्री द्वारा हिंदीतर क्षेत्र में कक्षा 1 से 10 तक हिंदी की अनिवार्य पढ़ाई की घोषणा के बाद विभिन्न राज्यों से मिली विरोध की प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहे युवाओं में अधिकांश का हिंदी के प्रति कोई लगाव नहीं रह गया है। इस क्रम में श्री देव ने इंफाल अगरतला और गुवाहाटी के सम्मेलनों से प्राप्त अपने पुराने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि तब के पुराने नेताओं में राष्ट्रीय एकता के लिहाज से हिंदी के प्रति आकर्षण था। उन्होंने कहा कि हमें वही जोश और जज्बा आज की पीढ़ी में भी पैदा करना होगा तभी हिंदी का विस्तार होगा।
गोविंद चंद्र भागवती ने बताया…
संगोष्ठी में वक्ता के तौर पर शामिल असम राष्ट्रभाषा सेवक संघ के सांस्कृतिक सचिव गोविंद चंद्र भागवती ने बताया कि असम के ग्रामीण इलाकों में भी हिंदी रोज-रोज बढ़ रही है। स्कूल कॉलेज में विद्यार्थियों के मन में हिंदी को लेकर थोड़ा बहुत संकोच तो है लेकिन टीवी और सिनेमा के जरिए हिंदी का व्यवहार हो रहा है। यूपी बिहार से आने वाले लोगों के कारण भी आसाम में हिंदी का दायरा बड़ा हुआ है। राजनीतिक स्तर पर थोड़ा विरोध है लेकिन आसाम के अधिकांश इलाकों में हिंदी कामकाज की भाषा के रूप में प्रयोग की जा रही है।
श्री भगवती ने कहा कि आसाम में हिंदी शिक्षकों की कमी नहीं है अगर हमें आसाम में हिंदी को और अधिक गति देनी है तो बाहर से शिक्षक बुलाए जाने की बजाय यहां स्थानीय स्तर के ही शिक्षकों की नियुक्ति का रास्ता तैयार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक से दसवीं तक हिंदी की अनिवार्य शिक्षा के प्रावधान के बाद अगर हिंदी पढ़ाने के लिए भी बाहर से शिक्षक बुलाए जाएंगे तो इसका विपरीत असर होगा। उन्होंने हिंदी के प्रचार प्रसार में लगी संस्थाओं के लालफीताशाही का भी जिक्र किया।
जोराम यालम नाबम ने कहा…
राजीव गांधी विश्वविद्यालय, ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश से जुड़ी जोराम यालम नाबम ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में हिंदी का प्रयोग आम बात है। हालांकि यहां बोली जाने वाली हिंदी शुद्ध हिंदी ना होकर अरुणाचली हिंदी है जिसमें लिंगबोध को बहुत महत्व प्राप्त नहीं है। उन्होंने बताया कि सन् 62 के युद्ध के बाद भारतीय सैनिकों के प्रवास से हिंदी को विकसित होने का अच्छा अवसर मिला, यही कारण है कि अलग-अलग कबीलों में बसे आदिवासी इलाकों में भी बोलचाल की भाषा में हिंदी का प्रयोग होता है। नावम ने सवाल किया कि सरकार के लोग अरुणाचल में हिंदी की स्थिति के बारे में जरूर पूछते हैं लेकिन हिंदी लेखन और हिंदी के लेखकों की स्थिति के बारे में उनकी कोई उत्सुकता नहीं होती। उन्होंने कहा कि जब तक अरुणाचल के लोगों की लिखी हुई किताबें देश के अन्य हिस्सों में नहीं पढ़ी जाएगी या देश के अन्य हिस्सों की किताबें यहां नहीं पढ़ी जाएगी तो भाषा का विकास कैसे होगा?
ललमुआन ओमा साइलो ने बताया…
मिजोरम हिंदी ट्रेंनिंग कॉलेज के अध्यापक ललमुआन ओमा साइलो ने बताया कि सन 1889 के पहले मिजोरम में पढ़ाई का प्रचलन नहीं था सन 1894 में मिशनरी के लोग आए और उन्हीं के प्रयास से सन 1897 में पहला सरकारी स्कूल खुला। 1954 में मिजोरम हिंदी प्रचार सभा की स्थापना हुई और धीरे-धीरे हिंदी लोगों के बीच पहुंचने लगी। अभी स्कूलों में हिंदी गंभीरता से नहीं पढ़ाई जाती है लेकिन सरकार के हालिया निर्णय के बाद हिंदी के बढ़ने के आसार हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी को अगर रोजगार की भाषा बनाई जाए तो यहां के लोगों का आकर्षण बढ़ेगा।
ई विजयलक्ष्मी ने कहा…
मणिपुर विश्वविद्यालय में हिंदी की सहायक प्राध्यापक ई विजयलक्ष्मी ने कहा कि मणिपुर के हिंदी साहित्यकारों ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। मणिपुर के लोगों ने हिंदी को रचना का माध्यम बनाया है। यहां से कई एक हिंदी के पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, हालांकि करोना के कारण इनकी रफ्तार कुछ कम हुई है लेकिन पूर्वोत्तर में हिंदी पत्रिकाओं के आंदोलन पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। प्राथमिक स्तर पर हिंदी कमजोर है लेकिन उच्च शिक्षा में हिंदी की स्थिति यहां प्रशंसनीय है। यहां शोध कार्य के साथ-साथ अनुवाद को भी ऐच्छिक पाठ्यक्रम के तौर पर शामिल किया गया है।
धन्यवाद ज्ञापन
आभासी मंच पर लगभग सवा दो घंटे चले इस कार्यक्रम का संचालन त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के अध्यक्ष विनोद कुमार मिश्र ने किया जबकि कार्यक्रम में शामिल प्रतिभागियों का स्वागत परिचय केंद्रीय हिंदी संस्थान शिलांग केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक कृष्ण कुमार पांडे ने किया। अंत में डॉक्टर जय शंकर यादव ने धन्यवाद ज्ञापन किया।