हैदराबाद/नई दिल्ली: केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के संयुक्त तत्वावधान में प्रत्यक्ष तथा आभासी मंच के द्वारा पुस्तक विमोचन का कार्य संपन्न किया गया। बालेश्वर जी भारतीय संस्कृति और भाषाओं के उत्थान के लिए आजीवन काम करते रहते हैं। यही नहीं उन्होंने गिरमिटिया मजदूरों की चिंता करते हुए उनके उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किया है। यह विचार केंद्रीय हिंदी संस्थान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समारोह में विदेश राज्य एवं संस्कृति मंत्री मीनाक्षी लेखी ने व्यक्त किए।
इस अवसर पर बालेश्वर अग्रवाल की स्मृति में संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका प्रवासी जगत के ‘बालेश्वर अग्रवाल विशेषांक’ एवं प्रवासी लेखकों की पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार और केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने कहा कि हिंदी शिक्षण के प्रचार-प्रसार के लिए प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी मोटूरी सत्यनारायण ने केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना की थी। लेकिन अब यह संस्था विदेशों में भी हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास कर रही है। विदेशों में हिंदी प्रकाशन की सुविधा आसान नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए गत वर्ष पुस्तक प्रकाशन सहयोग योजना का प्रारंभ की। आज का यह समारोह उसी का परिणाम है।
इस योजना के तहत प्रकाशित पुस्तकों में सत्येंद्र श्रीवास्तव की समग्र कविताएं- संपादक : पद्मेश गुप्त (लंदन यूके ), कोरोना चिल्ला (कहानी संग्रह) – कहानीकार : दिव्या माथुर (लंदन यूके), सपनों का आकाश (कैनेडा पद्य संकलन)– संपादक : डॉ शैलजा सक्सेना, सुमन कुमार घई (कैनेडा), संभावनाओं की धरती (कैनेडा गद्य संकलन)- संपादक : डॉ शैलजा सक्सेना, सुमन कुमार घई (कैनेडा), न्यूजीलैंड की हिंदी यात्रा लेखक : रोहित कुमार ‘हैप्पी’ (न्यूजीलैंड), प्रशांत की लोक कथाएं- लेखक : रोहित कुमार ‘हैप्पी’ (न्यूजीलैंड) और यथार्थ की परछाईं (कहानी संग्रह)- कहानीकार : वीणा सिन्हा (नेपाल) हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व राजदूत वीरेंद्र गुप्ता ने कहा कि भारतीय डायसपोरा के लिए बालेश्वर जी ने अद्भुत कार्य किया है। उन्होंने बालेश्वर जी को याद करते हुए कहा कि बालेश्वर जी कहा करते थे कि अगर भारत को जिंदा रखना है तो भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं को जिंदा रखना होगा। यही वजह है कि वह अपने हर काम में हिंदी और भारतीय संस्कृति को बड़ा महत्व देते थे।
इस अवसर पर पूर्व वरिष्ठ राजनयिक, परिषद के निदेशक और भाषा कर्मी नारायण कुमार जी ने बालेश्वर जी को भारतीय संस्कृति और भाषा के प्रति पुरुष के रूप में याद करते हुए प्रवासी भारतीयों के लिए किए गए उनके कार्य को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि बालेश्वर जी ने भारत को ही नहीं बल्कि भारतवंशियों को भी अपना कार्यक्षेत्र बनाया। यह उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए परिषद के महासचिव श्याम परांडे ने कहा कि बालेश्वर जी ने दो बड़े महत्वपूर्ण कार्य किए। एक डायसपोरा और दूसरा भाषाओं को लेकर। उन्होंने कहा कि केंद्रीय हिंदी संस्थान विदेशों में हिंदी को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। उसी का परिणाम है लोकर्पित होने वाली सातों पुस्तकें। इनके लेखक प्रवासी भारतीय हैं, जो विदेश में रहते हुए हिंदी की अलख जगाए हुए हैं।
इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के अध्यक्ष और पूर्व राजदूत वीरेन्द्र गुप्ता, परिषद् के महासचिव श्याम परांडे, वरिष्ठ राजनयिक और भाषाविद नारायण कुमार, गोपाल अरोड़ा, केंद्रीय हिंदी संस्थान संस्थान की निदेशक प्रो बीना शर्मा सहित देश-विदेश के गणमान्य लोग उपस्थित थे। इस अवसर पर देश-विदेश से हिंदी प्रेमी, विद्वान, साहित्यकार आभासी ज़ूम प्लेटफार्म से जुड़े रहे। उन्होंने भी अपने अनुभव साझा किए।