कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी में साहित्यकार लाड़ली मोहन धानुका को दी गई श्रद्धांजलि, इसके बाद क्या हुआ पढ़ेंगे तो ही जानोंगे

हैदराबाद : कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार को गूगल मीट के माध्यम से क्लब की 384वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन प्रो ऋषभदेव शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने बताया कि शुभ्रा मोहंतो द्वारा सरस्वती वंदना से प्रथम सत्र का आरंभ हुआ। तत्पश्चात् क्लब के नियमित सदस्य साहित्यकार लाड़ली मोहन धानुका के आकस्मिक निधन पर क्लब की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि 2 मिनट का मौन रखकर दी गई।

डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने पटल पर उपस्थित महानुभावों का शब्दकुसुमों से स्वागत करते हुए कहा कि यह 31वें वर्ष की प्रथम गोष्ठी है। क्लब निरंतरता को क़ायम रखते हुए आप सभी सुधी जनों का साथ पाकर अपनी साहित्यिक यात्रा में आगे बढ़ रहा है। उन्होंने पटल को अवगत कराते हुए कहा कि आज हमारे बीच वैज्ञानिक व्यक्तित्व प्रबुद्ध साहित्यकार डॉ हरजिंदर सिंह लाल्टू उपस्थित हैं और वे अपनी चुनिंदा रचनाओं का पाठ करेंगे। संगोष्ठी सत्र संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा (नई दिल्ली) ने लाल्टू जी का संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि आप प्रसिद्ध वैज्ञानिक के साथ-साथ हिंदी साहित्य जगत में अपने विशिष्ठ लेखन के लिए जाने जाते हैं। हिंदी, अंग्रेज़ी, पंजाबी, जर्मन आदि भाषाओं के भी आप जानकार हैं। आप भौतिक जगत के यथार्थ को ढूंढने में रुचि रखते हैं।

वैज्ञानिक साहित्यकार कवि हरजिंदर सिंह लाल्टू ने अपनी चुनी हुई लगभग दस कविताओं का पाठ किया। “सबने जो कहा गुलाब ख़ूबसूरत,” “बहुत बड़ा सा है,” “कविता को समय नहीं मिलता,” “प्यार चाहिए एक अपना संस्कार चाहिए,” “छोटे शहर की लड़कियाँ” आदि रचनाओं को सुनाते हुए श्रोताओं का मन मोह लिया। उन्होंने अवधेश कुमार सिन्हा के प्रश्न “समय बदलता है तो साहित्य में परिवर्तन आता है ऐसे में कवि अभिव्यक्ति का सरल मार्ग कैसे चुनें” का जवाब देते हुए कहा कि पहले कला साहित्य की धाराएँ थीं, सौंदर्य के पैमाने थे। कवि को कला का व्याकरण समझना होगा। कविता सिर्फ़ मनोरंजन की चीज़ नहीं है। कविता की बनावट में परिवर्तन आ रहा है। इसे साहित्य में जोड़ने की कोशिश होनी चाहिये।

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डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति और उसका साधारणीकरण रसाभिव्यक्ति का मूल स्वरूप है और आज की कविता में इसका सर्वथा अभाव हो रहा है। डॉक्टर मदन देवी पोकरणा ने कहा कि निश्चित ही लाल्टू जी की रचनाएँ धीर गंभीर अर्थ का वहन करती हैं। प्रो ऋषभदेव शर्मा ने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि अंधेरे को काटने के लिए प्रकाश के जिस किरण की ज़रूरत है वह ख़तरे में है। लाल्टू जी की कविताओं में विशेषण बड़े आकर्षक हैं साथ ही मनुष्यता और संवेदना को बचाने का प्रयास नज़र आता है। वे वैज्ञानिक होते हुए कविता के माध्यम से मनुष्य की जड़ताओं और अंधकार को काटने का काम कर रहे हैं। मीना मुथा ने प्रथम सत्र का आभार व्यक्त किया।

दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी की अध्यक्षता अवधेश कुमार सिन्हा और डॉ अहिल्या मिश्र ने संयुक्त रूप से किया। विनीता शर्मा, तृप्ति मिश्रा, मीरा ठाकुर, चंद्रलेखा कोठारी, किरण सिंह, शिल्पी भटनागर, डॉ रमा द्विवेदी, वर्षा शर्मा, उषा शर्मा, अंशु श्री सक्सेना, चंद्रप्रकाश दाएमा, स्वाति गुप्ता, डॉ सुरभि दत्त, प्रियंका पाण्डे, सीताराम माने, दर्शन सिंह, रेखा अग्रवाल, शोभा देशपांडे, अवधेश कुमार सिन्हा और मीना मुथा ने काव्य पाठ किया। अवसर पर डॉक्टर आशा मिश्रा, डॉ राशि सिंहा, उमा देवी सोनी, सरिता दीक्षित, दीपक दीक्षित, अनीता मिश्रा, मोहिनी गुप्ता, सरिता सुराणा, भावना पुरोहित, सुखमोहन अग्रवाल, मधु दायमा, डॉ मदन देवी पोकरणा, जी परमेश्वर, अजय कुमार पाण्डेय, मधु भटनागर, विनोद गिरि अनोखा, शशि राय, सुपर्णा मुखर्जी, सत्यनारायण काकड़ा, प्रवीण प्रणव आदि की उपस्थिति रही।

डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया और टिप्पणी में कहा कि आज की रसमय गोष्ठी का आनंद आ गया। कवि शब्द से संसार पुलकित करता है। इसी तरह साहित्य सृजन को बनाए रखें। डॉ रमा द्विवेदी ने सत्र का आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी सत्र संयोजक प्रवीण प्रणव तकनीकी सहयोग में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सत्र का संचालन मीना मुथा ने किया।

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