हैदराबाद : कादंबिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार को क्लब की ३८१ वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन आभासी तकनीक के माध्यम से संपन्न हुआ। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्रा क्लब अध्यक्ष ने आगे बताया कि इस अवसर पर प्रथम सत्र की अध्यक्षता कहानीकार मधू भटनागर ने की। डॉ आशा मिश्रा ने संस्था के संबंध में बताते हुए कार्यक्रम की रूप रेखा से पटल को अवगत कराया और कहा कि चर्चा का विषय “दृश्य काव्य के भेद” है जिसपर विषय विशेषज्ञ के रूप में मानू हिन्दी विभाग के प्रो करण सिंह उथवाल चर्चा करेंगे।
शिल्पी भटनागर के सचल संचालन में सत्र का शुभारंभ डॉ रमा द्विवेदी द्वारा निराला रचित सरस्वती वंदना से हुआ। डॉ अहिल्या मिश्र ने शब्द कुसुमों से सबका स्वागत करते हुए कहा कि संस्था ने आप सबके सहयोग से ३० वर्ष पूरा कर लिया है और सबका साथ इसी तरह बना रहा तो हमारे लिए ६० और १०० वर्ष पूरा करना भी असंभव नहीं होगा। उन्होंने संक्षिप्त में प्रो करण सिंह उथवाल का परिचय दिया और कहा कि ये एक सुदृढ़ लेखक हैं और मानू के हिन्दी विभाग को समृद्ध करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। संगोष्ठी सत्र संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली) विषय प्रवेश के अंतर्गत दृश्य काव्य के रूपों का संक्षिप्त परिचय दिया और कहा कि करण सिंह उथवाल जी से हम विषय के संबंध में अधिक जानकारी लेंगे।
मुख्य वक्ता ने “दृश्य काव्य के भेद” विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आधुनिक काल से पहले साहित्य काव्य रूप में ही था। नाटक या एकाँकी विदेश से नहीं आई है। संस्कृत के नाटकों में सबकुछ मिल जाता है और शेक्सपीयर को हम अंग्रेज़ी के कालिदास कह सकते हैं। उन्होंने पौराणिक नाटकों से लेकर आधुनिक नाटकों का महत्व बताया और रूपक तथा उपरूपक दृश्य काव्य के रूपों को विस्तार से समझाते हुए चंपू, मुक्तक काव्य से लेकर अविप्लव, भाँड़, व्यायोग, मोनोलॉग, प्रस्थानक आदि नाटक के रूपों के बारे में बताया और संस्कृत नाट्य साहित्य की अद्भुत बृहदता से परिचय कराया।
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तत्पश्चात अवधेश कुमार सिन्हा ने प्रश्नोत्तर के माध्यम से विषय संबंधित संदेहों का निवारण किया। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि भरतमुनि ने सूत्रधार की रचना की जिसके माध्यम से आज भी नाटक का परिचय दिया जाता है। डॉ राशी सिन्हा ने नाटक के ऐब्स्ट्रैक्ट भाव के संबंध में बताते हुए पारसी नाटकों का उदाहरण प्रस्तुत किया। इस परिचर्चा में मीरा ठाकुर, वर्षा शर्मा, जी परमेश्वर आदि ने भी भाग लिया।
मधू भटनागर ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि आज दृश्य काव्य के रूप नाटक के विषय में चर्चा सार्थक और ज्ञानवर्धक रहा है। करण सिंह जी ने नाटक की बारीकियों से परिचय कराया है और भारतीय नाटक के समृद्ध इतिहास से हमें अवगत कराया। अवधेश कुमार सिन्हा परिचर्चा को सार्थक बताते हुए मुख्य वक्ता के प्रति आभार व्यक्त किया और सत्र समाप्ति की घोषणा की।
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दूसरा सत्र कवि गोष्ठी का रहा। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ शिवशंकर अवस्थी (महासचिव, ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया) ने पटल पर अपनी उपस्थिति प्रदान की। डॉ अहिल्या मिश्र ने कवि गोष्ठी सत्र की अध्यक्षता की। इसमें प्रो करण सिंह उथवाल, भावना पुरोहित, डॉ इन्दु सिंह, डॉ संगीता शर्मा, शशि राय, डॉ स्वाति गुप्ता, आर्या झा, डॉ रमा द्विवेदी, भगवती अग्रवाल, डॉ आशा मिश्रा, दर्शन सिंह, डॉ रचना चतुर्वेदी, शिल्पी भटनागर, मधू भटनागर, चंद्र प्रकाश दायमा, वर्षा शर्मा, अंशु श्री सक्सेना, रेखा अग्रवाल और सरिता दीक्षित ने काव्य पाठ किया।
मुख्य अतिथि ने ३० वर्ष से अनवरत चलने वाली संस्था कादंबिनी क्लब के लिए सभी को बधाई और शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि जहां डॉ अहिल्या मिश्र जैसी बुलंद, मेहनती, साहित्य सेवी संस्थापक अध्यक्ष हों और उनका साथ निभाने के लिए ऊर्जावान कार्यकर्ता हो वह संस्था कभी रुक नहीं सकती। उन्होंने काव्य पाठ भी किया। अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि सभी ने सुंदर एवं विभिन्न रसों से पूर्ण रचनायें प्रस्तुत कीं। आप सब सृजन की पीड़ा में लवरेज होकर इसी तरह से सृजन करते रहें। उन्होंने सभी रचनाकारों को साधुवाद दिया और मुख्य अतिथि को गोष्ठी में शामिल होने के लिए धन्यवाद देते हुए अध्यक्षीय काव्य पाठ किया।
अवसर पर सना रुखसाना, तृप्ति मिश्रा, फ़ाहिमा फरहीन, सुपर्णा मुखर्जी, निशी कुमारी, उमेश चंद्र, ममता जैसवाल की उपस्थिति रही। जैन समाज का सबसे महत्वपूर्ण सम्मान “जैन रत्न” प्राप्त करने हेतु मीना मुथा (कादंबिनी क्लब की कार्यकारी संयोजक) जो पुरस्कार ग्रहण करने वाली पहली महिला बनीं उन्हें क्लब की ओर से विशेष बधाई दी गई। आर्या झा ने सभी को धन्यवाद दिया। तकनीकी सहयोग के लिए डॉ आशा मिश्रा और प्रवीण प्रणव के प्रति आभार व्यक्त किया गया।