हैदराबाद : कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार को प्रो शुभदा बांजपे की अध्यक्षता में मदनबाई कीमती सभागार (रामकोट) में कादम्बिनी क्लब की 366वीं मासिक गोष्ठी एवं कवयित्री शिल्पी भटनागर की काव्य संग्रह ‘गुलमोहर तुमने दामन क्यूँ बिखेरे’ का लोकार्पण संपन्न हुआ।
प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्ष) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने आगे बताया कि इस अवसर पर प्रथम सत्र में डॉ अहिल्या मिश्र, प्रो शुभदा बांजपे, प्रो ऋषभ देव शर्मा, डॉ गंगाधार वानोडे, डॉ आर कृष्णमूर्ति, बी के कर्णा, प्रो. संगीता व्यास एवं शिल्पी भटनागर मंचासीन हुए। तत्पश्चात् मंचासीन अतिथि गण, भटनागर परिवार जन एवं क्लब सदस्यों के कर कमलों से मां शारदे के छवि के सम्मुख विधिवत दीप प्रज्वलित किया गया। शुभ्रा महंतों द्वारा निराला रचित सरस्वती वंदना की सुमधुर प्रस्तुति दी गई।
डॉ अहिल्या मिश्र ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि लगभग 3 वर्ष बाद हम सभी रूबरू मुलाकात कर रहे हैं। अब तक लॉकडाउन के समय से हम निरंतर आभासी तकनीक के माध्यम से प्रति माह के तृतीय रविवार को अवश्य जुड़े रहें हैं। सभी का साथ इस दौरान बना रहा। माननीय मंचासीन सभी अतिथि मेरे निकट हैं और हिंदी साहित्य सेवा के प्रति समर्पित हैं। आज मकर संक्रांति का शुभ दिन, नूतन वर्षारंभ और दीर्घ समय के बाद फिजिकल मासिक गोष्ठी में शिल्पी भटनागर के काव्य संग्रह का लोकार्पण एक उत्सव की तरह लग रहा है। डॉ मिश्र ने सभी अतिथियों का संक्षिप्त में परिचय दिया तथा शिल्पी भटनागर को शुभ आशीष दिया।
तत्पश्चात् मंचासीन अतिथियों का शॉल माला से क्लब के सदस्यों द्वारा सम्मान किया गया। डॉ संगीता व्यास ने “गुलमोहर तुमने दामन क्यूँ बिखेरे” काव्य संग्रह का परिचय देते हुए कहा कि कवयित्री ने अपने भावों को अभिव्यक्त किया है। बिटिया जब विवाह के बाद एक नई दुनिया में प्रवेश करती है तब वह उस दुनिया को अपना मान लेती है फिर भी जीवन के साथ चलते चलते अपने बाल्य काल को बार-बार याद ही करती है। अपने अनुभवों को शब्द शिल्प के माध्यम से शिल्पी ने जोड़ा है। बचपन की यादें, घर का दरवाजा, मां के आंसू, अपना परिवार सब छोड़ जीवन के दूसरे पड़ाव के साथ जुड़ना इन सभी का सुंदर चित्रण कवयित्री ने किया है। बड़ी ही सजगता से विचारों को कल्पित किया है। कवयित्री को इस प्रथम पुस्तक के लोकार्पण पर साधुवाद। इसके पश्चात मंचासीन अतिथियों के कर कमलों से “गुलमोहर तुमने दामन क्यों बिखेरे” का करतल ध्वनि के साथ लोकार्पण हुआ। भटनागर परिवार को भी सादर आमंत्रित किया गया मंच पर।
अवसर पर प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि गुलमोहर की छटा दुनिया का प्रतीक है। जीवन, जगत, साहित्य, सारी दुनिया एक सी होती तो यह दुनिया रंगीन नहीं होती। हर रचनाकार अपने आप से पूछता है ‘मैं क्यों रचता हूँ?’ कवि का चित्त एक रचनाकार का चित्त होता है। संवेदनशीलता की आग अनुभवों को पकाती है। अपना निजी संसार होना आवश्यक है। हम यादों की पोटली को साथ लिये चलते हैं। यह पोटली बोझ न बने इसलिए कहीं न कहीं अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। यह रचनाकार के आत्ममंथन को प्रकट करती है। कविता तब बनती है जब आप दो अनुभवों को जोड़ते हैं। शिल्पी संभावना शील कवयित्री हैं। गीता प्रकाशन एवं डॉ अहिल्या मिश्र की प्रेरणा ने शिल्पी को प्रेरित किया।
डॉ वानोडे ने कहा कि इस संग्रह की रचनाएं प्रेरक और महत्वपूर्ण हैं। अनुभव से ही प्रेरणा मिलती है। इसके लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है। क्षणिकाएँ भी बहुत अच्छी बन पड़ी हैं। डॉक्टर कृष्णमूर्ति ने कहा कि कविता में सृजनशीलता और आत्मा का मिलन आवश्यक है। वस्तु, शिल्प और अभिव्यक्ति का सुंदर मिलाप इस संग्रह में नजर आता है। बी के कर्णा ने कहा कि जीवन में लक्ष्य रखकर कलम चलती रहनी चाहिए। पुस्तक में भाव की कमी नहीं है। शिल्पी भटनागर को हमारा आशीष है। तत्पश्चात शिल्पी भटनागर को क्लब की ओर से सम्मानित किया गया। अवसर पर उपस्थित विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं ने भी उनका अभिनंदन किया। साहित्यकार शांति अग्रवाल ने काव्यात्मक आशीष प्रदान किए।
रचयिता शिल्पी ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि धन्यवाद मैं किसको कहूं। यह शब्द अभी बहुत छोटा पड़ जाएगा। माता-पिता, पति सौरभ भटनागर, सासू मां और समस्त परिवार का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं। क्लब का साथ परिवार का साथ सभी मेरे प्रेरणास्तंभ रहे। मंचासीन महानुभावों ने उत्कृष्ट मार्गदर्शन दिया। सभागार में उपस्थित साहित्य प्रेमियों ने उत्साह बढ़ाया सभी का धन्यवाद। अवसर पर भटनागर परिवार की ओर से मंचासीन अतिथियों को भेंटवस्तु प्रदान की गई।
अध्यक्षीय बात रखते हुए प्रो शुभदा बाँजपे ने कहा कि प्रथम कृति रचनाकार की प्रथम संतान होती है। कवि के हृदय से अनायास प्रस्फुटित होने वाली यह यात्रा है। जब हम जमीन में बीज बोते हैं तब उसे अंकुरित होना ही होता है। छायावादी कवियों के सदृश्य इसमें प्रकृति का मानवीकरण नजर आता है। कवयित्री पर उर्दू का प्रभाव नजर आता है। कविताएं मुक्त छंदात्मक है। भाषा में सरलता सहजता हृदय को छू लेती है। शिल्पी का यह प्रथम संग्रह सफलता के द्वार खोल रहा है। बहुत-बहुत बधाई।
डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ ने प्रथम सत्र के धन्यवाद में कहा कि आज का कार्यक्रम आभार के शब्दों से बहुत परे है। मंचासीन अतिथियों और उपस्थित रचनाकारों ने दीर्घकाल के बाद हुई इस गोष्ठी में अपना अमूल्य समय दिया है और कवयित्री का उत्साह बढ़ाया है। सभी महानुभावों ने बहुमूल्य प्रतिक्रियाऐं दी हैं। पुस्तक समीक्षा उत्साहवर्धक रही। अध्यक्षीय टिप्पणी में संपूर्ण सत्र का एक निचोड़ और ब्योरा आ गया। शिल्पी की यह संग्रह उनकी यादों का दरख़्त है जो स्व से पर की यात्रा करने में सक्षम है।
मध्याह्न भोजन के उपरांत दूसरे सत्र में प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा की अध्यक्षता में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वेणुगोपाल भट्टर व साहित्यकार अजीत गुप्ता के आतिथ्य में कवि गोष्ठी संपन्न हुई। इसमें सुहास भटनागर, उमा सोनी, भगवती अग्रवाल, चंद्रप्रकाश दायमा, रवि वैद, अद्रिका कुमार, डॉ राशि सिन्हा, मोहिनी गुप्ता, देवा प्रसाद मायला, नितेश सागर, डॉ राजीव सिंह, विनोद गिरि अनोखा, ज्योति नारायण, शिल्पी भटनागर, डॉक्टर आशा मिश्रा, सीताराम माने, संतोष रजा, दर्शन सिंह, प्रदीप देवी शरण भट्ट, सुनीता लुल्ला, रेखा शर्मा, प्रवीण प्रणव, मीना मुथा ने कविता, मुक्तक, गीत, ग़ज़ल, हायकू आदि विधाएं प्रस्तुत की। मंच की ओर से अजीत गुप्ता ने अपने पिताश्री के स्मृति दिवस पर उनकी रचना का पाठ किया जिसे सभी ने बहुत सराहा। वेणुगोपाल भट्टड ने गुदगुदाने वाले और सोचने पर विवश करने वाले हाइकू सुनाए। जिसे तालियों की गूंज से सराहा गया।
प्रो ऋषभदेव शर्मा ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया और शमा बांधा। टिप्पणी में उन्होंने कहा कि सभी ने बेहद सशक्त रचनाएं दी हैं और काव्य सत्र को सफल बनाया है। अवसर पर सूरज प्रसाद सोनी, सुख मोहन सरोज अग्रवाल, पुरुषोत्तम कड़ेल, डॉ संगीता शर्मा, शोभा देशपांडे, वंदना सिंह, सचिन कुमार, पूर्णिमा शर्मा, डॉक्टर सौरभ भटनागर, सुमन, किरण सिंह, डॉ के संगीता, सुरेश, नितिन टंडन, श्रुतिकांत भारती, शांति अग्रवाल, मधु दायमा, जी परमेश्वर, मयूर पुरोहित, संध्या चिरमानी, यूवी और युवान आदि की उपस्थिति रही। प्रवीण प्रणव के धन्यवाद के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम प्रायोजक भटनागर परिवार का आभार व्यक्त किया गया। स्वर कोकिला शुभ्रा महंतो का भी इस अवसर पर क्लब की ओर से सम्मान किया गया। मीना मुथा ने सुंदर संचालन कर कार्यक्रम को एक सूत्र में बांधकर सुचारू रूप प्रदान किया। ज्योति नारायण एवं डॉ आशा मिश्रा ने व्यवस्थाओं में सहयोग दिया।