कादंबिनी क्लब हैदराबाद: 350वीं मासिक गोष्ठी में ‘दरकती दीवारों से झांकती जिंदगी’ पर मार्मिक चर्चा

हैदराबाद : कादंबिनी क्लब हैदराबाद की 350वीं मासिक गोष्ठी का वर्चुअल आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा ने की। प्रेस विज्ञप्ति में डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने संयुक्त रूप से आगे बताया कि शुभ्रा महंतो द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आगाज हुआ। डॉ अहिल्या मिश्र ने शब्द कुसुम से उपस्थित सदस्यों का स्वागत करते हुए कहा कि आज का दिन ख़ास इसलिए है कि 350वीं गोष्टी की मंजिल पर हम अपनी निरंतरता की वजह से पहुंच पाये हैं। इस कारण यह संभव हो पाया है कि आप सभी नियमित रूप से उपस्थित रहते हैं। यह साहित्यिक यात्रा इसी तरह आगे चलती रहेगी यह विश्वास भी है।

‘दरकती दीवारों से झांकती जिंदगी’

प्रथम सत्र में डॉ अहिल्या मिश्र की नवीनतम कृति ‘दरकती दीवारों से झांकती जिंदगी’ आत्मकथात्मक उपन्यास पर अवधेश कुमार सिन्हा (नई दिल्ली) ने अपने समीक्षात्मक विचार रखें। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि मैं स्थिति का मूल्यांकन तो नहीं करूंगा इसे रेखांकित करूंगा। इसमें अपने जीवन के कई परतों को अहिल्या जी ने टटोला है। 16 सितंबर को 74वें वर्षगाँठ के अवसर पर अपने परिवार के बीच उन्होंने यह कृति प्रकाशित की है। औपन्यासिक धरातल की नायिका स्वयं लेखिका है। बचपन, किशोरावस्था, अधेरावस्था, सम-विषम परिस्थितियों को लेखिका ने बड़े धैर्य के साथ लिखा है। उनका जीवन और जीवन संघर्ष इसमें मौजूद है।

आत्मविश्वास से कदम बढ़ाया

322 पृष्ठों का यह किताब जमींदार परिवार के कानून, बंधन, रूढ़िवादिता, जातिभेद के प्रति दृष्टिकोण, सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों तथा समय के विभिन्न अंतराल में जूझती एवं संघर्ष करती अहिल्या हमें नजर आती है। स्त्री शिक्षा के प्रति विरोध एवं नौकरी करने पर प्रताड़ित होने जैसा अनुभव रोंगटे खड़े कर देते हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारना और आंसू बहाने की ये सदा ही विरोधी रही हैं। सारे झंझावतों को सहते हुए ये आगे बढी हैं। आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ पतिदेव की बीमारी और स्वयं के कैंसर की बीमारी ने उन्हें और मजबूत बनाया। ममता, आरती, अजित आदि नामों से जानी जाने वाली डॉ अहिल्या मिश्र ने अपने सुख-दुख, तकलीफ़ें, नारी को आगे बढ़ने में आती दिक्कतें, शिक्षा के प्रति समर्पण, लेखन कार्य आदि सभी क्षेत्रों में घर परिवार को अहमियत देते हुए आत्मविश्वास से कदम बढ़ाया है।

स्त्री विमर्श की सीमाओं को दूर कर यह रचना बाहर आती

प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि इस कृति की प्रथम चर्चा में श्रोता और साक्षी बनने का अवसर मिला। मूलतः यह कृति आत्मकथा ही है। आजकल सेलिब्रिटी स्टडीज अर्थात विभूति अध्ययन पर जोर दिया जा रहा है। जो लोग शिखर पर हैं वह किन रास्तों से इस मंजिल तक पहुंचे हैं यह औरों तक पहूंचना चाहिए। विभूति विमर्श की यह महत्वपूर्ण रचना मानी जाएगी। स्त्री विमर्श की सीमाओं को दूर कर यह रचना बाहर आती है। जीवन के जिन मुद्दों को इसमें उन्होंने उठाया है वह अधिक व्यापक है। अपने आसपास के परिवेश में एक महिला अपना व्यक्तित्व कैसे निखारती है इस पुस्तक में इसका दर्शन होता है। रचनाकार ने आत्मलोचना किया है। अपने चारों ओर के परिवेश के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करना, सामाजिक सांस्कृतिक माइंड सेट करना, वर्ग-भेद स्त्री पुरुष भेद में विश्वास न करना यह उनकी विशेषताएं हैं। निश्चित ही यह कृति शिखर पर पहुंचेगी।

मैं कुछ नहीं बोलूंगी

अहिल्या मिश्र ने कहा कि मैं कुछ नहीं बोलूंगी केवल श्रवण करूंगी। जी परमेश्वर ने कहा कि ऐसे रचनाकारों का एक मिलाजुला संकलन निकालना चाहिए ताकि उनको पढ़कर जीवन से लड़ने की और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल सके। सुरभि दत्त ने कहा कि विस्तृत व्यक्तित्व से परिचय हुआ है। अहिल्या जी ने आंसुओं को अपना साथी बनाया। तत्पश्चात् कादम्बिनी क्लब की नियमित सदस्य भावना मयूर पुरोहित की साझा संकलन ‘साहित्य स्पंदन’ और ‘साहित्य सुरभि’ (दक्षिण समाचार प्रतीक्षा साँझा संकलन 4, सम्पादक नीरज कुमार सिन्हा) का अहिल्या मिश्र के कर कमलों से लोकार्पण हुआ।

लेखन ने और गति पकड़ी

मीना मुथा ने लेखिका का संक्षिप्त में परिचय देते हुए कहा कि गुजराती मातृभाषा होते हुए भी आप हिंदी की सेवा में नित्य नये उन्मान के साथ आगे बढ़ रही हैं। विशेष रूप से शिक्षिका के नाते आपने ‘ज्ञानदीप’ गुजराती और हिंदी में प्रकाशित की थी। लॉकडाउन के दौरान भावना जी के लेखन ने और गति पकड़ी। विशेष रूप से हास्य-व्यंग उनकी विधा रही है। दोनों संकलन में कुल मिलाकर 58 रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। त्योहार, निसर्ग, पतंग और पतंगा, गाय और गौरी आदि रचनाएं आकर्षक और पठनीय है। सभी ने भावना पुरोहित को बधाई दी।

लेखिका को साधुवाद

लोकार्पण के बाद डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि 2020 में लोकार्पण होना था इस संकलन का। परंतु भावना जी ने सब्र रखते हुए क्लब के सुविधानुसार आज लोकार्पण कीं। यह खुशी की बात है। सुपुत्री कल्याणी ध्रुव त्रिवेदी (स्पेन निवासी) की 6 रचनाएं इस संकलन में शामिल है। उनको बधाई। क्लब सदस्य सुरभि दत्त, संतोष रजा गाजीपुरी, दर्शन सिंह, उमेश श्रीवास्तव, सुपर्णा मुखर्जी इनको भी बहुत-बहुत बधाइयां। भावना पुरोहित ने कहा कि मैं क्लब की अत्यंत ऋणी हूं। इसी मंच से मैंने हिंदी लेखन का प्रयास शुरू किया और डॉक्टर अहिल्या मैडम के मार्गदर्शन में मैं स्वयं को तराशती गई और पठन-पाठन की गतिविधि को बढ़ाती गई। मेरे विषय आसपास के अवलोकन से प्रभावित है। आज मैं यहाँ उपस्थित सभी को हृदय से आभारी हूं। प्रो ऋषभदेव शर्मा और अवधेश कुमार सिन्हा ने भी लेखिका को साधुवाद दिया। नीरज कुमार के साझा संकलन के प्रयास को सराहा गया ।

कवि गोष्ठी में अमृत महोत्सव धूम

तत्पश्चात कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ। स्वतंत्रता अमृत महोत्सव, हिंदी दिवस व अन्य विषयों पर रचनाकारों ने कविता, गीत, गजल, मुक्तक, हायकू, तेवरी, श्रृंगार गीत, भोजपुरी गीत, आदि की सुंदर प्रस्तुती दी। विनीता शर्मा, शशि राय, जी परमेश्वर, सुपर्णा मुखर्जी, उमेश श्रीवास्तव, तृप्ति मिश्रा, रघुबीर अग्रवाल, सुनीता लुल्ला, दर्शन सिंग, संपत देवी मुरारका, भावना पुरोहित, संतोष रजा गाजीपुरी, विनोद गिरि अनोखा, डॉक्टर आशा मिश्रा ‘मुक्ता’, मीना मुथा, ज्योति नारायण, अवधेश कुमार सिन्हा, सुरभि दत्त, डॉ अहिल्या मिश्र ने काव्य पाठ किया। अवधेश कुमार ने ‘मैं खंडहर नहीं हूं’ कविता पाठ से सभी को भावुक कर दिया वही प्रोफेशर शर्मा ने अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए ‘होठों पर अंगार भरोगे यह हमको मालूम न था, आंखों से जलधार झरोगे यह हमको मालूम न था’ की प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रो शर्मा ने कहा कि निश्चित ही आज की गोष्ठी सफल रही है।

कार्यक्रम का संचालन मीना मुथा एवं डॉ आशा मिश्रा

दोनों सत्र अपने आप में विशिष्ट रहा है। रचनाकारों के प्रस्तुति में विषय वैविध्य भी रहा है और प्रस्तुतीकरण सराहनीय है। बहुत-बहुत बधाई और अभिनंदन। गोष्ठी में जागृत जानी, बीना जानी, पार्थ जानी (मुंबई) की भी उपस्थिति रही। डॉ अहिल्या मिश्र को सभी ने एक स्वर में जन्मदिन की बधाई दी। कार्यक्रम का संचालन मीना मुथा एवं डॉ आशा मिश्रा ने संयुक्त रूप से किया। प्रवीण प्रणव ने भी कार्यक्रम के लिए शुभकामनाएं प्रेषित की। डॉ आशा मिश्रा ने उपस्थिति जनों के प्रति आभार व्यक्त किया तथा अवधेश कुमार एवं प्रो ऋषभदेव शर्मा के प्रति विशेष धन्यवाद ज्ञापित किया। अवधेश कुमार सिन्हा ने कार्यक्रम के समापन की घोषणा की।

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