कादंबिनी क्लब की 30 वीं वर्षगांठ गोष्ठी एवं सम्मान समारोह हर्षोल्लास और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सम्पन्न

हैदराबाद : कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तीन सौ तिरासवीं मासिक गोष्ठी रविवार को क़ीमती सभागार रामकोट में हर्षोल्लास और तालियों की गड़गडाहट के साथ संपन्न हुई। इस गोष्ठी की विशेषता यह रही है कि क्लब की साहित्यिक यात्रा की 30वें वर्ष के समापन और 31वें वर्ष में पदार्पण के रूप में आयोजित की गई।

प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए क्लब की अध्यक्ष डॉ अहिल्या मिश्र एवं ‘जैन रत्न’ मीना मुथा कार्यकारी संयोजिका ने संयुक्तरूप से आगे बताया कि इस अवसर पर डॉ अहिल्या मिश्र, प्रो शुभदा बांजपे (पूर्व विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, उस्मानिया वि वि), डॉ अनिल सुलभ. मुख्य अतिथि (अध्यक्ष, हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना बिहार), प्रो ऋषभदेव शर्मा, मुख्य वक्ता (परामर्शी (हिंदी) दूरस्थ शिक्षा निदेशालय, मानु), डॉ संगीता व्यास, वक्ता, असिस्टेंट प्रो. उ वि वि), मंचासीन हुए। अतिथियों के करकमलों से माँ सरस्वती की छवि के सम्मुख दीप प्रज्वलित किया गया। स्वर कोकिला शुभ्रा मोहंती ने सस्वर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने स्वागत भाषण देते हुए क्लब की परिकल्पना और स्थापना दिवस दो जून 1994 की यादों को साझा किया कि किस तरह से भीषण गर्मी में डॉ राजेन्द्र अवस्थी, योगेंद्र बाछोतिया, डॉ सरोजनी प्रीतम, प्रो इंदू वशिष्ठ एवं शहर के गणमान्य साहित्यकारों की उपस्थिति में कादंबिनी क्लब की हैदराबाद शाखा उद्घाटित हुई। तब से लेकर अब तक सभी को साथ लेते हुए आज तीन दशक क्लब ने पूर्ण कर लिया है। उन्होंने मंचासीन अतिथियों का परिचय देते हुए डॉ अनिल सुलभ के संबंध में बताया कि वे हिन्दी साहित्य के ऐसे योद्धा हैं जिन्होंने लगभग 5000 नई पीढ़ी के साहित्यकारों का निर्माण किया है।

मंचासीन अतिथियों का शॉल माला से सम्मान करने के उपरांत प्रवीण प्रणव ने कादंबिनी क्लब के 30 वर्षों की यात्रा का परिचय देते हुए कहा कि 1994 में एजीआई का बाईसवाँ अधिवेशन हुआ और कई शहरों में क्लब की शाखाएं खोली गयी जिसमें हैदराबाद भी एक था। क्लब की संस्थापक अध्यक्ष डॉ अहिल्या मिश्र ने महिलाओं को गोष्ठियों में उपस्थिति आसान हो इसलिए दिन के समय में ही संगोष्ठियों व काव्य गोष्ठी का नियम बनाया। गोष्ठियों की निरंतरता, साहित्यिक कृतियों का लोकार्पण, सोशल मीडिया, राष्ट्रीय स्तर उपस्थिति, रजत जयंती समारोह, ऑनलाइन देश विदेश के साहित्यकारों से भेंट आदि उपलब्धियां एवं क्लब के कार्यों को उन्होंने सभा के सम्मुख पेश किया।

तत्पश्चात “कविता कहाँ जा रही है” विषय पर संगोष्ठी आरंभ हुई जिसका विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि वाल्मीकि और तुलसीदास जी ने लोक भाषा का उपयोग करते हुए अपने भावों को प्रवाहित किया था। आज भी कविता हृदय में समाहित होती है तो रचनाकार का प्रयास निश्चित ही फलीभूत होता नज़र आता है।

डॉ संगीता व्यास ने आदि काल से लेकर वर्तमान समय में कविताओं की स्थिति परिस्थिति बताई और कहा कि आज हम क़लम और किताब से दूर होते जा रहे हैं। कविता परिवर्तित हो रही है। अतः हमें चिन्तन करना होगा।

प्रो ऋषभ देव शर्मा ने अपने संबोधन में कहा हम संप्रेषण के युग में जी रहे हैं। कविता को ग्लैमरस करेंगे तो कविता कविता नहीं रहेगी। इक्कीसवीं सदी की कविता बदल रही है। हमें अपने साहित्य की कसौटी बदलनी है। कविता अपनी जगह यथा स्थित है बल्कि हम कविता के निकट नहीं जा पाते हैं।

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डॉक्टर अनिल सुलभ ने कहा कि कविता, साहित्य, संगीत ऐसे प्राण तत्व हैं जो मनुष्यता को सिंचित करते हैं। वेदना का संबंध सीधे दिल से है। साहित्य केवल दर्पण नहीं, दिग्दर्शकहै। पूर्व में हमारे ऋषि मुनि नहीं होते तो आज हमारे हाथ कुछ भी न होता। वाल्मिकी न होते तो कौन जानता राम को।

अध्यक्षीय संबोधन में प्रो शुभदा बांजपे ने कहा कि सम्पूर्ण हिन्दी काव्य का इतिहास आज के विषय में समाहित है। पंच कलाओं का काव्य शास्त्र बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए भौतिक उपकरणों की ज़रूरत नहीं होनी होती। आज की कविता में संप्रेषणीयता बाधित हो रही है। कविता में सिर्फ मनोरंजन का कर्म ही नहीं उपदेश का भी मर्म होना चाहिए। सभी वक्ताओं ने क्लब को इस यात्रा के लिए शुभकामनाएं दीं।

हैदराबाद के वरिष्ठ रचनाकार विनीता शर्मा, नरेंद्र राय ‘नरेन’, वेणु गोपाल भट्टड, शांति अग्रवाल, पुष्पा वर्मा का उनके पचहत्तर वर्ष पूरे करने पर और साहित्यिक योगदान को ध्यान में रखते हुए मोमेंटो, शॉल और माला से सम्मानित किया गया।

साथ ही डॉ टी सी वसन्ता एवं ‘जैन रत्न’ मीना ललित मुथा को जैन रत्न की उपाधि से अलंकृत होने पर क्लब की ओर से सम्मानित किया गया। सभी सम्मान ग्राहिताओं ने अपने भाव व्यक्त किए। सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर ने किया और डॉ सुरभि दत्त ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

दूसरे सत्र में प्रो ऋषभ देव शर्मा ने अध्यक्षता की। नरेंद्र राय ‘नरेन’, डॉ अहिल्या, डॉ गंगाधर वानोडे विशेष अतिथि, वेणुगोपाल भट्टड, डॉ अनिल सुलभ मंचासीन हुए। डॉ वानोडे को क्लब की ओर से सम्मान किया गया। डॉ आशा मिश्रा द्वारा पुष्पक साहित्यिकी का परिचय देने के उपरांत पत्रिका का लोकार्पण डॉ अनिल जी के कर कमलों से हुआ। सत्र का संचालन तृप्ति मिश्रा ने किया।

काव्य गोष्ठी में उषा शर्मा, सरिता दीक्षित, नरेंद्र राय नरेन, वेणुगोपाल भट्टड, अजित गुप्ता, गीता अग्रवाल, पुष्पा वर्मा, बी के अग्रवाल उमा सोनी, डॉ स्वाति गुप्ता, वर्षा शर्मा, सीताराम माने, पुरुषोत्तम कड़ेल, चन्द्र प्रकाश दायमा, त्तृप्ति मिश्रा, सूरज कुमारी, मीरा ठाकुर, श्री पूनम जोधपुरी, डॉ आशा मिश्रा, जी परमेश्वर, डॉ जय प्रकाश नागला (नांदेड), डॉ रमा द्विवेदी, डॉ सुषमा देवी, मोहित, प्रवीण प्रणव, शिल्पी भटनागर, राजीव कुमार सिंह नयन, डॉ अहिल्या मिश्र, शोभा देशपांडे आदि ने काव्य पाठ किया। डॉ वानोडे एवं डॉ अनिल सुलभ ने भी काव्य प्रस्तुति दी।

प्रो ऋषभ देव शर्मा ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया। सुहास भटनागर, रवि वैद, डॉ सुमनलता, डॉ जयश्री, दर्शन सिंह, श्रुतिकांत भारती, के राजन्ना, पुलिन अग्रवाल, दीपा कृष्णदीप, देवा प्रसाद मायला, जितेंद्र प्रकाश, दीपक कुमार दीक्षित, सत्यनारायण काकड़ा, शशि राय आदि की उपस्थिति रही हैं।

डॉ सुषमा देवी ने सत्र का धन्यवाद ज्ञापित किया और संयोजिका डॉ रमा द्विवेदी ने कार्यक्रम समापन की घोषणा की। अवसर पर सुरुचि भोज की व्यवस्था की गई थी।

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