साहित्य सेवा समिति की गोष्ठी में ‘वाट्स एप का हिन्दी साहित्य को योगदान’ पर सारगर्भित चर्चा, इन वक्ताओं ने दिया संदेश

हैदराबाद: हैदराबाद की सुप्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था की 113 वीं गोष्ठी आनलाईन सम्पन्न की गई। तकनीकी सहयोग दिया हमारे युवा साथी और सम्प्रति अध्यापन कार्य में जुड़े उमेश यादव ने। इस विशेष सभा में अध्यक्षता का निर्वहन किया वरिष्ठ साथी और भारत स्काऊट एंड गाइड से जुड़े तेलुगु और हिन्दी के कवि जी. परमेश्वर ने। कार्यक्रम का शुभारंभ किया डॉ अर्चना पांडेय की स्वरचित सरस्वती वंदना से। डॉ अर्चना डी आर डी ओ की राजभाषा अधिकारी हैं और हिन्दी की लब्धप्रतिष्ठ कवियित्री भी हैं।

प्रथम सत्र में चर्चा का विषय ‘वाट्स एप का हिन्दी साहित्य को योगदान’ रहा है। विषय का परिचय दिया सेवा निवृत्त शिक्षिका पूजा महेश ने। आपने एक विस्तृत फलक पर अपनी बात रखी। आपने बताया कि आज के तकनीकी युग में वाट्स एप ने एक सशक्त भूमिका निभायी है। इसी के द्वारा हम साहित्य की विभिन्न विधाएँ सीखते हैं। उन्हें आम जनता और मित्र वर्ग के सामने रखते हैं और बड़ी दूर तक हमारी रचनाएँ पहुँचती हैं। विशेषकर कोविद के दौरान तो मानों सृजनात्मक संसार को पंख लग गए।

फुर्सत में बैठे लोगों ने कविता इत्यादि सीखा, परिमार्जन किया और दूर-दूर तक पहुँचाया। इसके पहले तो बड़े-बड़े मंच हर किसी को उपलब्ध नहीं थे। लेकिन अब पत्र पत्रिकाओं और मंचों को आम जनता के करतल पर धर दिया। भले ही आज लगता है कि वाट्स एप की लत जैसी लगती जा रही है, जो एक सीमा तक अपने कुपरिणाम भी दे रही है, लेकिन आत्म नियंत्रण और अनुशासन के द्वारा इन पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

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विद्यार्थियों और शिक्षक के बीच संबंध अच्छे हो रहे हैं। वाट्स एप पर विशेष कक्षाएँ भी चलाई जाती हैं। इस प्रकार हिन्दी साहित्य का क्षेत्र विकसित ही हुआ है। अध्यक्षता कर रहे जी परमेश्वर ने बताया कि कि प्रकार वाट्स एप के नकारात्मक प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। लोगों की रचनाएँ सुरक्षित नहीं रहतीं, एकाधिकार नहीं रह पाता और सर्वाधिकार भी सुरक्षित नहीं रह पाते। लोग अपने आवश्यक कार्यों से विमुख होते जा रहे हैं। वाट्स एप में लिप्त रहने के कारण शारीरिक सक्रियता कम होती जा रही है।

चंद्र प्रकाश दायमा ने वाट्स एप के अन्य दुष्प्रभावों पर चर्चा की कि किस प्रकार अनावश्यक पोस्ट इत्यादि लोग यहाँ से वहाँ भेजते रहते हैं। अंत में समिति की महामंत्री सुनीता लुल्ला ने वाट्स एप के साहित्य को योगदान के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि आज वाट्स एप के द्वारा ही कविताएँ प्रचारित और प्रसारित की जाती हैं। उनका संकलन किया जाता है। संपादन करके उन्हें पुस्तक का प्रारूप दिया जाता है। प्रूफ़ रीडिंग करने के बाद उन्हें छापा खाने तक पहुँचाया जाता है। एक कविता से पुस्तक तक पहुंचने की यात्रा में निश्चित रूप से वाट्स एप का योगदान अभिनंदनीय है। इसके साथ ही प्रथम सत्र के समापन की घोषणा की गई।

द्वितीय सत्र का संचालन पूजा महेश ने किया। और मंच पर उपस्थित सभी कवियों ने स्वरचित कविताओं का पाठ किया। उर्मिला पुरोहित, डॉ अर्चना पांडेय, चंद्र प्रकाश दायमा, मंजू भारद्वाज, कंचन श्रीवास्तव, पूजा महेश, सुनीता लुल्ला और जी. परमेश्वर ने काव्य पाठ किया। मंजू भारद्वाज के धन्यवाद ज्ञापन के साथ ही कार्यक्रम का समापन हुआ।

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