सरकारी कार्यालयों में महिला कर्मचारियों/अधिकारियों की संख्या कम ही है। उद्यमों को कौन कहे। हमारे देश में क्या पूरे विश्व में ही महिला उद्यमियों की संख्या कम है। उस पर हमारे समुदाय में महिला उद्यमियों की संख्या (आंकड़े अनुपलब्ध) को उंगलियों पर गिना जा सकता है।
समाज में महिलाओं का हिस्सा लगभग 51 प्रतिशत है। फिर भी भारत में अब तक 7 प्रतिशत महिलाएं ही कंपनी खोल पाई हैं।
महिलाओं के पास हुनर तो है ही, लेकिन उन्हें पुरुषों के बरख्श कमतर आंका जाता है। उद्यमी के रूप में उनका सफर बहुत मुश्किल तो है ही, लेकिन ऋण मिल पाना भी एक बड़ी समस्या है। यदि मिल गया तो बाकी प्रक्रियाएं भी उनकी राह में रोड़ा बनती हैं। जो महिलाएं उद्यमी हैं उनका अपने कर्मचारियों से मिल पाना आसान नहीं होता, कर्मचारी भी प्रायः गंभीरता से नहीं लेते।
अमेरिका में 25%, जर्मनी में 15% और भारत में 7% महिला उद्यमी (2016 में छठी आर्थिक गणना के अनुसार 14%) हैं। भारत में कुल 58.5 मिलियन उद्यमी हैं। उनमें से 8.05 मिलियन महिला उद्यमी हैं। लगभग 79% महिलाओं का व्यवसाय सेल्फ फाइनांस्ड है और आकार में छोटे हैं।
उनके लिए सरकार की तमाम ऋण योजनाएं हैं। इसके बाद भी ग्रामीण महिलाएं अधिकांश पारंपरिक कारोबार हेतु अधिक ऋण लेती हैं।
जहां एक तरफ महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए राजनयिक दबाव बनाना होगा तो वहीं दूसरी तरफ उद्यम या कारोबार शुरू करने के लिए उनको जुनूनी होना बहुत जरूरी है। हालांकि उन्हें लिंग आधारित बाधाओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन फिर बहुतों को अवसर मिलता है, लेकिन जोखिम लेने का साहस कम लोगों के पास ही होता है।
हमारे समुदाय में वैसे तो काफी महिलाएं अपने परंपरागत व्यवसाय में कार्यरत हैं, पर वे उद्यमी की श्रेणी से बाहर ही हैं। क्योंकि उनकी आर्थिक हिस्सेदारी 51 फीसदी नहीं है। हालांकि यह दुरूह और बेहद थका देने वाला यह कार्य महिलाओं का ही है और उन्हीं के बलबूते पर फल-फूल भी रहा है, पर अफ़सोस कि वे उद्यमी नहीं हो पातीं। यह मात्र एक बानगी भर है, इसके अतिरिक्त भी तमाम उद्यम हैं जिसे महिलाएं अपनी रुचि के अनुरूप अपना सकती हैं।
हमारे समुदाय की महिलाओं के उद्यमी न बन पाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि आज भी यह धारणा प्रचलित है कि “महिलाएं क्या व्यवसाय/उद्यम करेंगी? घर ही संभाल लें वही बहुत है।”
हमें इस धारणा से बाहर आकर उन्हें भी उद्यमी बनाने की ओर अग्रसर होना होगा जिससे वे भी सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारी में संतुलन स्थापित कर उद्यम पर भी नियंत्रण कर सकें और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर परिवार के साथ समाज और देश की प्रगति में योगदान दे सकें। उन्हें अपनी रुचि और सुविधा के अनुरूप उद्यम चुनने की स्वतंत्रता प्रदान करने के साथ-साथ सहयोग भी करना होगा, जिससे उद्यम से जुड़े जोखिम उठाने में सक्षम हो सकें और सशक्त बन सकें।
- नरेन्द्र दिवाकर
ग्राम- सुधवर, पोस्ट-चायल, जिला- कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल नंबर- 9839675023