हैदराबाद (रिपोर्ट की सरिता सुराणा) : सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत हैदराबाद द्वारा रविवार को 36 वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। यह गोष्ठी भक्ति गीतों पर आधारित थी। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सहभागियों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और भूतपूर्व वैज्ञानिक एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री दर्शन सिंह को गोष्ठी की अध्यक्षता करने हेतु मंच पर आमंत्रित किया। कटक, उड़ीसा से श्रीमती रिमझिम झा की सुमधुर सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। यह गोष्ठी सूरदास जयन्ती के उपलक्ष्य में आयोजित की गई थी।
सरिता सुराणा ने कहा कि सूरदास जी महान कवि और संगीतकार थे और श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने सूर सारावली, सूर सागर, साहित्य लहरी जैसी महत्वपूर्ण रचनाएं रची। उनकी रचनाओं में अलंकारों की छटा और प्रभु की बाल लीलाओं का वर्णन अनुपमेय है। उनके गुरु श्री वल्लभाचार्य जी ने ही उन्हें भागवत लीला लिखने की प्रेरणा दी।
डॉ. सुमन लता ने अपने वक्तव्य में कहा कि उन्होंने सूरदास जी पर ही शोध कार्य किया है। श्री हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी ने कहा था कि विरह में वात्सल्य रस का जैसा प्रयोग सूरदास जी के पदों में देखने को मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने कहा कि सूरदास की रचनाओं में वात्सल्य, सख्य और शृंगार रस की गंगा बहती है। सूर सागर के 250 पदों में विविधता है। सूरदास ने मातृ विरह और शृंगार में विरह का वर्णन बहुत ही मार्मिक ढंग से किया है।
काव्य गोष्ठी प्रारम्भ करते हुए कोलकाता से श्रीमती सुशीला चनानी ने सूरदास का पद- निसदिन बरसत नैन हमारे बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया और कबीर दास जी की एक साखी प्रस्तुत की। उसके बाद कोलकाता से ही श्रीमती हिम्मत चौरड़िया ने अपना गीत- माँ शुभंकर, माँ सहारा माँ हमें ही दे किनारा प्रस्तुत किया। श्रीमती भावना पुरोहित ने श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा स्थापित एवं प्रसारित वैष्णव पंथ का परिचय दिया और कहा कि श्रीकृष्ण की सगुण भक्ति को पुष्टि मार्ग भी कहा जाता है।
सरिता सुराणा ने सूरदास के पद- जसोदा हरि पालने झुलावै/हलरावे दुलरावे/ जोई-सोई कछु गावे तथा मैया कबहुं बढेगी चोटी की शानदार प्रस्तुति दी। बिनोद गिरि अनोखा ने अपने अंदाज में अपनी वैवाहिक वर्षगांठ पर आधारित रचना का वाचन किया। सभी ने उन्हें बधाई और शुभकामनाएं दी। यादगिरी से श्रीमती नीतू दाधीच ने सूरदास जी से सम्बन्धित अपनी स्वरचित रचना का पाठ किया।
श्रीमती किरन सिंह ने सूरदास का बहुत ही प्रसिद्ध पद- मेरो मन अनत कहां सुख पावे प्रस्तुत किया। अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए श्री दर्शन सिंह ने इस आयोजन हेतु संस्था को बधाई दी और कहा कि ऐसे आयोजनों से न केवल ज्ञान में वृद्धि होती है अपितु भक्ति भाव का भी संचार होता है। उन्होंने पंजाबी भक्ति गीत-औखी घड़ी ना देखन देई/अपना बिरद संभाले प्रस्तुत किया। सभी ने मुक्त कंठ से उनकी प्रशंसा की। श्रीमती तृप्ति मिश्रा के धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी सम्पन्न हुई।