हैदराबाद : ‘लोकगीत हर अवसर को सुहाना बना देता है। महिलाओं के समवेत समूह गान से त्योहारों तक का महत्त्व बढ़ा है। लोकगीत ने ही हमें कविता दी। इसमें जो भाव-सौंदर्य है, वह हमारी-आपकी रचना से अधिक रोचक है।’ लोकगीत-अनुष्ठान की अध्यक्ष व वरिष्ठ कवयित्री डॉ सरोजिनी प्रीतम ने यह उद्गार व्यक्त किया। उन्होंने इस संदर्भ में अमीर ख़ुसरो के ढकोसले की पंक्तियों का उल्लेख किया : खीर पकाई जतन से/चरखा दिया चलाय/आया कुत्ता खा गया/तू बैठी ढोल बजाए। उन्होंने कहा कि हमारी लोक-बोलियों में बहुत मिठास है।
सार्वजनिक जीवन में लोक-गीतों की महत्ता
कार्यक्रम का प्रारंभ ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ शिव शंकर अवस्थी ने कहा कि हमारे सार्वजनिक जीवन में लोक-गीतों की महत्ता निर्विवाद है। ये गीत हमारे लोक-जीवन की सशक्त प्रस्तुति होते हैं। उन्होंने कहा कि लोक में प्रचलित गीत, लोक में रचित गीत और लोक-विषयक गीत लोकगीत की श्रेणी में आते हैं।
प्रमिला नायर ने एक पंजाबी लोकगीत प्रस्तुत किया
कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति में प्रमिला नायर ने एक पंजाबी लोकगीत प्रस्तुत किया। नागपुर की मीरा रैकवार ने ‘सरोता कहाँ भूल आए प्यारे ननदोइया’ गाया तो आगरा की श्रुति सिन्हा ने सौतन लाने के दर्द का बयां किया : मैं तो चंदा जैसी नारी/राजा क्यों लाए सौतनियाँ/मैं तो छैल-छबीली नारी/राजा क्यों लाए सौतनियाँ। लोकगीतों में होरी का अपना ही स्थान है। वरिष्ठ कवि बी.एल. गौड़ ने होरी की मस्ती को रचा : मेरी गोरी मुखड़ो है तो/मेरो का है दोस/देवर मले गुलाल गालन पे/भर-भर पूरौ जोस/मैं तो करूँ बहुत बरजोरी/पर वे हठ ना छोड़ें/भाभी से देवर को रिसता/जनम-जनम से जोड़े/आँख तरेरे सासू माँ जी/का उनकू बतलाएँ।
डॉ अहिल्या मिश्रा ने मैथिली में लोकगीत गाया
हैदराबाद की वरिष्ठ कवयित्री और मिथिला की बेटी डॉ अहिल्या मिश्रा ने मैथिली में लोकगीत गाया, जहाँ सीता जी, जिन्हें ‘किशोरी’ भी कहा जाता है, की सखियाँ कहती हैं कि वे मिथिला से बाहर नहीं जाएँगी, वे यहीं रहें, हम उनकी सेवा-टहल करते रहेंगे : अपना किशोरी जी के टहला हम बजाएब हे, हम मिथिले मे रहबै/हमरा नहिं चाहबि सुख-आराम, हम मिथिले मे रहबै/साग-पात खइबै, हम मिथिले मे रहबै/आठ याम ‘सिया-सिया’ कहबै, हम मिथिले मे रहबै।
डॉ शिव शंकर अवस्थी ने बुंदेली गीत सुनाया
दिल्ली के वरिष्ठ कवि डॉ शिव शंकर अवस्थी ने बुंदेली में अपना प्यारा गीत सुनाया, जिसमें बेटे अपनी बऊ यानी माँ से अपना विवाह कराने का निवेदन कर रहा है:
ओरी बऊ, मोरी बऊ,
कबै बजे रमतूला
आँगन में बऊ री, मढ़वा गड़वा दे
भौजी री हल्दी लगा दे,
हल्दी लगा दे, माहुर लगा दे
चंदा-सी गौरी ला दे।
प्रभा मेहता ने इंद्र भगवान से वर्षा करने का निवेदन किया
नागपुर की वरिष्ठ कवयित्री प्रभा मेहता ने इंद्र भगवान से वर्षा करने का निवेदन किया : धरती अए बोलो इंदर क्यों लियो/मेघा जी आप बरसो जी धरती उपजे।
डॉ प्रभा शर्मा सागर ने घर-परिवार के मान-सम्मान का गीत गाया
मुंबई की कवयित्री डॉ प्रभा शर्मा सागर ने अपने घर-परिवार के मान-सम्मान का गीत गाया : नाज़ुक नरम कलाई रे, पनिया कैसे जाऊँ। -३/अपने ससुर की मैं बहुत लाडली-2/अँगना में कूईया खुदवाई रे-पनिया कैसे जाऊँ। 2/अपने जेठ की मैं बहुत लाडली-2/सोने की इंडली घड वायी रे, पनिया कैसे जाऊँ।
रमा वर्मा श्याम ने देवर-भाभी की नोंक-झोंक पर आधारित लोकगीत सुनाया
लोक संस्कृति के वाहक गीतों में से एक आगरा की कवयित्री रमा वर्मा श्याम ने देवर-भाभी की नोंक-झोंक पर आधारित लोकगीत सुनाया : नयन कजरारे भौजी तेरे/हैं जादू वारे भौजी तेरे।/माथे की टिकुली भौजी ऐसी दमके/गगन के तारे भौजी तेरे।/केशराशि भौजी ऐसी जैसे/बदरवा कारे भौजी तेरे/एक बार भौजी हमकहु चितवहु/हमहु दिल वारे भौजी तेरे।
डॉ अशोक कुमार ज्योति ने मैथिली लोकगीत सुनाया
वाराणसी के कवि डॉ अशोक कुमार ज्योति ने मैथिली लोकगीत सुनाया, जिसमें एक माँ का दर्द है कि जिस बेटी को बड़े लाड़-प्यार से पाला-पोसा, उसे ब्याहकर उसका दूल्हा ले जा रहा है : बड़ा रे जतन से सिया धीया पोसलऊँ/ओहो सिया राम ले ले जाए।
डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ ने भोजपुरी लोकगीत गाया
हैदराबाद की युवा कवयित्री डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ ने भोजपुरी का एक विश्वप्रसिद्ध लोकगीत गाया, जिसने सबके हृदय में राष्ट्र-प्रेम की भावना जाग्रत् कर दी और सभी भाव-विभोर हो गए। उनके मधुर स्वर ने और आकर्षित किया :
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्राण बसे हिम-खोह रे बटोहिया
एक द्वार घेरे रामा हिम-कोतवलवा से
तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया।
जाऊ-जाऊ भैया रे बटोही हिंद देखी आउ
जहवां कुहुकी कोइली गावे रे बटोहिया
पवन सुगंध मंद अगर चंदनवां से
कामिनी बिरह-राग गावे रे बटोहिया।
कृष्ण कुमार द्विवेदी ने होली गीत सुनाया
नागपुर के कृष्ण कुमार द्विवेदी ने होली का एक गीत सुनाया, जिसमें नायक नागपुर से संतरा लेकर नायिका के पास पटना पहुँच गया : ओ काका जी, ओ दादाजी/ओ भैयाजी, वो भौजई जी/सुन लो बड़े ध्यान से/मैं सुनाता हूँ/होली की घटना/संतरा नगरी की घटना/जाकर घट गई पटना में/…गोरी के गाँव में/पीपल की छाँव में।
डॉ अरविंद श्रीवास्तव ‘असीम’ ने बुंदेली गीत सुनाया
दतिया, मध्य प्रदेश के कवि डॉ अरविंद श्रीवास्तव ‘असीम’ ने बुंदेली भाषा में अपना गीत सुनाया : भइअन, बात करो ना जादा/सीखो कछु मर्यादा।/घर में खावे दानों नइया/और रंभा रई भूखी गईआ/का करबे कौ इरादा/भइअन बात…।
जंग बहादुर सिंह राणा ने ‘कोरोना की मार’ नामक गीत सुनाया
दिल्ली के वरिष्ठ कवि जंग बहादुर सिंह राणा ने ‘कोरोना की मार’ नामक अपना गीत सुनाया :
एक वायरस जग में ऐसा आया
नहीं किसी को पड़े दिखाय।
मौत का सागर संग में लाया
सारा जग पड़े-पड़े चिल्लाय।
श्रीमती सुदेश भाटिया ने पंजाबी लोकगीत प्रस्तुत किया
नोएडा की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती सुदेश भाटिया ने पंजाबी लोकगीत प्रस्तुत किया : ए छोरी मेरे लाल दी/एनूं सगणा नाल सजावा।
इन कवियों ने भी स्थानीय भाषाओं में लोकगीत सुनाये
इस प्रकार नॉर्वे के डॉ सुरेशचंद्र शुक्ल ‘सुरेश’, अजमेर के डॉ नवल किशोर भावड़ा, सिंधी की कवयित्री मोना अशोक वर्मा, कर्नाटक की सरोज लोराया, सरोजा मेट्टी तथा डॉ उषा रानी राव, मुंबई की लता तेजेश्वर रेणुका, त्रिशूर, केरल की सी.जे. प्रसन्नकुमारी, हैदराबाद की संपत देवी मुरारका, डिबाई की रजनी सिंह, जबलपुर की डॉ सलमा जमाल, दिल्ली के डॉ हरिसिंह पाल, आगरा की शैलबाला अग्रवाल एवं प्रभा शर्मा, नागपुर की नेहा भंडारकर सहित देशभर की अनेक कवि-कवयित्रियों ने अपनी-अपनी स्थानीय भाषाओं में सुंदर लोकगीतों की प्रस्तुतियाँ दीं।