यह शर्मनाक है कि दंगो और संघर्षो के दौरान महिलाओं के शरीर को बदला लेने का आधार बना लिए जाता है। विपक्षी को दंडित करने के लिए उनके पक्ष की महिलाओं का बलात्कार और यौन उत्पीड़न कर उन्हें युद्ध का मैदान बनाने में जरा भी देर नहीं की जाती। लेख में व्यक्त विचार लेखिका है। संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है।
मणिपुर में कुकी महिलाओं का यौन उत्पीड़न इसका ताजा उदाहरण है। महिलाओं को रोते हुए, दर्द से कराहते हुए और अपने हमलावरों से कुछ दया दिखाने की भीख मांगते हुए दिखाया जा रहा है। यह फुटेज काफी परेशान करने वाले हैं।
अधिकारियो के प्रति उपजा अविश्वास
तथ्य यह है कि पहली गिरफ्तारी अभी हुई है। हमले की पुलिस को सूचना दिए जाने के दो महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी ऐसा होना क्या अधिकारियों में अविश्वास पैदा करता है? क्योंकि फुटेज में कई लोगो को स्पष्ट रूप से पहचाने जाने का दावा किया जा रहा है |
जनसमूह में आक्रोश
भारत में इस वीडियो के सामने आने के बाद जनसमूह में उपजे आक्रोश ने इस भयावह अपराध को सुर्खियों में ला दिया है। राज्य का अपने लोगो की सुरक्षा में विफलता पर भी सवाल उठाए गये हैं |
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पीड़ितों को न्याय दिलाने का दबाब
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान कि इस तरह की घटना भारत के लिए शर्म का विषय है। दोषियों को छोड़ा नहीं जायेगा। यह एक मजबूत संदेश देता है। मणिपुर में विशेष रूप से अल्पसंख्यक कुकी समुदाय के बीच विश्वास बहाल करने और अपराधियों के खिलाफ तेजी से कार्रवाई करने और महिलाओं को न्याय दिलाने का अब अधिकारियों पर दबाव है।
दंगों की पृष्ठभूमि
घटना की जड़ तक जाये तो इसके पीछे मणिपुर के दो जातीय समूहों- कुकी और मेइतेई के बीच लंबे समय से संघर्ष जारी है। इसके कारण अब तक राज्य में व्यापक हिंसा, बेकसूर लोगों की मौत और विस्थापन सरेआमा हुआ है। रूढ़िवादी अनुमान के अनुसार इस लम्बे संघर्ष में मरने वालों की संख्या लगभग 80 है, जबकि 40,000 से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं। कई मामलों में लोगों के लौटने आने के बाद उनका मकान नहीं होता है|
आपको यह जानना जरूरी है कि मणिपुर में सरकार चाहे कोई भी पार्टी की रहे, पर हमेशा मेईती लोगों का वर्चस्व रहा है। यह समुदाय राज्य की आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हैं। यह समुदाय ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। कुकी सम्प्रदाय से जुडी महिलाओं के साथ इस प्रकार की घटनाएं अत्यंत शर्मनाक है |
नारी अस्मिता का सवाल
विवाद की जड़ें चाहे जितनी गहरी हो पर कुकी सम्प्रदाय के औरतों पर हुए इस अत्याचार को कही से भी सही नहीं ठहराया जा सकता। सवाल यह है कि कब तक महिलाओं के शरीर का अपमान करके “अन्य” के खिलाफ बदला लेने के लिए हथियार बनाया जाता रहेगा? कब तक सरकारें एक दूसरे के सिर पर ऐसे अपमान का ठीकरा फोड़ती रहेगी? कब तक किसी की बहु-बेटी को अपने समुदाय की नाराजगी अपने शरीर पर झेलनी होगी? आखिर कब तक?
– लेखिका अमृता श्रीवास्तव
बेंगलुरु