New Criminal Laws : देश में लोकतांत्रिक माहौल हो जाएगा खत्म, ये लोगों पर करने वाले हैं दमन

देश में तीन नये आपराधिक कानून एक जुलाई से लागू होंगे। मशहूर वकील इंदिरा जयसिंह सहित सैकड़ों Bureaucrats ने सरकार से इस कार्यान्वयन को स्थगित करने का आग्रह किया है। लेकिन, सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। देश के कई बुद्धिजीवियों ने इन कानूनों के लागू होने से पैदा होने वाली परिस्थितियों पर चिंता जताई है। लेकिन, केंद्र सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है।

पुलिस, वकीलों, अभियोजकों और न्यायाधीशों पर भार

25 दिसंबर 2023 को भारत के राष्ट्रपति ने इन कानूनों पर अपनी सहमति दे दी है। भारतीय नागरिक सुरक्षा 2023, भारतीय सुरक्षा संहिता 2023, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 ये तीन कानून लागू होने से पुराने कानून आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973, भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 रद्द हो जाएंगे। फिर भी ये तीनों कानून पूरी तरह रद्द नहीं होंगे। 30 जून रात 11.59 बजे तक दर्ज मामलों के लिए यह कानून लागू होंगे। ये कानून तब तक लागू रहेंगे जब तक उन मामलों का निपटारा नहीं हो जाता। इसका मतलब यह है कि यह भार देश के पुलिस, वकीलों, अभियोजकों और न्यायाधीशों पर पड़ेगा। क्योंकि उन्हें ये कानून पढ़ने होंगे।

नये कानूनों से काम का बोझ बढ़ेगा

इससे पहले आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1895 को निरस्त करने वाली सरकार ने नया कानून आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 लागू की है। पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता 1898 को एजेंसी क्षेत्रों में जारी रखी गई है। उन क्षेत्रों पर दंड प्रक्रिया संहिता 1973 लागू नहीं होती। उन एजेंसी क्षेत्रों में काम करने वाले न्यायाधीशों को पुरानी आपराधिक प्रक्रिया संहिता पढ़ने की स्थिति उत्पन्न हुई है। अब पूरे देश में पुराने कानून अब हटने वाले हैं और नये कानून लागू होने वाले हैं उन्हें पढ़ने जरूरत है। इस स्थिति से उबरने में कम से कम पचास साल लग सकते हैं।

जांच में और देरी हो सकती है

दरअसल, हमारी न्याय व्यवस्था लचर चल रही है। अब इन नये कानूनों से अदालतों पर काम का बोझ बढ़ जाएगा। मुकदमों की सुनवाई में देरी की आशंका है। संविधान के बाद ये तीन कानून सबसे महत्वपूर्ण कानून हैं। ये तीनों कानून लोगों के जीवन से गहराई से जुड़े गये हैं। इन कानूनों के अधिकांश प्रावधान लोगों, विशेषकर निम्न वर्ग के जीवन को लाभ नहीं पहुंचाते हैं। उनके जीवन को और भी कठिन बना रहा है। इन कानूनों को संसद में बिना किसी बहस के पारित किये गये। सरकार ने विपक्ष को बाहर कर इन कानूनों को संसद में पारित कराया। इससे अनेक सवाल अनुत्तरित रह गये है।

पुलिस के पास विशेष अधिकार हैं

इन नये कानूनों का प्रस्ताव आया। उनके मसौदा की प्रति को अगस्त 2023 में जारी किया गया। तब से लोगों में व्यापक सार्वजनिक चिंता होने लगी है। सरकार ने लोगों की ओर से व्यक्त की गई किसी भी चिंता को गंभीरत से नहीं लिया है। सरकार ने कहा है कि इन कानूनों ने पीड़ितों का ख्याल रखा है और उन्हें बड़ी सौगात दी है। लेकिन, हकीकत में इसमें शर्तें ज्यादा दिखाई देती हैं। इन नये कानूनों के अधिकांश प्रावधान ‘राज्य’ (स्टेट) के पक्ष में है। ये कानून पुलिस को विशेष अधिकार देते हैं।

नये कानूनों से कई समस्याएं पैदा हो गयी हैं

प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज कराने के लिए पीड़ितों को बड़ी ‘तपस्या’ करने की परिस्थिति उत्पन्न हो रही है। इन तीन नये कानूनों के कारण कई और समस्याएं हैं। मुख्य रूप से लोकतंत्र पद्धति से लोगों को अपनी असहमति व्यक्त करने का अवसर (मौका) नहीं है। असहमति व्यक्त करना एक अपराध हो जाता है। राजद्रोह को समाप्त करके उसके स्थान पर उससे भी कठिन देशद्रोह अपराध को लागू किया गया है। ये नये कानून निर्दोष नागरिकों और ईमानदार सरकारी कर्मचारियों को आतंकित करते हैं। पुलिस को दिये गये असीमित शक्तियों के कारण किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है।

लोकतांत्रिक माहौल खत्म

जांच के दौरान पुलिस आरोपी को पहले की तरह 15 दिन की रिमांड के बजाय 90 या 60 दिन के भीतर कभी भी अपनी हिरासत में ले सकती है। इसके अलावा, राज्य के पास असहमति व्यक्त करने वालों के खिलाफ आतंकवादी और देशद्रोही के रूप में लेबल करने और मुकदमा चलाने की शक्ति है। इसके अलावा एक स्थिति ऐसी भी होती है जहां असाधारण परिस्थितियों में उपयोग किए जाने वाले नियम सामान्य परिस्थितियों में उपयोग किए जाते हैं। इन कानूनों के लागू होने के बाद देश में लोकतांत्रिक माहौल खत्म हो जाएगा। कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। यह संविधान द्वारा अनुच्छेद 21 के माध्यम से प्रदत्त अधिकार है। इस प्रक्रिया का उल्लेख मुख्य रूप से आपराधिक प्रक्रिया संहिता में किया गया है। अब उस कानून का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। नये कानून लागू हो जाएंगे।

न्यायपालिका पर प्रतिकूल प्रभाव

अपराध करने वाले व्यक्ति पर ‘राज्य’ पुराने आपराधिक कानून कई वर्षों से लागू हैं। प्रत्येक प्रावधान की व्याख्या उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों द्वारा की गई है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के कारण इन आपराधिक कानूनों के प्रावधान लगभग निश्चित हो गये हैं। अब फिर से अनिश्चितता की आशंका है। एक जुलाई से दो अलग-अलग आपराधिक, साक्ष्य और प्रक्रियाएं होंगी। इससे आपराधिक न्याय प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

भ्रष्टाचार बढ़ेगा

बड़ी-बड़ी अकादमियाँ स्थापित करने और पुलिस को प्रशिक्षण देने के बाद भी उनकी जाँच का दायरा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 से आगे नहीं बढ़ पाई है। अब इन असीमित शक्तियों के साथ वह धारा 27 को बायपास कर देगी सोचना दुराशा ही होगी। आपराधिक प्रक्रिया संहिता के मुताबिक, पीड़ितों को मामला दर्ज कराने के लिए कई चरणों से गुजरना पड़ता है। मैं भ्रष्टाचार के बारे में बात नहीं करना चाहता हूं। यह बात हर कोई अच्छी तरह से जानता है। अब यह दो गुना अधिक हो जाएगी। बिना किसी रोकटोक के होगी। अब हर नियम को चुनौती दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ सकता है। ये विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने में कितना समय लगेगा इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। तब तक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार अनिश्चित हो जाएगा।

मामलों के निपटारे में देरी

अत्यधिक बोझ से दबी न्यायपालिका पर बोझ और बढ़कर अंतहीन देरी जारी है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता आप्रवासन अधिनियम नहीं है। हमने 1973 में यही कानून बनाया है। यह अधिनियम 1 अप्रैल, 1973 से लागू हुआ। यदि इसमें आवश्यक प्रावधान शामिल कर दिये जाते तो यह पर्याप्त हो जाता था। ऐसा न करके पूरा कानून ही बदल दिया गया है। भारतीय दंड संहिता जिसका उल्लेख आप्रवासन क़ानून के रूप में किया गया है, में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। राज्य के लिए आवश्यक कुछ नये नियम जोड़े है। ये भी लोगों पर दमन करने वाले हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में किये गये परिवर्तन न्यूनतम हैं। केवल इसके लिए क्या कानूनों की जरूरत है? पुराने नामों को बदल कर संतुष्ट हो जाते तो काफी हो जाता था। अब ये तीन नये आपराधिक कानून लोगों को अनावश्यक उलझनें, अनावश्यक विलम्ब, अनावश्यक उत्पीड़न करने वाले हैं। अब हमें और इंतजार करना होगा कि आगे क्या-क्या होता है।

– डॉ मंगारी राजेंदर, जिला जज (सेवानिवृत्त)

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కొత్త క్రిమినల్​ చట్టాలతో గందరగోళం, కాలయాపన : మంగారి రాజేందర్

మూడు కొత్త క్రిమినల్​చట్టాలు జులై 1 నుంచి అమల్లోకి రానున్నాయి. ఈ అమలుని వాయిదా వేయమని ప్రముఖ న్యాయవాది ఇందిరా జైసింగ్​తోపాటు వందమంది బ్యూరోక్రాట్లు ప్రభుత్వాన్ని కోరారు. కానీ, ప్రభుత్వం నుంచి ఎలాంటి స్పందన లేదు. దేశంలోని చాలామంది మేధావులు ఈ చట్టాల అమలువల్ల తలెత్తే పరిస్థితులు గురించి ఆందోళన వ్యక్తం చేశారు. అయినా, కేంద్రం ఏమాత్రం పట్టించుకున్నట్లు లేదు.

25 డిసెంబర్ 2023 నాడు భారత రాష్ట్రపతి ఈ చట్టాలకు ఆమోద ముద్ర వేశారు. భారతీయ నాగరిక సురక్ష 2023, భారతీయ సురక్ష సంహిత 2023, భారతీయ సాక్ష్య అధినియం 2023..ఈ మూడు చట్టాలు అమలువల్ల పాత చట్టాలు క్రిమినల్​ ప్రొసీజర్​ కోడ్​ 1973, భారతీయ శిక్షాస్మృతి 1860, భారతీయ సాక్ష్యాధారాల చట్టం 1872 రద్దు అవుతాయి. ఈ మూడు చట్టాలు పూర్తిగా రద్దుకావు.

జూన్​30 రాత్రి 11.59 గంటల వరకు నమోదైన కేసులకి వర్తిస్తాయి. ఆ కేసులు తుదిరూపు తీసుకునేవరకు ఈ చట్టాలు అమల్లో ఉంటాయి. అంటే దేశ ప్రజలమీద మరీ ముఖ్యంగా పోలీసులు, న్యాయవాదులు, ప్రాసిక్యూటర్లు, న్యాయమూర్తులపై ఈ బరువు ఉంటుంది. వారు ఈ రెండు చట్టాలను చదవాల్సి ఉంటుంది.

కొత్త చట్టాలతో పెరగనున్న పనిభారం

గతంలో క్రిమినల్​ ప్రొసీజర్​ కోడ్​ 1895ని తొలగించి ప్రభుత్వం కొత్త చట్టం క్రిమినల్​ ప్రొసీజర్​ కోడ్​ 1973ని అమల్లోకి తెచ్చింది. పాత క్రిమినల్​ ప్రొసీజర్​ కోడ్​ 1898ని ఏజెన్సీ ప్రాంతాల్లో కొనసాగించింది. ఆ ప్రాంతాలకి క్రిమినల్​ ప్రొసీజర్​ కోడ్​ 1973 వర్తించదు. ఆ ఏజెన్సీ ప్రాంతాల్లో పనిచేసే న్యాయమూర్తులు పాత క్రిమినల్​ ప్రొసీజర్​ కోడ్​ చదవాల్సిన పరిస్థితి ఉంటుంది. ఇప్పుడు దేశవ్యాప్తంగా అందరూ తొలగించబోతున్న పాత చట్టాలని, అదేవిధంగా అమల్లోకి రాబోతున్న కొత్త చట్టాలను చదవాల్సిన పరిస్థితి ఏర్పడుతున్నది. ఈ పరిస్థితిని అధిగమించాలంటే కనీసం ఓ యాభై సంవత్సరాలు పడుతుంది.

విచారణల్లో జాప్యం మరింత పెరగొచ్చు

అసలే మన న్యాయవ్యవస్థ నత్తనడకగా నడుస్తున్నది. ఈ రెండు కొత్త చట్టాల వల్ల కోర్టుల్లో పనిభారం పెరుగుతుంది. కేసుల విచారణల్లో జాప్యం ఇంకా పెరిగే అవకాశం ఉంది. రాజ్యాంగం తరువాత అత్యంత ముఖ్యమైన చట్టాలు ఈ మూడు చట్టాలు. ఈ మూడు చట్టాలు ప్రజల జీవితాలతో ముడిపడి ఉన్నాయి. మరీ ముఖ్యంగా అట్టడుగు వర్గాల ప్రజల జీవితాలకు ఈ చట్టాలలోని చాలా నిబంధనలు మేలు చేయవు. వారి జీవితాలను ఇంకా క్లిష్టతరం చేస్తాయి. పార్లమెంటులో ఎలాంటి చర్చ జరగకుండా ఈ చట్టాలని ఆమోదించారు. ప్రతిపక్షాలను బయటకు పంపించివేసి పార్లమెంటులో ఈ చట్టాలను ప్రభుత్వం ఆమోదించింది. దానివల్ల చాలా ప్రశ్నలకు సమాధానాలు లేకుండా పోయింది.

పోలీసులకి విశేష అధికారాలు

ఈ కొత్త చట్టాల ప్రతిపాదన వచ్చినప్పటి నుంచి వాటి ముసాయిదా ప్రతిని ఆగస్టు 2023లో పెట్టినప్పటి నుంచి ప్రజల్లో విస్తృతమైన ఆందోళన మొదలైంది. ప్రజల నుంచి వ్యక్తమైన ఏ ఆందోళనని ప్రభుత్వం పట్టించుకోలేదు. బాధితులను ఈ చట్టాలు పట్టించుకున్నాయని, వారికి పెద్దపీట వేశాయని ప్రభుత్వం చెప్పింది. కానీ, వాస్తవంలో నిబంధనలు ఎక్కువగా కనిపిస్తాయి. ఈ కొత్త చట్టాల్లోని చాలా నిబంధనలు ‘రాజ్యానికి’ (స్టేట్)కు అనుకూలంగా ఉన్నాయి. పోలీసులకి విశేష అధికారాలను ఈ చట్టాలు ఇస్తున్నాయి.

కొత్త చట్టాల వల్ల చాలా సమస్యలు ఉన్నాయి

ప్రథమ సమాచార నివేదిక (ఎఫ్ఐఆర్)ని నమోదు చేయించుకోవాలంటే బాధితులకు తలకిందకిపెట్టి తపస్సు చేసే పరిస్థితి ఏర్పడుతుంది. ఈ మూడు కొత్త చట్టాల వల్ల ఇంకా చాలా సమస్యలు ఉన్నాయి. అవి ప్రధానంగా మూడు ప్రజాస్వామ్యయుతంగా కూడా ప్రజలు తమ అసమ్మతిని తెలియజేయడానికి అవకాశం లేదు. అసమ్మతిని వ్యక్తం చేయడం నేరమవుతుంది. రాజద్రోహాన్ని తొలగించి దానిస్థానంలో అదే మాదిరిగా, అంతకన్నా ఎక్కువ కఠినంగా ఉండే దేశద్రోహ నేరాన్ని తీసుకువచ్చారు. ఈ కొత్త చట్టాలు అమాయక పౌరులను, నిజాయితీ ప్రభుత్వ ఉద్యోగులను భయభ్రాంతులకు గురిచేస్తాయి. పోలీసులకి ఉన్న అపరిమిత అధికారాల వల్ల ఎవరినైనా అరెస్టు చేయడానికి వీలవుతుంది.

ప్రజాస్వామ్య వాతావరణం?

దర్యాప్తు సమయంలో పోలీసులు గతంలో మాదిరిగా రిమాండ్ అయిన మొదటి 15రోజుల్లో కాకుండా 90రోజుల్లో, 60 రోజుల్లో ఎప్పుడైనా పోలీసులు ముద్దాయిలను తమ కస్టడీలోకి తీసుకోవచ్చు. అంతేకాదు అసమ్మతిని వ్యక్తపరిచే వ్యక్తులను తీవ్రవాదులుగా, దేశద్రోహులుగా గుర్తించి ముద్రవేసి ప్రాసిక్యూట్ చేసే అధికారాలు రాజ్యానికి ఉన్నాయి. ఇవే కాకుండా అసాధారణ పరిస్థితుల్లో ఉపయోగించే నిబంధనలు మామూలు పరిస్థితుల్లోనే ఉపయోగించుకునే పరిస్థితి ఏర్పడుతుంది. ఈ చట్టాలు అమల్లోకి వచ్చిన తరువాత దేశంలో ప్రజాస్వామ్య వాతావరణం పోతుంది. చట్టం ద్వారా ఏర్పరచిన ప్రక్రియ ద్వారా తప్ప ఏ వ్యక్తి జీవితాన్నిగానీ, వ్యక్తిగత స్వేచ్ఛని హరించడానికి వీల్లేదు. ఇది ఆర్టికల్​ 21 ద్వారా రాజ్యాంగం అభయం ఇచ్చిన హక్కు. ఈ ప్రక్రియను ప్రధానంగా క్రిమినల్​ ప్రొసీజర్​ కోడ్​లో చెప్పారు. ఇప్పుడు ఆ చట్టం తన ఉనికిని కోల్పోతుంది. కొత్త చట్టాలు అమల్లోకి వస్తాయి.

న్యాయవ్యవస్థపై ప్రతికూల ప్రభావం

నేరం చేసిన వ్యక్తిమీద కేసు పెట్టేది ‘రాజ్యం’ పాత క్రిమినల్​ చట్టాలు చాలా సంవత్సరాలుగా అమల్లో ఉన్నాయి. ప్రతి నిబంధనని హైకోర్టులు, సుప్రీంకోర్టులు వ్యాఖ్యానించాయి. ఈ నేర చట్టాల నిబంధనలు సుప్రీంకోర్టు తీర్పుల వల్ల దాదాపు ఒక నిశ్చయతకి వచ్చాయి. ఇప్పడు మళ్లీ అనిశ్చితి ఏర్పడే అవకాశం ఉంది. జులై 1వ తేదీ నుంచి రెండు వేర్వేరు నేర, సాక్ష్యాలు, ప్రొసీజర్లు ఉంటాయి. దీనివల్ల నేర న్యాయవ్యవస్థ మీద ప్రతికూల ప్రభావం ఏర్పడుతుంది.

అవినీతి పెరుగుతుంది

పెద్దపెద్ద అకాడమీలు ఏర్పాటు చేసి పోలీసు లకు శిక్షణ ఇచ్చినా కూడా వాళ్ల దర్యాప్తు పరిధి భారతీయ సాక్ష్యాధారాల చట్టంలోని సె.27ని దాటలేదు. ఇప్పడు ఈ అపరిమిత అధికారా లతో అది సె.27ని దాటుతుందని ఆశించడం అత్యాశే అవుతుంది. క్రిమినల్​ ప్రొసీజర్​ కోడ్​ ప్రకారం బాధితులు కేసు నమోదు చేయాలం టేనే ఎంతో పైరవీ చేయాల్సి వస్తుంది. అవినీతి గురించి నేను మాట్లాడదల్చుకోలేదు. అది ప్రజలందరికీ తెలుసు. అది ఇప్పడు ద్విగుణీ కృతం అవుతుంది. అంతులేకుండా పోతుంది. ఇప్పుడు ప్రతి నిబంధన సవాలుకి గురవు తుంది. సుప్రీంకోర్టు దాకా వెళ్లాల్సి వస్తుంది. ఈ వివాదాలు సుప్రీంకోర్టుకు చేరుకోవడానికి ఎంత సమయం తీసుకుంటాయో చెప్పలేం. అప్పటివరకు వ్యక్తి స్వేచ్ఛ, జీవించే హక్కు అనిశ్చితికి లోనవుతాయి.

కేసుల పరిష్కారంలో జాప్యం

అధిక భారంతో ఉన్న న్యాయవ్యవస్థపై భారం ఇంకా ఎక్కువై అంతులేని జాప్యం కొనసాగుతుంది. క్రిమినల్​ ప్రొసీజర్​ కోడ్​ వలస చట్టం కాదు. అది 1973లో మనం తయారుచేసుకున్న చట్టం. 1ఏప్రిల్​1973 నుంచి అమల్లోకి వచ్చిన చట్టం. ఇందులో అవసరమైన నిబంధనలను చేరిస్తే సరిపోయేది. అలా చేయకుండా చట్టాన్ని మొత్తంగా మార్చేశారు. వలస చట్టాలుగా పేర్కొన్న ఇండియన్​ పీనల్​కోడ్​లో కూడా పెద్దగా మార్పులేమీ చేయలేదు. రాజ్యానికి అవసరమైన కొన్ని కొత్త నిబంధనలను చేర్చినారు. అవికూడా ప్రజలను అణచివేసేవి. భారతీయ సాక్ష్యాధారాల చట్టంలో చేసిన మార్పులు తక్కువే. ఈమాత్రం దానికి కొత్త చట్టాలు అవసరమా? పాతవాటి పేర్లు మార్చేసి సంతృప్తి చెందితే సరిపోయేది. ఇప్పడు అనవసర గందరగోళం. అనవసర జాప్యం, అణచివేత. ఇక ఏం జరుగుతుందో వేచి చూడాల్సిందే.

– డా. మంగారి రాజేందర్, జిల్లా జడ్డి (రిటైర్డ్)

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