Special Article: आंदोलन करना भूल गया तेलंगाना समाज, उठ रही है चारों ओर से यह आवाज

यह सर्वविदित और सत्य है कि तेलंगाना संघर्ष की जननी है। समस्याओं का समाधान पाने के लिए तेलंगाना आंदोलन का जन्म हुआ। और तेलंगाना आत्मसम्मान से आंदोलन उदय हुआ। हमारे पास कोमाराम भीम का इतिहास है जो बंदूकी की नली के सामने सीना तानकर खड़े हो गये थे। हमारी विरासत रणजी गोंड संघर्ष की है, जिसने निज़ाम नवाबों की अराजकता को कुचल दिया था।

आखिर में हम उस धरती पर रहते हैं जहां आंध्र प्रदेश के औपनिवेशिक शासकों को बाहर करने के लिए पहले और दूसरे चरण के आंदोलन में बड़ा संघर्ष करना पड़ा और तेलंगाना हासिल किया। इस आंदोलन के दौरान हजारों लोग शहीद हो गये। इतिहास में लाखों लोगों के नाम महान बलिदानी के रूप में दर्ज हो गए हैं। ऐतिहासिक सबूत और कई इतिहास की किताबें यह बात सच है कहने के लिए हमारे सामने कईं साक्ष्य मौजूद है।

तेलंगाना आंदोलन में छात्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि हमारी नौकरियां हमें मिल जाएंगी, लेकिन तेलंगाना गठन के बाद भी छात्रों की महत्वाकांक्षा पूरी नहीं हुई। संयुक्त आंध्र प्रदेश में जो बेरोजगारों की स्थिति अब भी वैसी ही है! सरकारी नौकरियों की भर्ती नहीं होती। यदि हो भी जाये तो पेपर लीक, भर्ती रद्दी और अदालतों में मामले दर्ज होते रहते हैं। यह कहना ठीक होगा कि ऐसे जानबूझकर किया जाता है। इससे बेरोजगारों की आकांक्षाओं को नुकसान हो रहा है। ये बातें धूमिल हो गई हैं कि तेलंगाना आएगा तो हर परिवार में एक नौकरी दी जाएगी।

तेलंगाना के विश्वविद्यालय बेरोज़गारी की फ़ैक्टरियाँ बन गई हैं। यह हमारे वर्तमान तेलंगाना के हर बेरोजगार व्यक्ति की समस्या और गाथा है! ऐसे बहुत से लोग हैं जो असुरक्षा, आत्मविश्वास खोकर आजाद तेलंगाना जी रहे हैं! फिर भी बेरोज़गार युवकों के नेतृत्व में पहले जैसे आंदोलन नहीं हो रहे हैं। एक जमाने में विश्वविद्यालय नौकरियों और रोज़गार के केंद्र के रूप में फल-फूल रहे थे, अब बेरोज़गारों से भर गए हैं। फिर भी वो संघर्ष दिखाई नहीं दे रहे हैं। इसलिए आज भी प्रदेश के बेरोजगार संघों और छात्र संघों को एकजुट होकर रोजगार सृजन के लिए आंदोलन करने की जरूरत है।

इसी तरह, कर्मचारियों और शिक्षकों ने भी अपनी नौकरी जोखिम में डालकर तेलंगाना आंदोलन के लिए लड़ाई लड़ी। उस समय शिक्षक की समस्या और सेवा नियमों के बारे में वर्तमान मुख्यमंत्री केसीआर ने कहा था कि यदि तेलंगाना बन जाता है, तो कोई वास्तविक समस्या नहीं रहेगी। अर्थात हर समस्या का समाधान हो जाएगा। सीएम केसीआर अब ट्रेड यूनियनों और शिक्षक संघों को हेय दृष्टि से देख रहे हैं।

भले ही कर्मचारियों को समय पर वेतन न मिले, पीआरसी, आईआर, डीए की घोषणा न हो, प्रमोशन पर ध्यान न दिया जाए, सीपीएस रद्द किया गया हो, एक भी नेता नहीं मुंह नहीं खोल रहा है। यह दुखद है कि कर्मचारियों के साथ अन्याय हो रहा है और समस्याओं का अंबार लगा रहा है। वे अपना मुंह बंद कर खामोश बैठ रहे हैं, मगर कोई विशेष संघर्ष नहीं कर रहे हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ट्रेड यूनियनों के जो नेता कभी सरकारों को हिला देते थे, वे अब पदों के लिए शासकों के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं।

तेलंगाना आंदोलन के दौरान न सिर्फ बेरोजगार, कर्मचारी, शिक्षक ही नहीं बल्कि आम लोग भी यह मानकर शामिल हो गये थे कि अगर तेलंगाना गठन होता है तो हमारी निधियों पर हमारा अधिकार होगा। हमारा पानी हमारे पास आएगा और तेलंगाना का विकास होगा। लेकिन तेलंगाना आने के बाद क्या हुआ? तेलंगाना जो सरप्लस राज्य था आज कर्ज के ढेर में तब्दील हो गया है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुफ्त सुविधाओं के नाम पर अधूरे वादे करके और अपने विदेशियों, करीबी रिश्तेदारों और करोड़ों लोगों को करोड़ों का भुगतान करके तेलंगाना की अर्थव्यवस्था को खंडित किया जा रहा है। इतना होने के बावजूद कोई भी नेता सवाल नहीं कर रहा है। मुफ़्त योजनाओं के नाम पर हम मानव संसाधनों को अचेतन स्तर पर जोड़कर आर्थिक विनाश और सामाजिक विनाश की ओर ले जाने वाले सत्तारूढ़ निर्णय पर हम अपना मुँह तक नहीं खोल पा रहे हैं।

दरअसल, हमने सोचा था कि हमारे तेलंगाना में अभिव्यक्ति की आजादी रहेगी। हमने सोचा था कि तेलंगाना हमें लोकतांत्रिक आजादी मिलेगी। लेकिन वर्तमान तेलंगाना में, अगर हम सरकार के खिलाफ बोलते हैं, अगर हम सरकार के खिलाफ आंदोलन करते हैं, अगर हम सरकार के खिलाफ लिखते या प्रचार करते हैं, तो उसका गलत मतलब निकाला जा रहा है। ऐसा करने वाले तेलंगाना के लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी छीन ली जा रही है।

हम संघर्ष करके हासिल किये गये तेलंगाना में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। कोई लोकतांत्रिक स्वतंत्रता नहीं है। हम प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अनेक प्रतिबंधों एवं बंदिशों को देख एवं अनुभव कर रहे हैं। तेलंगाना आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले सामाजिक और लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं के प्रति दमनकारी प्रवृत्ति दिख रहे हैं। मुक्त माहौल नहीं बनने दे रहे हैं।

वर्तमान तेलंगाना को देखें तो महसूस होता और सवाल उठता है कि क्या हमने इसलिए तेलंगाना हासिल किया है? चाहे कुछ भी हो जाये तेलंगाना के साढ़े चार करोड़ लोगों की आकांक्षाओं के लिए, तेलंगाना के भीष्म पितामह शहीद प्रोफेसर जयशंकर जी की आकांक्षाओं के लिए, लोकतांत्रिक सामाजिक तेलंगाना की उपलब्धि के लिए, तेलंगाना के आंदोलनकारी, शिक्षित बुद्धिजीवी अपनी चुप्पी तोड़े और आंदोलन को पुनर्जीवित होने/करने के लिए आगे आने की आवश्यकता है। साथ ही एक और लोकतांत्रिक और सामाजिक तेलंगाना के लिए संघर्ष का शंखनाद करने की जरूरत है।

लेखक नरिमेट्ला वंशी, पत्रकारिता छात्र, उस्मानिया विश्वविद्यालय (82476 85407)

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