हैदराबाद : मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने सोमवार को प्रगति भवन में बजट सत्र को लेकर उच्च स्तरीय बैठक की। बैठक में वित्त-मंत्री हरीश राव, विधायी मामलों के मंत्री वेमुला प्रशांत रेड्डी, आईटी और नगरिक प्रशासन मंत्री केटी रामाराव, वित्त सचिव और सीएमओ के अधिकारियों ने भाग लिया। इस मौके पर बजट सत्र के संचालन और तिथि को अंतिम रूप दिया गया।
सीएम केसीआर ने तेलंगाना विधानसभा का बजट सत्र 7 मार्च (सोमवार) से शुरू करने का फैसला किया है। जबकि बजट को मंजूरी देने के लिए 6 मार्च को शाम 5 बजे प्रगति भवन में कैबिनेट की बैठक करने का फैसला किया है। हालांकि तेलंगाना सरकार ने बजट सत्र को लेकर चौंकाने वाला फैसला लिया है। विधानसभा बजट सत्र राज्यपाल के बिना करने का फैसला लिया है।
तेलंगाना में पिछले कुछ दिनों से राजनीति में अहम मोड़ ले रहा है। इस संबंध में केसीआर द्वारा उठाए गए कदम इस समय चर्चा के विषय बन गये हैं। खासकर चर्चा का सारांश है कि यह है कि क्या तेलंगाना के मुख्यमंत्री और राज्यापाल के बीच दूरियां बढ़ रही हैं? भले ही इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल पाया है। मगर राजनीतिक गलियारों में इस चर्चा का सारांश हां ही मिल रहा है।
कुछ दिन पहले मेडारम जातरा में राज्यपाल का स्वागत करने के लिए मंत्रियों के नहीं आना चर्चा को बल मिला है। हाल ही में मुंबई में उद्धव ठाकरे से मिलने के लिए जाने से पहले केसीआर ने बीजेपी को इस तरह एक झटका दिया। अब विधानसभा बजट सत्र राज्यपाल के भाषण के बिना करने का फैसला लेना चर्चा विषय बना गया है। हालांकि, कई लोगों का तर्क है कि अन्य राज्यों की तुलना में तेलंगाना में राज्यपाल को लेकर ज्यादा विरोध नहीं है। लेकिन एमएलसी चुनाव के दौरान राज्यपाल ने जो फैसला लिया उसे टीआरएस के नेता भूल नहीं पा रहे है।
ऐसे लगता है कि पिछले कुछ समय से तेलंगाना में हो रहे राजनीतिक घटनाक्रम के मद्देनजर तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर सतर्कता से आगे बढ़ रहे हैं। वैसे तो राजभवन और सीएम कार्यालय के बीच बढ़ती दूरी गणतंत्र दिवस समारोह के समय से ही चर्चा का केंद्र बना गया है। राजभवन में गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्यमंत्री केसीआर शामिल नहीं हुए थे। साथ ही राज्य का कोई भी मंत्री मौजूद नहीं थे। मेडारम में भी ऐसा ही हुआ है। मंत्रियों ने राज्यपाल का स्वागत नहीं किया। इसके चलते भाजपा नेता तेलंगाना सरकार पर नाराज हैं।
हालांकि देश भर के गैर-भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल और मुख्यमंत्रियों के बीच ज्यादा एकमत नहीं है। इस पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने भी टिप्पणी की। उन्होंने केंद्र पर सरकार के खिलाफ राज्यपालों का इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया गया है।