हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत, हैदराबाद द्वारा आयोजित 46 वीं मासिक गोष्ठी में इस बार ‘शादियों में बढ़ती फिजूलखर्ची और प्रदर्शन तथा अन्न की बर्बादी’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सम्मानित सदस्यों और अतिथियों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और वरिष्ठ साहित्यकार दर्शन सिंह को गोष्ठी की अध्यक्षता हेतु मंच पर सादर आमंत्रित किया। साथ ही साथ मुम्बई से वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती कुसुम सुराणा जी को भी विशेष अतिथि के रूप में मंच पर आमंत्रित किया। कटक, उड़ीसा से गोष्ठी में जुड़ी श्रीमती रिमझिम झा द्वारा प्रस्तुत स्वरचित सरस्वती वन्दना से गोष्ठी का शुभारम्भ हुआ। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई थी।
सरिता सुराणा ने बताया यह है चिंताजनक…
परिचर्चा सत्र प्रारम्भ करते हुए सरिता सुराणा ने विषय प्रवेश पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान समय में शादियों का पारम्परिक स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है। पहले शादी एक पारिवारिक उत्सव होता था, लेकिन आजकल यह एक प्रदर्शनकारी इवेंट हो गया है। पहले शादियां अपने गृह नगर और अपने घर में ही होती थीं, लेकिन आजकल डेस्टिनेशन वेडिंग का चलन है। इसके साथ-साथ उन्होंने शादी जैसे पवित्र संस्कार में आने वाली विकृतियों यथा प्री वेडिंग शूट, हल्दी-मेंहदी और अन्य रस्मों के लिए किये जाने वाले फिजूल के ताम-झाम, अपनी हैसियत से बढ़कर खर्च करना और फिर ज़िन्दगी भर के लिए क़र्ज़ में डूब जाने को चिन्ताजनक बताया।
श्रीमती हिम्मत चौरड़िया ने आईस्क्रीम खाई और…
कोलकाता से श्रीमती हिम्मत चौरड़िया ने कहा कि एक शादी में 250 व्यंजन परोसे गए थे, लेकिन उनके खाने लायक केवल एक ही व्यंजन था। जब भूख मिटाने के लिए उन्होंने आइसक्रीम खाई और बाद में उन्हें पता चला कि उसमें वाइन मिली हुई थी तो उन्हें बहुत आत्म ग्लानि हुई और उसके फलस्वरूप उनका स्वास्थ्य अस्वस्थ हो गया। जैन समाज की शादी में स्त्री-पुरुष दोनों ही शराब पीकर के नाच रहे थे। समाज में हो रहे इस दिखावे और नैतिकता के गिरते स्तर से वे बहुत चिंतित थी।
डॉ संगीता जी शर्मा ने अपने अनुभव को साझा किया…
डॉ संगीता जी शर्मा के सुपुत्र की शादी अभी हाल ही में हुई है तो उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि मैंने फिजूलखर्ची और प्रदर्शन तो नहीं किया, लेकिन जो आजकल के हिसाब से जरूरी है, वह सब किया। नहीं तो बच्चे को ऐसा लगता कि उसकी शादी में कमी रह गई और फिर समाज में हीनभावना का शिकार होना पड़ता है।
श्रीमती ज्योति गोलामुडी और श्रीमती ज्योति नारायण ने बताये अनुभव…
श्रीमती ज्योति गोलामुडी ने कहा कि शादी में आने वाले मेहमान अपने कमरों में ही तैयार होते रहते हैं और आशीर्वाद देने के समय भी नहीं दिखाई देते, ऐसे मेहमानों को बुलाने का क्या फायदा? श्रीमती ज्योति नारायण ने कहा कि पहले गाँव में एक महीने पहले पूरा परिवार इकट्ठा हो जाता था और सबका खाना एक ही जगह बनता था, लेकिन खाना बर्बाद नहीं होता था। आज़ जब दुनिया में कितने लोग भुखमरी का शिकार हैं, ऐसे में अन्न की बर्बादी कहां तक उचित है?
एडवोकेट अमृता श्रीवास्तव ने दिया उत्तम सुझाव…
बैंगलुरू से एडवोकेट अमृता श्रीवास्तव ने अपने विचार रखते हुए कहा कि वे शादी में फिजूलखर्ची के सख्त खिलाफ हैं। इससे अच्छा है कि रजिस्टर्ड मैरिज की जाए और नव दम्पत्ति के नाम से एफडी करवा दी जाए। जिससे उन्हें अगर परिवार से दूर अलग गृहस्थी बसानी पड़े तो आर्थिक परेशानी न हो। आजकल विदेश जाने वाले नव दम्पत्ति के लिए विवाह का पंजीकरण आवश्यक है।
श्रीमती रिमझिम झा और श्रीमती आर्या झा ने दिया उत्तम संदेश…
श्रीमती रिमझिम झा ने कहा कि यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने बच्चों की शादी में कितना खर्च करें। हम अंबानी तो नहीं हैं तो हमें अपना निर्णय स्वयं लेना होगा। श्रीमती आर्या झा ने कहा कि आज़ ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की मानसिकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। बचपन से ही बेकार के दिखावे में खर्च करने के बजाय बच्चों को बचत की महत्ता समझानी चाहिए तभी भविष्य सुरक्षित होगा।
कुसुम सुराणा और किरन सिंह ने अन्न की बर्बादी पर चिन्ता व्यक्त की…
कुसुम सुराणा ने कहा कि हमें उतने ही लोगों को आमंत्रित करना चाहिए, जितने की व्यवस्था हम अच्छी तरह से कर सकें। आजकल शादियों में फिजूलखर्ची बहुत बढ़ गई है, जिससे मध्यम वर्गीय परिवारों की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा जाती है। किरन सिंह ने कहा कि कई बार लड़के वालों के दबाव के कारण लड़की वालों को दिखावे के लिए खर्च करना पड़ता है। तृप्ति मिश्रा ने भी शादियों में होने वाली अन्न की बर्बादी पर चिन्ता व्यक्त की और इसे रोकने हेतु सख्त कदम उठाने के लिए कहा।
दर्शन सिंह की अध्यक्षीय टिप्पणी में बताये अपने अनुभव…
अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए दर्शन सिंह ने कहा कि उनकी शादी सवा रुपए में हुई थी। वे नामधारी सिख हैं और उन्होंने अपनी बेटी की शादी में 500 रुपए खर्च किए थे। आज़ भी उनके समुदाय में अगर कोई निमंत्रण पत्र छपवाता है और गुरुजी को उसकी जानकारी मिलती है तो उस परिवार की हैसियत के अनुसार उस पर अर्थदंड लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि शादियों में खाने वालों की लंबी कतारें लगी होने के कारण लोग एक बार में ही थाली भर लेते हैं और बाद में जूठा छोड़ देते हैं। उन्होंने इस परिचर्चा को अत्यन्त सफल और सारगर्भित बताया और सभी के विचारों की प्रशंसा की।
द्वितीय सत्र
द्वितीय सत्र में किरन सिंह ने कह मुकरी विधा के बारे में जानकारी देते हुए स्वरचित कह मुकरियां सुनाई। सरिता सुराणा ने फायकू विधा की जानकारी दी और स्वरचित फायकू सुनाए। आर्या झा और हर्षलता दुधोड़िया ने भी फायकू सुनाए। श्रीमती कुसुम सुराणा ने अपनी कविता का पाठ किया। सभी ने इस परिचर्चा गोष्ठी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और कहा कि हम अपने से बदलाव की शुरुआत करें तो बदलाव अवश्य आयेगा। सबने इस वर्ष की अन्तिम गोष्ठी की सफलता के लिए हर्ष व्यक्त किया और नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं दीं। आर्या झा के आभार ज्ञापन से गोष्ठी सम्पन्न हुई।