हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत हैदराबाद द्वारा अपनी 35 वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन, अपने सम्मानित सदस्य दिवंगत संतोष रजा गाजीपुरी की श्रद्धांजलि सभा के रूप में किया। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सदस्यों का हार्दिक स्वागत किया और श्री दर्शन सिंह जी को इस गोष्ठी की अध्यक्षता करने हेतु मंच पर सादर आमंत्रित किया। श्रीमती आर्या झा की सरस्वती वन्दना से गोष्ठी आरम्भ हुई। तत्पश्चात् संतोष रजा गाजीपुरी की याद में दो मिनट का मौन रखा गया और उनकी आत्मा की शान्ति हेतु प्रार्थना की गई।
सरिता सुराणा ने बताया कि जब 19 मार्च को उन्होंने आर्या झा और उनके पतिदेव के साथ संतोष भाई को अस्पताल में आईसीयू में भर्ती देखा तो विश्वास ही नहीं हुआ कि इतनी जल्दी आदमी के शरीर में इतना परिवर्तन आ सकता है। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि मानो उनके शरीर की पूरी शक्ति निचोड़ ली गई हो और वे निस्तेज होकर सो रहे हों। कुछ ही देर में यह दुखद समाचार मिला कि वे हम सबको छोड़कर चले गए। मेरी आंखों के सामने अब भी वही दृश्य घूम रहा है। उनके भाई और बेटे बहुत ही उदास थे और कह रहे थे कि वे उन्हें दूसरे अस्पताल में ले जाएंगे लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था।
गज़लकार संतोष रजा गाजीपुरी
उसके बाद श्री बिनोद गिरि अनोखा ने कहा कि संतोष जी का भौतिक शरीर भले ही अब हमारे बीच नहीं है लेकिन वे अपनी ग़ज़लों के माध्यम से सदैव हमारे साथ विद्यमान रहेंगे। उन्होंने अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इसी क्रम में श्रीमती हर्षलता दुधोड़िया, श्रीमती उर्मिला पुरोहित, श्री गजानन पाण्डेय, डॉ. संगीता शर्मा, श्रीमती ज्योति नारायण और श्रीमती हिम्मत चौरड़िया ने उनके साथ बिताए हुए पलों को याद करते हुए अपने-अपने शब्दों में उन्हें श्रद्धांजलि दी।
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आर्या झा ने कहा कि वे जब भी मिलते थे, बहुत आत्मीयता पूर्ण व्यवहार था उनका। पत्नी के देहान्त के बाद वे अंदर से टूट गए थे और उनकी ग़ज़लों में वह पीड़ा झलकती थी। श्रीमती सुनीता लुल्ला ने कहा कि वह उन्हें मां कहकर संबोधित करता था और जब भी किसी साहित्यिक कार्यक्रम में मिलता था तो चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेता था। अपनी ग़ज़लें मुझे भेजता था और मैं उनमें अपेक्षित सुधार करती थी।
सरिता सुराणा ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अपनी एक रचना- कुछ घाव कभी नहीं भरते प्रस्तुत की और कहा कि हम सब मिलकर उनकी ग़ज़लों को एकत्रित करके उन्हें एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करेंगे। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि उनके सुपुत्र ने उनकी लिखी हुई अन्तिम गज़ल- फूल बन कर के महकते क्यूं नहीं हो/मौसमे-महफिल बदलते क्यूं नहीं हो भेजी है, जिसे पटल पर साझा किया गया है। श्रीमती शुभ्रा मोहन्तो ने अपनी श्रद्धांजलि स्वरूप बहुत ही भावपूर्ण वीडियो बनाकर भेजा। उसे सबके सामने स्क्रीन पर प्ले किया गया। सबकी आंखें नम थीं और शब्द मौन थे।
अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए दर्शन सिंह जी ने कहा कि संतोष रजा बहुत सरल प्रकृति के इंसान थे। साहित्यिक कार्यक्रमों में उनसे अक्सर मुलाकात होती रहती थी। वे बहुत उम्दा गज़लकार थे। हैदराबाद साहित्य जगत ने एक अनमोल गज़लकार को खो दिया है। आर्या झा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।