सूत्रधार की ‘हिन्दी साहित्य के उत्थान में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का योगदान’ विषय पर परिचर्चा गोष्ठी सम्पन्न

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत की ओर से 14वीं परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। संस्थापिका सरिता सुराणा ने मां शारदे का स्मरण करते हुए गोष्ठी में पधारे हुए सभी सम्मानित साहित्यकारों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया। सर्वप्रथम उन्होंने कार्यक्रम की अध्यक्षता करने हेतु अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि एवं साहित्यकार दम्पत्ति श्री राजेन्द्र निगम राज और इन्दु राज निगम को मंच पर आमंत्रित किया। तत्पश्चात् वरिष्ठ कवि एवं नाटककार सुहास भटनागर, प्रपत्र प्रस्तुतकर्ता सुनीता लुल्ला और रिमझिम झा को मंच पर आमंत्रित किया। ज्योति नारायण की स्वरचित सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। उसके बाद गत दिनों शहर के वरिष्ठ कवि नेहपाल सिंह जी वर्मा के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

अपने स्वागत भाषण में संस्था अध्यक्ष ने संस्था का परिचय देते हुए कहा कि संस्था के पटल पर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियां निरन्तर संचालित की जा रही हैं। उनमें प्रमुख हैं- चिन्तन शृंखला, मन्थन एवं मनन शृंखला, शब्द पुष्प शृंखला और चित्र शृंखला। साथ ही साथ फेसबुक पटल पर प्रत्येक रविवार को आधे घण्टे के लाइव काव्य पाठ का आयोजन किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत अब तक 26 साहित्यकार अपनी रचनात्मक प्रस्तुति दे चुके हैं। हैदराबाद के साहित्यकारों के साथ-साथ पूरे देश भर से ख्याति प्राप्त कवि एवं साहित्यकार इस मंच से जुड़े हुए हैं, यह मंच के लिए सौभाग्य की बात है।

गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित

यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई। प्रथम सत्र में हिन्दी साहित्य के विकास में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के योगदान और उनके रचना-संसार पर परिचर्चा को प्रारम्भ करते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि आधुनिक हिन्दी साहित्य में खड़ी बोली हिन्दी के प्रतिष्ठापक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को सिर्फ 34 वर्ष की आयु मिली लेकिन अल्पायु में ही उन्होंने गद्य से लेकर कविता, नाटक और पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट आयाम स्थापित किए। उन्होंने न केवल नई विधाओं का सृजन किया अपितु साहित्य की विषयवस्तु में भी वे एक नयापन लेकर आए इसलिए उन्हें भारत में नवजागरण का अग्रदूत माना जाता है। उनके समय में हमारा देश गुलामी और मध्यकालीन सोच की जंजीरों में जकड़ा हुआ था तब उन्होंने साहित्य में बुद्धिवाद, मानवतावाद, व्यक्तिवाद, न्याय और सहिष्णुता जैसे तत्वों को शामिल किया। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से लोगों में अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति प्रेम और राष्ट्र प्रेम की भावना को जागृत करने का प्रयास किया।

मुख्य वक्ता सुनीता लुल्ला ने कहा…

परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए मुख्य वक्ता सुनीता लुल्ला ने कहा कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपने नाटकों के माध्यम से जनता में जागरूकता पैदा की। वे न केवल नाटककार थे अपितु बहुत अच्छे अभिनेता भी थे। वे हिन्दी साहित्य में खड़ी बोली हिन्दी के प्रणेता थे। उनके द्वारा रचित साहित्य कालजयी है। उन्होंने गद्य और पद्य सभी विधाओं में उत्कृष्ट रचनाओं का सृजन किया। उनके द्वारा लिखे गए नाटकों ने समाज में जागरूकता पैदा करने का कार्य किया। हिन्दी साहित्य को दिए गए उनके महत्वपूर्ण योगदान के फलस्वरूप ही उनके युग को ‘भारतेन्दु युग’ के नाम से जाना जाता है।

विशेष वक्ता रिमझिम झा ने संबोधन में कहा…

कटक, उड़ीसा से विशेष वक्ता रिमझिम झा ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि भारतेन्दु न केवल हिन्दी साहित्याकाश के अपितु सम्पूर्ण साहित्य जगत के इन्दु थे। उन्होंने अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति सम्मान की भावना को जागृत किया। उनका एक ही मूल मंत्र था-
‘निज भाषा उन्नति लहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल। ‘
वे हिन्दी भाषा के विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। दर्शन सिंह ने कहा कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का एक दोहा ही अगर हम अपने जीवन में उतार लें तो हम सबका जीवन बदल सकता है।

अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए राजेन्द्र निगम बोले…

अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए राजेन्द्र निगम ने कहा कि विशिष्ट साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर आधारित यह परिचर्चा गोष्ठी निश्चित रूप से प्रशंसनीय कार्य है। बहुत कम समय में हमें उनके बारे में बहुत कुछ जानने और समझने का अवसर मिलता है। उन्होंने सभी वक्ताओं के वक्तव्य की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और इस आयोजन के लिए संस्था को बहुत-बहुत बधाई दी। इन्दु जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में इस उत्कृष्ट आयोजन हेतु सभी वक्ताओं और संस्था को बधाई दी और संस्था के कार्यों की सराहना की। बहुत ही उल्लासमय वातावरण में प्रथम सत्र सम्पन्न हुआ। इसके लिए संचालिका ने सभी अतिथियों और वक्ताओं का आभार व्यक्त किया।

सुहास भटनागर ने किया काव्य पाठ

द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी के प्रारम्भ में सुहास भटनागर ने अपने काव्य पाठ से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। तत्पश्चात् डॉ. आर सुमन लता, दर्शन सिंह, हरीश सिंगला, भावना पुरोहित, सुनीता लुल्ला, रिमझिम झा, डॉ. संगीता शर्मा, सम्पत देवी मुरारका, प्रदीप देवीशरण भट्ट, संतोष रजा गाजीपुरी, बिनोद गिरि अनोखा, हर्षलता दुधोड़िया, बबीता अग्रवाल कंवल और भारती बिहानी (सिलिगुड़ी, प.बंगाल) ने विविध रसों से परिपूर्ण सुन्दर भावपूर्ण रचनाओं का पाठ करके कवि सम्मेलन जैसा समां बांध दिया। अन्त में संचालिका ने भी अपनी रचना प्रस्तुत की।

अध्यक्षीय काव्य पाठ

अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए राजेन्द्र निगम ने अपनी रचना- ‘हमारा धर्म है रचना’ और ‘गज़ल के गीत के सपने’ सुनाकर सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने अपनी संस्था ‘परम्परा’ के बारे में जानकारी दी। इन्दु राज निगम ने अपने अंदाज में माहिया प्रस्तुत किए और अपनी एक रचना- ‘जब बड़ी हो जाती हैं बेटियां’ तथा ‘हाथों को धोना है/मास्क भी साथ रहे/कम्बख्त करोना है, सुनाकर सभी को भावविभोर कर दिया। गोष्ठी में कोलकाता से प्रसिद्ध साहित्यकार सुरेश चौधरी, राजस्थान से उर्मिला पुरोहित, रांची झारखण्ड से ऐश्वर्यदा मिश्रा, सिलिगुड़ी से बबीता झा और हैदराबाद से डॉ सुरभि दत्त और के. राजन्ना ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। संयोजिका के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई

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