World Women’s Day Special: महिलाओं को आज भी है पहचान की तलाश

आज विश्व मिहला दिवस है। एक महिला के अनेक आदर्श रूप होते हैं। जैसे एक मां, बहन, बेटी और पत्नी है, लेकिन सबसे पहले वह एक महिला है। एक इंसान के रूप में उसकी अपनी पहचान को अक्सर भुला दिया जाता है। उसकी निभाई गयी इन सभी भूमिकाओं के भारी भार के अंदर उसकी अपनी पहचान कहीं दब कर रह जाती है।

आजादी से लेकर अब तक हमारे देश में कई मामलों में जबरदस्त बदलाव आया है। लेकिन इन सब में जब महिलाओं की बात आती है तो लगता है कि अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। क्या हमारे देश की महिलाएं सच में आजाद हैं? क्या उन्हें अपनी पसंद चुनने का अधिकार है? क्या विचार की स्वतंत्रता और बोलने की स्वतंत्रता है ? क्या वे बिना कभी जज या ट्रोल हुए बिना अपनी मर्जी से जी सकती हैं? क्या बात कर सकती हैं? क्या कपड़े पहन सकती हैं? सच में देखा जाये तो अधिकांश महिलाएं स्वतंत्र नहीं हैं। क्योंकि उन्हें अपने जीवन में हर कदम पर मापदंडो पर कसे जाने का डर है। एक महिला के लिए क्या सही है, क्या सही नहीं है इसे तय करने में पूरी दुनिया जुट जाती है। उसे अक्सर अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता नहीं होती है।

परेशनियों से आज भी होती हैं दो -चार

आज भी हम ऑनर किलिंग, एसिड अटैक, रेप, छेड़छाड़ के बारे में सुनते हैं। दहेज प्रथा, निरक्षरता, यौन उत्पीड़न, असमानता, कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बाल शोषण, बलात्कार, वेश्यावृत्ति, अवैध तस्करी जैसे बहुत सारी परेशानियां है जिससे आज भी महिलाएं दो-चार होती हैं। समाज पर पूर्वाग्रह का प्रभाव बहुत गहरा होता है। लड़कियों पर एक निश्चित तरीके से काम करने का दबाव होता है। अच्छी लड़कियों को कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस बारे में समाज ने उनके लिए मानक तय किये हुए हैं और उनसे अपेक्षा की जाती है कि उनका व्यवहार इन्हीं धारणाओं के अनुरूप होना चाहिए। अक्सर लड़कियों को कहा जाता है कि योग्य पुरुष का जीवनसाथी के रूप में मिलने के लिए जरुरी है कि वे एक निश्चित दायरे में व्यवहार करें। उन्हें यह कभी नहीं सिखाया जाता है कि अगर वो शिक्षित, आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हैं, तो पुरुष तो क्या उन्हें पूरी दुनिया नोटिस करेगी। आज के समय में भी एक पुरुष का एक महिला को उसके अस्तित्व की मान्यता देना आश्चर्य की बात है।

शिक्षा बन सकती है एक बड़ा हथियार

महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनका शिक्षित होना जरूरी है। कोफी अन्नान ने कहा था , “महिलाओं को सशक्त बनाना एक राष्ट्र को सशक्त बनाना है। वर्तमान मे भारत में केवल 65 फीसदी महिलाएं ही शिक्षित हैं। महिलाओं की शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। शिक्षा का अधिकार प्रारंभिक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं का समर्थन करने और उन्हें अपने अधिकारों को समझाने के लिए सरकार द्वारा चलाए गए कई अभियानों के बावजूद, प्रयास इतना प्रभावी नहीं साबित हो रहा है। समानता का अधिकार, 108वां संवैधानिक संशोधन विधेयक (जिसे महिला आरक्षण विधेयक भी कहा जाता है), बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ सरकार द्वारा की गयी कुछ ऐसी पहलू (योजनाएं) हैं जो कुछ बदलाव लाने में सहायक रही हैं। लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

आर्थिक सशक्तिकरण की जरुरत

महिला सशक्तिकरण एक बहुत ही कम इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, लेकिन वास्तव में इसका क्या मतलब है? महिला सशक्तिकरण का अर्थ है कि महिलाओं में अपने अधिकारों के लिए खड़े होने का आत्मविश्वास होना। आर्थिक सशक्तिकरण के लिए जरुरी है महिलाओं का आर्थिक रूप से मजबूत होना। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है कि हर एक शहरी और ग्रामीण महिलाओं को सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार दिया जाये और उन्हें अपनी शर्तों के साथ जीवन जीने की आजादी मिले। महिलाओं को व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए. ताकि वे आत्मविश्वास के साथ जीवन जी सकें। आर्थिक संबलता के साथ वे जीवन में किसी भी तरह की बाधाओं का सामना कर सकती हैं। सच्चा सशक्तिकरण तभी आएगा जब महिलाओं को अपना जीवन अपने तरीके से जीने की आजादी होगी।

दोहरे मानकों और बेड़ियों से आजादी ही असली आजादी

महिलाओं को असली आजादी तभी मिलेगी जब वे समाज के दोहरे मानकों बेड़ियों और रूढ़ियों से आजाद होगी। जब उन्हें हर कदम पर खुद को साबित करने के लिए मजबूर नहीं किया जायेगा। भारतीय पौराणिक कथा में सीता के साथ जो हुआ वह आज के आधुनिक भारत में महिलाओं के साथ प्रतिदिन हो रहा है। एक महिला को अपने जीवन के हर पड़ाव पर एक परीक्षा देनी होती है। इन सभी रूढ़ियों से सच्ची आजादी तभी मिलेगी, जब महिलाएं इन मानकों के बिना अपनी मर्जी से जीवन जी सकें। महिलाओं को आगे लाने और उनकी जिम्मेदारी लेने की जरूरत है। जरुरत यह भी है कि हम सब महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें सक्षम बनाने में अपना योगदान और सहयोग दें। एक दूसरे को सम्मान देना और नारीत्व को गरिमा देना सभ्य समाज की जिम्मेदारी (निशानी) है।

-अमृता श्रीवास्तव, बेंगलुरु

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