विश्व भाषा अकादमी: ‘सभ्य समाज में अकेलेपन का दर्द भोगते बुजुर्ग और बढ़ते वृद्धाश्रम- कारण और निवारण’ पर परिचर्चा

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई द्वारा ऑनलाइन परिचर्चा गोष्ठी का आयोजन बहुत ही उत्साहपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ। जिसका विषय था- ‘सभ्य समाज में अकेलेपन का दर्द भोगते बुजुर्ग और बढ़ते वृद्धाश्रम- कारण और निवारण’। इकाई अध्यक्ष सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और सहभागियों का हार्दिक स्वागत किया एवं हैदराबाद की जानीमानी प्रमुख समाज सेविका और कवयित्री श्रीमती मीना जी मुथा को इस गोष्ठी की अध्यक्षता करने हेतु मंच पर आमंत्रित किया। वे पिछले 19 वर्षों से कारवान दादावाड़ी, हैदराबाद में संचालित ‘जैन सेवाश्रम’ वृद्धाश्रम की संयोजिका हैं।

मंच पर उपस्थित

तत्पश्चात् गोष्ठी में आमंत्रित विशेष वक्ता सुश्री बबीता जी झा को मंच पर आमंत्रित किया, जो सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली की एडवोकेट होने के साथ-साथ सेलिब्रेटिंग लाइफ फाउंडेशन (सीएलएफ) की संस्थापिका हैं। यह एनजीओ वरिष्ठ नागरिकों की सहायता के लिए विभिन्न कार्य करता है। कटक, उड़ीसा से द्विभाषी कवयित्री एवं शिक्षिका श्रीमती रिमझिम जी झा, नाभिकीय ईंधन सम्मिश्र, परमाणु ऊर्जा विभाग, ईसीआईएल, हैदराबाद के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक अधिकारी दर्शन सिंह, संस्था की परामर्शदात्री सेवानिवृत्त प्रिंसिपल एवं वरिष्ठ कवयित्री सुनीता लुल्ला, सेवानिवृत्त हिन्दी रीडर एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुमन लता और गुजराती भाषी शिक्षिका एवं कवयित्री श्रीमती भावना पुरोहित इस परिचर्चा गोष्ठी के विशेष वक्ताओं के रूप में मंच पर उपस्थित थे।

कार्यक्रम का शुभारम्भ

यही इस गोष्ठी की मुख्य विशेषता थी कि इसमें समाज के प्रायः सभी वर्गों के प्रतिनिधि शामिल थे। श्रीमती आर्या झा की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। तत्पश्चात् संस्था अध्यक्ष ने सभी सहभागियों का शब्द पुष्पों से हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और संस्था के उद्देश्यों और गतिविधियों की जानकारी प्रदान की।

सरिता सुराणा…

विषय प्रवेश पर अपने विचार रखते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि आज समाज में बुजुर्गों के बढ़ते अकेलेपन का सबसे बड़ा कारण है- संयुक्त परिवारों का विघटन। साथ ही साथ गांवों से शहरों की ओर पलायन, पति-पत्नी दोनों का कामकाजी होना और दो पीढ़ियों के बीच वैचारिक मतभेद, बदलती जीवनशैली में खान-पान, रहन-सहन और स्वतंत्रता की भावना में परिवर्तन। आभासी दुनिया का विस्तार और टेक्नोलॉजी का विकास आदि बहुत से कारक इस समस्या के लिए जिम्मेदार हैं।

बबीता झा ने…

बबीता झा ने कहा कि आज भौतिकवादी सोच ने बच्चों को इस हद तक स्वार्थी बना दिया है कि वे सक्षम होते हुए भी उनकी जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते। एक भाई सोचता है कि मैं अकेला क्यों जिम्मेदारी उठाऊं, मां-बाप और भाईयों के भी हैं और इसी कारण मां-बाप उस प्यार और देखभाल से वंचित रह जाते हैं, जिसके वे हकदार हैं। अकेलापन दो तरह का होता है। एक जो दिखाई देता है और दूसरा जो दिखाई नहीं देता। अर्थात् सबके साथ रहकर भी अकेलेपन का अनुभव करना। यह दूसरी तरह का अकेलापन ज्यादा घातक है।

दर्शन सिंह…

दर्शन सिंह ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद बुजुर्गों को अपने आपको व्यस्त रखना चाहिए। वे खाली समय में गरीब बच्चों को शिक्षित कर सकते हैं, योग, ध्यान और खेलों में भाग ले सकते हैं। सीनियर सिटीजन क्लब में शामिल हो सकते हैं और अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं।

सुनीता लुल्ला…

सुनीता लुल्ला ने कहा कि वृद्धाश्रम बुजुर्गों के लिए समस्या नहीं, समाधान हैं। हमें ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर एडजस्टमेंट करना पड़ता है। मैं आज भी किसी के लिए उपयोगी हूं, ऐसा सोचकर अपने आपको व्यस्त रखें। आर्थिक रूप से भी अपने लिए कुछ व्यवस्था करके रखें ताकि किसी पर निर्भर न रहना पड़े।

रिमझिम झा…

रिमझिम झा ने कहा कि भावनावश सब कुछ बच्चों के नाम पर ना करें, कुछ अपने लिए बचाकर रखें। ये घर जीते जी मेरा है, मेरे मरने के बाद तुम्हारा, इसके लिए उन्होंने मिथिलेश्वर की कहानी हरिहर काका का उदाहरण प्रस्तुत किया।

डॉ सुमन लता…

डॉ सुमन लता ने कहा कि जिस तरह संविधान और संहिताओं में संशोधन अनिवार्य है, उसी तरह मानव जीवन में भी समय के साथ-साथ संशोधन, परिवर्तन और परिवर्धन आवश्यक है। आज सम्पूर्ण विश्व ग्लोबल विलेज में परिवर्तित हो गया है। सभी परिवारों के मापदण्ड अलग-अलग हैं। हमें सबके साथ सामंजस्य बनाकर चलना चाहिए। भावना पुरोहित ने प्राचीन काल की चार आश्रम व्यवस्था का जिक्र करते हुए अपनी बात को रखा। परिचर्चा पर अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए

मीना मुथा…

मीना मुथा ने कहा कि वृद्धाश्रम पर्याय हैं, विकल्प हैं लेकिन समाधान नहीं। हमें अपने बुजुर्गों के लिए इस तरह की व्यवस्था करनी है कि वे अपने आपको अकेला और असहाय महसूस न करें। कई बार ऐसा होने से वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और आत्महत्या तक कर लेते हैं। उससे अच्छा है कि वे व्यस्त रहें और अपने हमउम्र लोगों के साथ खुद को खुश रखें। आज न्यायिक प्रणाली भी उनके साथ है। कोई भी समस्या होने पर वे सरकारी सहायता भी ले सकते हैं। उन्होंने सभी वक्ताओं के विचारों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और इस तरह की सार्थक परिचर्चा के आयोजन हेतु संस्था को बधाई दी।

आर्या झा ने…

आर्या झा ने कहा कि इन सबके सकारात्मक विचार सुनकर अब उन्हें बुढ़ापे से डर नहीं लगेगा। सभी का एकमत था कि बुढ़ापा एक दिन सबको आना है। उसके लिए पहले से ही मानसिक रूप से तैयार रहें. स्वस्थ और मस्त रहें। हैदराबाद के वरिष्ठ पत्रकार के राजन्ना, वरिष्ठ साहित्यकार प्रदीप देवीशरण भट्ट, वरिष्ठ लेखिका डॉ संगीता जी शर्मा, राजस्थान से वरिष्ठ लेखिका श्रीमती उर्मिला पुरोहित और बबीता झा की माताजी श्रीमती नीलम झा भी गोष्ठी में उपस्थित थे। डॉ संगीता शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।

नोट- ‘सभ्य समाज में अकेलेपन का दर्द भोगते बुजुर्ग और बढ़ते वृद्धाश्रम के कारण व निवारण’ 16 जुलाई को ‘विश्व भाषा अकादमी भारत तेलंगाना इकाई’ की ओर से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में सभी वक्ताओं ने सारगर्भित विचार रखे हैं। यह केवल वक्ताओं के विचार ही नहीं, बल्कि वर्तमान और आने वाली पीढ़ी के लिए संदेश भी छोड़ गये हैं। संगोष्ठी में वृद्धाश्रम- अभिशाप और आवश्यक दोनों विचार भी सामने आये। अपने-अपने तर्क में दोनों विचार भी सही हैं। यह केवल व्यक्ति की सोच पर निर्भर करता है कि क्या सही और क्या गलत हैं। ‘विश्व भाषा अकादमी भारत तेलंगाना इकाई’ की इस पहल के लिए हम संस्थापिका सरिता सुराणा जी को बधाई देते है, क्योंकि लोगों के लिए बुजुर्ग एक जटिल समस्या होती जा रही है। इस पर चर्चा होने की जरूरत है। इन लेखों से एक भी व्यक्ति प्रभावित होता है, तो हम अपने कर्तव्य को सार्थक मानते हैं। हमारा सभी से आग्रह है कि इस विषय पर वे अपनी रचानाएं तुरंत Telanganasamachar1@gmail.com पर भेजे दें। धन्यवाद।]

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