हैदराबाद: महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती की 200 वीं जयंती के अवसर पर भारत सरकार की ओर से आयोजन (समारोह) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित हुआ। आयोजन समिति में हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बासुथकर जगदीश्वर राव एवं आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में स्थित आर्य समाज के क्षेत्रीय प्रतिनिधि डॉ. धर्म तेजा को तेलंगाना आर्य समाज प्रतिनिधित्व के रूप में चुना गया। इस उपलक्ष्य में स्वतंत्रता सेनानी पं गंगाराम स्मारक मंच की ओर से सम्मान समारोह का आयोजन आर्य कन्या विद्यालय, देवीदीन बाग, सुल्तान बाजार में आयोजित किया गया।
मंच के मंत्री व संचालक मिलिंद प्रकाशन के प्रमुक श्रुतिकांत भारती ने कार्यक्रम का संचालन किया। सर्वप्रथम पंडित प्रियदत्त शास्त्री द्वारा गायत्री मत्रों द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके पश्चात कुलपति प्रोफेसर बासुथकर जगदीश्वर राव एवं आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में स्थित आर्य समाज के क्षेत्रीय प्रतिनिधि डॉ. धर्म तेजा का स्वागत शाल, मोतियों की माला व पुस्तक देकर सम्मानित किया गया।
इसके बाद मंच के अध्यक्ष भक्त राम ने मंच का उद्देश्य व एक वर्ष में किए गए कार्यक्रम का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया और बताया स्वतंत्रता सेनानी पं गंगाराम जी के जीवनी पर आधारित पुस्तक “जीवन संग्राम : क्रांतिवीर पंडित गंगाराम वानप्रस्थी” जल्द ही उपलब्ध हो जाएगी। इस पुस्तक को लेखक प्रा. राजेंद्र जिज्ञासु जी ने लिखा है।
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इसके पश्चात श्रीमती उमा तिवारी डॉ. धर्म तेजा जी का परिचय प्रस्तुत किया। इस अवसर पर डॉ. धर्म तेजा ने अपने वक्तव्य में कहा आज समस्त विश्व एवं देश की समस्याओं का समाधान वेदों पर आधारित महर्षि दयानंद के बताएं गये मार्ग से ही संभव है। हैदराबाद स्वतंत्रता के लिए आर्य समाज का बड़ा योगदान रहा है। 200 वीं जयंती के आयोजन की रूपरेखा तैयार करने में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी का बड़ा योगदान रहा है। इसका आयोजन भारत में ही नहीं,अपितु सारे विश्व में आयोजित किया जाएगा। इसके लिए भारत से ही नहीं, सारे विश्व से प्रतिनिधित्व का चयन कर भारत सरकार के राजपत्र में नामांकित 97 महानुभावों को सम्मिलित किया है।
इसके पश्चात स्वर्गीय गंगाराम जी के पोते आत्माराम ने कुलपति प्रोफेसर बासुथकर का परिचय प्रस्तुत किया। प्रोफेसर बासुथकर ने अपने वक्तव्य में बताया उनका जन्म महबूबनगर में हुआ। उनके पिताजी हिंदी के टीचर थे। इस कारण घर में हिंदी का वातावरण था। उन्होंने हिंदी के महान लेखक व महापुरुषों की जीवनी से संबंधित साहित्य खूब पढ़ा है। उन्हीं महापुरुषों के विचारों से काफी प्रभावित हुआ हूं।
उन्होंने आगे कहा कि महर्षि स्वामी दयानंद जी वह अन्य महापुरुषों की दूर दृष्टि आने वाले तीन चार हजार साल को ध्यान में रखकर समाज को बताया है। केवल भारत को ही दृष्टि में रखकर ही नहीं, बल्कि सारे विश्व को ध्यान में रखा और मार्ग दर्शन किया है। बासुथकर जी ने कहा वे विदेश में कार्यरत रहे, किंतु उनकी भारत में ही कार्यरत रहने की प्रबल इच्छा थी।
वहां से लौटकर मुंबई, तिरुपति में कार्य करते हुए पिछले दो वर्षों से हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर कार्यरत हूं। उन्होंने कहा आज के नवयुवकों को इनर पावर को जगाने की तड़प है। ऐसे नवयुवकों को सद्मार्ग दर्शन पर ले जाने की जरूरत है। अंत में श्री सोमनाथ ने अतिथियों का आभार प्रकट किया एवं शांति पाठ द्वारा कार्यक्रम का समापन हुआ।
इस कार्यक्रम को सफल बनाने में श्री श्रुतिकांत भारती, श्री प्रदीप जाजू, श्री सोमनाथ, श्रीमती उमा तिवारी और श्रीमती चित्रा की अहम भूमिका रही है। इस कार्यक्रम में श्री प्रियदत्त शास्त्री, श्री भरत मुनि, श्री रणधीर सिंह, श्री अशोक पल्लोड, श्रीमती सरिता पल्लोड, डॉ. विद्याधर, श्री के राजना, श्रीमती वाई पद्मा, श्रीमती अनीता रेड्डी, श्रीमती भवानी, श्रीमती मालती, श्रीमती धनलक्ष्मी, श्रीमती मालती मोदिया, श्री दायमा, श्री ऋषि राम, श्री नादनम कृपाकर, श्री एन उपेंद्र, श्री विजयवीर, श्री धर्मपाल, श्री प्रदीप दत्त, श्री रामचंद्र राजू, श्री मर्री कृष्णा रेड्डी, डॉ श्याम प्रसाद, श्री प्रभु राज, श्रीमती अरुणा, श्री राजेंद्र व अन्य ने उपस्थित थे।