समय की मांग है ईंधन शुल्क में कर कटौती, वर्ना…

खुदरा और थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति के नवीनतम आंकड़े फिर से संकेत दे रहे हैं कि बढ़ती लागत कोरोना महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को और तोड़ रही है। आरबीआई के अधिकारियों ने गुरुवार केंद्रीय बैंक के मासिक बुलेटिन में अर्थव्यवस्था की स्थिति की समीक्षा की।

ईंधन मुद्रास्फीति, जिसमें पेट्रोल और डीजल शामिल नहीं है, पाया गया कि इनमें जून के महीने में एलपीजी, मिट्टी के तेल और ग्रामीण गरीबों के मुख्य आधार, जलाऊ लकड़ी और गोबर की खली के दामों में अप्रत्याशित उछाल आया है और निराशाजनक रूप से एलपीजी और केरोसिन की कीमतों में भी जुलाई में अब तक वृद्धि ही दर्ज की गई है।

बुलेटिन लेख के अनुसार, परिवहन लागत लगातार अधिक बनी हुई है, क्योंकि पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमतों में वृद्धि जारी है। 12 जुलाई को चार प्रमुख महानगरों में पहले से ही पेट्रोल की कीमत औसतन 102.92 रुपये प्रति लीटर और डीजल लगभग 94 रुपये प्रति लीटर रहा है। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के उच्च रुझान के साथ घरेलू परिवहन लागत में बेरोकटोक वृद्धि का असर कृषि उत्पादों और कारखानों से भेजे जाने वाले उत्पादों की खुदरा कीमतों में दिखना शुरू हो गया है।

जून में थोक मूल्य मुद्रास्फीति 12.07 फीसदी पर उच्च स्तर पर रही, क्योंकि ईंधन और बिजली श्रेणी में मूल्य लाभ सालाना 32.8 फीसदी बढ़ गया और विनिर्मित उत्पादों में 10.88 फीसदी तक की वृद्धि हुई। मध्यम और लघु-स्तरीय औद्योगिक इकाइयां, जो पहले से ही मांग और वित्त की समस्या के साथ महामारी के प्रभाव से निपटने के लिए संघर्ष कर रही हैं, उन्हें अब कच्चे माल और इनपुट लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा हैं।

आईएचएस मार्किट के पीएमआई के अनुसार 11 महीनों में पहली बार जून में विनिर्माण गतिविधि अनुबंध के साथ अर्थव्यवस्था दूसरी लहर के मद्देनजर संभलने के लिए संघर्ष कर रही है, जिसने शहरी और ग्रामीण दोनों बाजारों में उत्पाद की मांग और उपभोग क्षमता दोनों को ही कम कर दिया है। इसके साथ ही इस वर्ष की मानसूनी बारिश पर्याप्त से कम होने का अनुमान है, जिससे कृषि उत्पादन पर असर पड़ सकता है। ऐसा होना मुद्रास्फीति और विकास दोनों के लिए सही नहीं है।

जून से संचयी वर्षा की औसत दर से 5 फीसदी कम है और देश में जून और जुलाई महीने में हुई कम बारिश इस समस्या को और गंभीर बनाती दिख रही है। करोना महामारी पर आज भी हमारा नियंत्रण नहीं माना जा सकता जबतक कि पूरी जनसंख्या का टीकाकरण पूर्ण रूप से ना हो जाये। ग्रामीण इलाकों में अनिश्चितता और कठिनाई वास्तविक रूप से घट रही है। उपभोक्ताओं पर मुद्रास्फीति का बोझ कम करने के लिए सरकार को कम से कम ईंधन करों में कटौती करनी ही चाहिए।

– अमृता श्रीवास्तव वरिष्ठ लेखिका, बैंगलोर की कलम से…

नोट- लेख के विचार लेखिका के हैं। संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है।

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