या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्स्थिता नमःस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
तेलंगाना के मुलुगु जिले में हर दो साल में एक बार मेडारम् जातरा संपन्न होती है। भारत देश में संपन्न होनेवाली सबसे बडी यह गिरिजन (आदिवासी) जातरा ‘सम्मक्का – सारलम्मा’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसे तेलंगाना का कुंभ मेला भी कहा जाता है। इसमें सुदूर पहाडी इलाकों में रहने वाले गिरि पुत्रों की सभ्यता और संस्कृति के साथ-साथ, रीति-रिवाज की भी पूरी झलक मिलती है। चार दिन तक चलने वाली यह जात्रा माघ शुक्ला पूर्णिमा से आरंभ होती है।
माना जाता है कि कुंभ मेला के बाद इसी जातरा में भारी मात्रा में भक्त गण भाग लेते हैं। 1996 में इसे प्रदेश सरकार ने राज्य पर्व घोषित किया था। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, महाराष्ट्र और ओडीशा जैसे पडोसी राज्यों से भक्त गण भारी मात्रा में आकर अपनी मिन्नतें पूरी करते हैं। यहां प्रवाहित ‘जंपन्ना वागु’ नामक छोटी सी नदिया में नहाकर भक्तिभाव से माता के दर्शन करने भक्त गण आगे बढते हैं। भक्तिभाव की पराकाष्ठा तब देख सकते हैं, जब भक्तों के शरीर पर माता का आगमन होता है और वे झूमने लगते हैं।
पहले के दिनों में माता की कुटिया को नये वस्त्र से सुसज्जित कर, शामियाना डाला जाता था। अब सम्मक्का का मंदिर बन जाने के कारण, पुजारी गण मंदिर की साफ सफाई विधिवत कर पूरे प्रांगण को बडी – बडी रंगोलियों से सजाते हैं। इससे जातरा की शोभा और छा जाती है।
गुडिमेलिगे त्योहार के लिए तैयार पुजारी, सम्मक्का मंदिर के पुजारियों के साथ इसके प्रबंधन पर आपस में चर्चा करते हैं।
सबेरे ही नहा धोकर पुजारी गण, जंगल में जाते हैं और वहां से ‘एट्टिघास’ को पूरी श्रद्धा के साथ लाते हैं। इस घास को सम्मक्का मंदिर के ईशान भाग में रखते हैं। गुडिमेलिगे त्योहार के अवसर पर ग्राम देवियों की विशेष पूजा होती है। महा जातरा का अंकुरार्पण यही है। कन्नेपल्ली सारलम्मा मंदिर में भी ऐसे ही विधिवत पूजा और अर्चना होती हैं।
मिन्नत और चढावा
वैसे तो आमतौर पर देवी-देवताओं की पूजा – अर्चना आदि करना, मिन्नत मांगना और अपनी इच्छा पूर्ण होने के बाद, चढावा चढाना होता है। हर भक्त की अपनी – अपनी इच्छा होती है और समर्पण भी अलग-अलग। किन्तु प्रकृति बीच रहने वाले इन आदिवासियों के रीति-रिवाज कुछ विलक्षण होते हैं। सारे भक्त गण सम्मक्का और सारेगामा की जातरा में गुड का ही निवेदन करते हैं। गुड को सोना मान कर चढावा चढाते हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि आदिवासियों के लिए गुड और नमक बाहर से आते हैं। अतः इनको वे अधिक महत्व देते हैं।
गुड चढाने का संकल्प
महिलाएं संतान की कामना कर या अपनी संतान होने क बाद गुड चढाने का संकल्प विशेष रूप से करती हैं।
बच्चों को तोलकर उनके वज़न के बराबर माता को गुड चढाकर मिन्नत पूरा कर लेती हैं। बच्चे बडे होने के बाद भी उनकी पढाई, नौकरी, विदेश गमन आदि अवसरों पर भी या कभी भी अपनी इच्छाओं के पूर्ण होने पर सोना मानकर गुड चढाने की विशेष प्रथा है। आदिवासी जन जीवन में, कभी एक समय में, गुड बहुत ही महंगी वस्तु मानी जाती थी। इसलिए इस ‘बंगारम’ (स्वर्ण) समान वस्तु का समर्पण देवियों को करना इतना विशेष हो गया है।
स्थानीय भक्तों यह भी मानते हैं कि सम्मक्का के पति का नाम पगिडिद्द राजु है- इसमें पगिडि का अर्थ सोना है। इसीलिए इन पहाडी इलाकों में सोना जैसे उनके लिए दुर्लभ गुड का नाम भी सोना पड गया है।
तेलंगाना राज्य बनने के बाद ही ‘मेडारम सम्मक्का – सारलम्मा’ जातरा को विशेष पहचान मिली है। पिछले चार जातराओं का निर्वहण के लिए प्रायः 332 करोड रूपयों को खर्च किया गया था। अबकी बार करोना को ध्यान में रखकर, स्वास्थ्य विभाग को एक करोड रुपए मंजूर किया गया है। सुरक्षित पेयजल, सेनिटेशन आदि पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
सभी प्रकार की सुरक्षा के लिए, विशेष कर मुख्यमंत्री, अन्य प्रमुख व्यक्तियों के आगमन को ध्यान में रखकर सरकार की ओर से हजारों की संख्या में पुलिस दलों को तैनात किया जाता है। पुलिस और विभिन्न शाखाओं के वरिष्ठ अधिकारी, पुजारी गण और पुजारी गण के अध्यक्ष आदि सभी महत्वपूर्ण लोग मंत्रिमंडल के साथ भक्तों की सुरक्षा, आदि से संबंधित सुझाव, निर्वहण और अनावश्यक घटनाओं का निवारण आदि के बारे में चर्चा कर पूरी तैयारियों में लग जाते हैं। इस वर्ष मेडारम सम्मक्का सारलम्मा जातरा फरवरी 16,17,18 और 19 फरवरी तक संपन्न हो रही है। सबकी ओर से सब के हित में प्रार्थना करते हैं- “सर्वे जनाब सुखिनो भवंतु”!
डॉ सुमनलता, हैदराबाद (9849415728)