केंद्रीय हिंदी संस्थान: ‘अब कृत्रिम मेधा करेगी साहित्य सृजन’ विषय पर इन विद्वानों ने डाली रोशनी

सर्वविदित है कि आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। अब प्रौद्योगिकी हमारे जीवन का अभिन्न अंग हो गई है। इस क्षेत्र में कृत्रिम मेधा का प्रसार जीवन और कार्य के विभिन्न क्षेत्रों में होने लगा है। साहित्य का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। साहित्य के क्षेत्र में कृत्रिम मेधा अनेक प्रकार से मदद कर रही है। वर्तमान के साप्ताहिक कार्यक्रम में इस वैश्विक मंच पर साहित्य के क्षेत्र में कृत्रिम मेधा की उपलब्ध सुविधाओं से जुड़े अनेक पहलुओं पर गहन कार्यशाला का आयोजन हुआ जिसमें देश विदेश से जुड़े तकनीकीविदों ने अपने विचार प्रकट किए और कृत्रिम मेधा के श्वेत-श्याम पक्ष की बारीकियों से अवगत कराया।

हैदराबाद : केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा आयोजित साप्ताहिक ई आभासी वैश्विक संवाद के रूप में प्रौद्योगिकी कार्यशाला विषय- ‘अब कृत्रिम मेधा (आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस) करेगी साहित्य सृजन’ था।

कार्यशाला के आरंभ में तकनीकीविद एवं साहित्यकार डॉ सुरेश कुमार मिश्रा द्वारा प्रौद्योगिकी की सारगर्भित पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात केंद्रीय हिंदी संस्थान की डॉ सपना गुप्ता द्वारा आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, प्रस्तोता, विद्वानों तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। संचालन का बखूबी दायित्व भारत सरकार के गृह मंत्रालय में सहायक निदेशक डॉ मोहन बहुगुणा द्वारा संभाला गया। भाषा के क्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञ डॉ बहुगुणा जी ने टाइपराइटर से लेकर आधुनिक सुविधाओं तक की संक्षिप्त क्रमिक जानकारी दी और कहा कि आधुनिक काल में बटन दबाते या कमांड देते ही ज्ञान का खजाना का खुल जाना चमत्कारिक है। उन्होंने सभी का समादर करते हुए प्रस्तुति हेतु प्रो॰राजेश कुमार को ससम्मान आमंत्रित किया ।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान के पूर्व निदेशक एवं तकनीकी विशेषज्ञ प्रो राजेश कुमार ने अपनी शानदार पावर प्वाइट प्रस्तुति में कृत्रिम मेधा के माध्यम से साहित्य सृजन की बारीकियों पर बिंदुवार सचित्र प्रकाश डाला और सहज भाव से स्पष्ट वाणी में समझाया। उन्होंने विश्लेषण सहित विषय के महत्वपूर्ण पक्ष रखे। 1- कृत्रिम मेधा से साहित्य सृजन संभव है या नहीं। 2- साहित्य सृजन के विविध पक्ष 3- कृत्रिम मेधा की कार्य प्रणाली 4- नैतिक मुद्दों की प्रासंगिकता 5- लेखक क्या करेंगे और कृत्रिम मेधा का भविष्य क्या होगा। उन्होंने अपने व्याख्यान में श्रोताओं से सीधा संवाद स्थापित करते हुए बताया कि निश्चय ही काफी अंश तक यह संभव है।

रूस में प्रोफेसर रह चुके साहित्यकार डॉ राजेश कुमार ने साहित्य सृजन को तकनीकी से जोड़ते हुए विविध पक्षों पर प्रकाश डाला। जैसे- अनुभव और अवलोकन, आलोचनात्मक पठन, मानस मंथन, इंटरनेट खोज और रूपरेखा बनाना आदि। इन सबमें कमोबेस कृत्रिम मेधा गहन रूप में छोटी-छोटी इकाइयों में तत्काल उपलब्ध रहकर सहायक है। लेखक अपनी रचनात्मक प्रस्तुति में व्यापक रूप से इसकी मदद ले सकते हैं। हालाँकि चिंतन, मनन, गठन और कथन तथा अनुश्रवण के साथ संवेदना के स्तर पर कृत्रिम मेधा की आंशिक पहुँच है किंतु इस दिशा में तेजी से मिनटों में विभिन्न कार्य निष्पादित किए जा सकते हैं। उन्होंने कुछ ऐप्स के नाम भी बताए। जैसे –जैस्पर एआई, कॉपी एआई, राइटर, राइटसोनिक, सरफर, आर्टिकलो और नेचुरल टेक्स्ट आदि। उनका कहना था कि आज के समय में यह सब धनोपार्जन का भी स्रोत भी बन गया है। वैसे साहित्य का उद्देश्य आनंद और सत्य की खोज है। कृत्रिम मेधा को नैतिक दृष्टि से साहित्य की दृष्टि से खरा उतरना चाहिए।

इसके बाद देश विदेश से जुड़े विशेषज्ञों ने अपनी संक्षिप्त टिप्पणी दी। चिकित्सा क्षेत्र में कृत्रिम मेधा के प्रतिष्ठित लेखक डॉ कृष्णानंद पाण्डेय, अमेरिका से पूर्व आचार्य प्रो सुरेन्द्र गंभीर, आस्ट्रेलिया से श्री हरिहर झा, कनाडा से शिक्षा विशेषज्ञ डॉ संदीप कुमार और डॉ प्रमिला, सूरीनाम से प्रो शर्मीला रामरतन, यू. के. से आशा बर्मन, दिल्ली विश्ववियालय से प्रो मीना पाण्डेय, इंदौर से श्रीमती संध्या सिलावट, पटना से संध्या गर्ग, मुंबई से डॉ एम एल गुप्ता, अहमदनगर से विजय नगरकर तथा खड़गपुर से डॉ राजीव रावत आदि। सभी के द्वारा कार्यशाला को बहुत उपयोगी बताया गया और कृत्रिम मेधा के फायदे और नुकसान से आगाह किया गया।

अपने सारगर्भित अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रौद्योगिकी शिक्षाविद एवं आई आई टी कानपुर से जुड़े प्रो॰ अविनाश कुमार अग्रवाल ने इस कार्यक्रम से हर्ष प्रकट करते हुए कहा कि हम कम्प्यूटर आदि को जितनी अच्छी सामग्री देंगे उतनी ही अच्छी निस्यंदित होकर निकलेगी। कृत्रिम मेधा के सामने साहित्य सृजन में मानव अनुभूति के अभाव की चुनौतियाँ हैं। भ्रामक, तथ्यों से परे और आधारहीन सूचनाओं से दुरुपयोग की गुंजाइश है। इसे गोपनीयता का निर्वहन करते हुए जिम्मेदारी निभानी है और मानव नियंत्रण केंद्रित कार्य की आवश्यकता है।किसी की निजता का भी हनन नहीं होना चाहिए। उन्होंने अपनी कविता ‘ए आई ने कलम उठाई’ के माध्यम से बारीकियों का अहसास कराया और इसे आंशिक रूप से कारगर बताया। सम्माननीय विद्वान ने कहा कि कृत्रिम मेधा का साहित्य सृजन की आत्मा में निवास अभी असंभाव्य सा है।

केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष एवं कार्यक्रम के प्रणेता श्री अनिल जोशी जी ने सभी विद्वानों का सादर समादर किया और बारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन के वैश्विक विषय ‘पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक’ के निर्णय को मील के पत्थर सदृश बताया। उन्होंने कृत्रिम मेधा संबंधी आधुनिक खोज की प्रशंसा की तथा उसकी सीमाओं की ओर भी ध्यान खींचा। श्री जोशी जी ने माननीय अध्यक्ष, प्रस्तोता तथा टिप्पणीकारों की प्रशंसा की तथा इस पटल पर देश विदेश से जुड़े दर्जनों विद्वानों से परिचयात्मक चर्चा करते हुए कार्यशाला को अत्यंत सफल बताया।

अंत में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से डॉ जयशंकर यादव ने आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, अतिथि वक्ता, संचालनकर्ता, सभी विद्वानों और सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित विशेष आभार प्रकट किया। डॉ यादव द्वारा कृत्रिम मेधा से वैश्विक भाषायी गौरव बढ़ाने हेतु त्वरित गति के साथ शोध कार्य हेतु तथा इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय की गहराइयों से धन्यवाद दिया गया। रिपोर्ट लेखन का कार्य डॉ जयशंकर यादव ने संपन्न किया।

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