कहना न होगा कि साहित्य की अनेक विधाओं में व्यंग्य भी सशक्त विधा है जो व्यंजना की शक्ति से समाज की विद्रूपताओं पर प्रहार करता है ताकि समाज से विसंगतियों का पलायन हो। व्यंग्य की चोट खाने के बाद धूल झाड़कर चल देने के सिवाय कोई विकल्प नहीं होता। वैसे तो पूरे वर्ष यत्र तत्र सर्वत्र व्यंग्य की फुहार मिलती है किंतु होली से इसका विशेष जुड़ाव है। व्यंग्य पाठ भी एक कला है। कार्यक्रम में देश विदेश से जुड़े हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकारों ने व्यंग्य पाठ किया और श्रोताओं को भरपूर साहित्यानंद दिया तथा व्यंग्य की बारीकियों से अवगत कराया।
हैदराबाद : केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा आयोजित साप्ताहिक ई-आभासी वैश्विक संवाद “होली की फुहार” व्यंग्य पाठ संध्या आयोजित किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में साहित्यकार और इस वर्ष फिजी में आयोजित बारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन में ‘विश्व हिंदी सम्मान’ से सम्मानित विद्वान डॉ. जवाहर कर्नावट ने व्यंग्य की आरंभिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की। तत्पश्चात केंद्रीय हिंदी संस्थान के दिल्ली केंद्र पर तैनात प्रो. अपर्णा सारस्वत द्वारा आत्मीय भाव और संस्कृतनिष्ठ शैली में व्यष्टि में समष्टि और प्राचीन उद्धरणों सहित माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि, व्यंग्यकारों, विद्वानों तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। संचालन का बखूबी दायित्व साहित्यकार डॉ. राजेश कुमार द्वारा संभाला गया और प्रस्तुति हेतु आभासी रूप से जुड़े सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखकों को पाठ हेतु आमंत्रित किया गया।
‘भाभी’ शीर्षक से व्यंग्य पाठ
भोपाल से जुड़े सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री विजी श्रीवास्तव ने ‘भाभी’ शीर्षक से व्यंग्य पाठ किया और कहा कि होली की फुहार में यह शब्द और रिश्ता सर्वाधिक चलन में होता है। उन्होंने ‘और सुनाओ भाभी कैसी हैं’ के चटखारे से रिश्तों की गहराई का एहसास कराया तथा स्वस्थ भारतीय परंपरा को उजागर किया। कनाडा से जुड़े सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री धर्मपाल महेंद्र जैन द्वारा ‘होली खेलें व्यंग्यवीरा अवध में’ शीर्षक से संपादकों पर व्यंग्य सुनाया और संपादिया पर गेय रूप में पंक्तियाँ सुनाकर कटाक्ष किया। उन्होंने होली के बहाने संपादक का अधीनस्थ कार्मिकों के साथ संबंध तथा लेखकों के साथ वर्ताव पर प्रहार किया।
‘हँसू या रोऊँ’ नामक व्यंग्य
युवा एवं चर्चित व्यंग्यकार डॉ सुरेश कुमार ‘उरतृप्त’ ने बड़ी ही स्पष्टता से ‘हँसू या रोऊँ’ नामक व्यंग्य सुनाया और रूढ़िवादी धारणाओं के खेल पर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि काश! जिंदगी होली की तरह होती और मैं हर दिन सुनहरी से अपना चेहरा गोरा और चमकीला रखता। आजकल तो लोग दस बीस चेहरे लिए घूमते हैं। हिंदी व्यंग्य जगत में सुपरिचित नाम श्री प्रेम जनमेजय ने ‘अब वे होली नहीं खेलते’ शीर्षक से व्यंग्य सुनाकर आभिजात्य संस्कृति की कमी पर करारी चोट की जिसमें प्राचीन संस्कृति और स्वस्थ परंपराओं को भूलकर धनबल को महत्व दिया जाता है तथा मानवीय संबंधों की गहराई को दरकिनार किया जाता है। उन्होंने होली जैसे निश्छल उर की प्रीति वाले त्योहार को भूलकर केवल दीपावली पर उपहार बटोरने वाले लोलुप लक्ष्मीपतियों पर प्रहार किया।
‘गांधीजी का चश्मा’
‘गांधीजी का चश्मा’ वाले चिरपरिचित विषय पर व्यंग्य सुनाते हुए सिद्धहस्त व्यंग्यकार हरीश नवल ने अश्रुपूरित गांधीजी जी का आभासी एहसास कराया। उन्होंने कहा कि बेशक गांधीजी की हत्या केवल एक बार हुई किंतु उनके विचारों की हत्या रोज हो रही है। गांधीजी को ठीक से समझने और उनके विचारों को आचरण में लाने की महती आवश्यकता है।
‘टिंबक टू में कोरोना’ व्यंग्य रचना
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के माननीय उपाध्यक्ष तथा इस मंच और कार्यक्रम के प्रणेता श्री अनिल जोशी ने कार्यक्रम से जुड़े सभी का सादर समादर करते हुए ‘टिंबक टू में कोरोना’ शीर्षक से अपनी धारदार व्यंग्य रचना का पाठ किया। उन्होंने कोरोना के समय अपने को बहुत विकसित, समर्थ और अधिपति समझने वाले देशों पर करारी चोट की और भारत जैसे महान राष्ट्र को हेय दृष्टि से देखने पर व्यंग्य किया। श्री जोशी द्वारा लॉकडाउन की सफलता और वैक्सीन निर्माण कर दुनियाभर में वितरण का व्यंग्य में बखूबी वर्णन करते हुए भारत – भारतीयता की अंतर्निहित शक्ति का अहसास कराया गया।
‘जान जब हलक में फँसी हो’ व्यंग्य रचना का पाठ
विख्यात व्यंग्यकार शांतिलाल जैन ने ‘जान जब हलक में फँसी हो’ शीर्षक से अपनी व्यंग्य रचना का पाठ किया। उन्होंने विदेशी पालतू कुत्तों को अंग्रेज़ी में निर्देश देने और आम आदमी से घर में हिंदी में बात करने पर भी करारा व्यंग्य किया और भ्रष्टाचार को उजागर किया। उन्होंने यह भी अहसास कराया कि हमें राष्ट्र के सच्चे प्रहरियों का सम्मान करना चाहिए। कार्यक्रम का बखूबी संचालन कर रहे व्यंग्यकार श्री राजेश कुमार ने ‘मंगल ग्रह पर छुटभैये जी’ शीर्षक से अपनी रचना का पाठ कर साहित्यानंद दिया।
आँखों में आँखें डालकर व्यंग्य वाचन
पद्मश्री से सम्मानित व्यंग्य जगत में सुपरिचित हस्ती डॉ ज्ञान चतुर्वेदी ने बड़े ही संयत भाव और शालीनता से सभी रचनाकारों की सराहना की। उन्होंने कहा कि प्रायः व्यंग्यकार अपनी व्यंग्य रचना के प्रेम में पड़कर नारद सदृश हो जाते हैं। इससे बचना चाहिए और संक्षेप में कसा हुआ व्यंग्य प्रस्तुत करना चाहिए। उन्होंने ध्यान खींचा कि व्यंग्य पाठ भी एक कला है जिसका सही अभ्यास होना चाहिए। जैसे मंच से प्रभावोत्पादक कविता पाठ या नाटक आदि में कला निहित होती है वैसे ही व्यंग्य पाठ का बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि आँखों में आँखें डालकर व्यंग्य वाचन की कला विकसित हो सके। उनके द्वारा शरद जोशी और हरीशंकर परसाई को आदर सहित याद किया गया। उन्होंने समझाया कि रचना पाठ की चुनौती अलग होती है और प्लेटफॉर्म की शर्तें होती हैं। ऐसा न हो जैसे कि हम कार चलाने की सीट पर बैठकर दुर्घटना करते जाएँ। ज्ञान की पाठशाला में हमें अपने व्यंग्य के ज्ञान को दुरुस्त करने की जरूरत है।
अंत में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से सिंगापुर से जुड़ीं डॉ संध्या सिंह ने आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, अतिथियों, विद्वानों और सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने इस कार्यक्रम से देश – विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित विशेष आभार प्रकट किया। इस वर्ष फिजी में आयोजित बारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन में ‘विश्व हिंदी सम्मान’ से सम्मानित विदुषी प्रो संध्या सिंह द्वारा हिंदी भाषा, साहित्य, संस्कृति और रचनाधर्मिता से जुड़े विद्वानों द्वारा वैश्विक गौरव बढ़ाने हेतु आभार प्रकट किया गया तथा इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को बड़े आदर के साथ धन्यवाद दिया गया। रिपोर्ट लेखन कार्य डॉ जयशंकर यादव ने किया।